रूस की यात्रा से मोदी सरकार 3.0 का नया राजनयिक रूझान जाहिर

2024-07-11 14:57:59

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 और 9 जुलाई को रूस की यात्रा की। तीसरे कार्यकाल शुरू होने के बाद यह उनकी किसी देश की पहली औपचारिक यात्रा है। यूक्रेन संकट और वैश्विक भू-राजनीतिक मुकाबले की पृष्ठभूमि में इस यात्रा ने व्यापक नजर खींच ली। विश्लेषकों के लिए यह मोदी सरकार 3.0 के नये कूटनीतिक रूझान का पता लगाने का मौका भी माना जाता है।

मोदी को मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति पुतिन का जोशपूर्ण स्वागत मिला ।पहले दिन में पुतिन ने खुद इलेक्ट्रिक गाड़ी चलाकर मोदी को अपना आधिकारिक आवास दिखाया और साथ में रात्रिभोज भी किया। दोनों नेताओं ने अकेले में लंबे समय तक व्यापक मुद्दों पर अनौपचारिक बातचीत की। दूसरे दिन पुतिन ने मोदी को रूस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल’प्रदान किया। दोनों पक्षों ने दो दौर की वार्ता की और नौ सहयोगी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये। गौरतलब है कि 9 जुलाई को नाटो का शिखर सम्मेलन वाशिंगटन में उद्घाटित हुआ,जिसमें रूस—यूक्रेन मुठभेड़ एक मुख्य मुद्दा था। मॉस्को में मोदी और पुतिन की घनिष्ट इंटरएक्शन से न सिर्फ भारत-रूस के मजबूत परंपरागत संबंध प्रतिबिंबित हुआ, बल्कि पूरी दुनिया को एक स्पष्ट संकेत भी भेजा गया है यानी मोदी सरकार 3.0 रणनीतिक स्वतंत्रता पर अधिक जोर दे रहा है। इधर कुछ साल अमेरिका विश्व में अपना आधिपत्य बनाए रखने और भू-राजनितिक मुकाबले के दृष्टिकोण से भारत को पश्चिमी खेमे में खींचने  की पूरी कोशिश करता आया है। अमेरिका“हिंद-प्रशांत रणनीति” लागू करने में सक्रिय है और अमेरिका ,जापान ,भारत व आस्ट्रेलिया चार पक्षीय तंत्र स्थापित किया गया और भारत के साथ सैन्य संबंध का स्तर नाटो के सदस्य की तरह उन्नत किया गया। पश्चिम से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए मोदी सरकार ने सहयोगी कदम भी उठाये। देखने में भारत और पश्चिमी देश काफी करीब आ गये। लेकिन दोनों पक्षों के बीच मूल रणनीतिक विरोधाभास मौजूद है ,जिसका समाधान नहीं किया जा सकता। अमेरिका आदि पश्चिमी देशों की प्रतीक्षा है कि भारत उनका एक समर्थक स्तंभ और उपयोगी मोहरा बन जाए,पर भारत वास्तव में एक महान शक्ति यानी एक बहुध्रवीय विश्व में एक ध्रुव बनना चाहता है न कि किसी के अधीन होना चाहता है। मानवाधिकार,धर्म,आव्रजन आदि कई मुद्दों पर दोनों के गंभीर मतभेद हैं। मोदी की मॉस्को की यात्रा के पहले अमेरिका ने कथित धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत पर बड़ा आरोप लगाया,जबकि भारत ने इस का खंडन कर सख्त जवाब दिया। यह एक ताजा उदाहरण है। इस के अलावा पश्चिमी देशों ने भारत को जो आर्थिक मदद देने के वादे दिये,उनमें बड़ी बातें भरी हैं और कार्यांवयन कमजोर है। वर्ष 2022 में यूक्रेन-रूस मुठभेड़ होने के बाद पश्चिमी देशों ने भारत पर रूस से अलग होने का दबाव डाला, पर भारत ने अपने हित का ख्याल रखकर तटस्थ रूख अपनाया और रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात किया। इस बार मोदी ने पुतिन के साथ लगभग तीन साल तक ठप हुए भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की बहाली की और श्रृंखलात्मक उपलब्धियां हासिल कीं। जाहिर है कि मोदी कूटनीति में इंडिया फर्स्ट का अनुसरण कर रहे हैं ,जो तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में पेश की गयी।

रूस यात्रा में मोदी ने द्विपक्षीय आर्थिक मामलों पर खास जोर लगाया ,जो ध्यानाकर्षक है। यह शायद भारतीय कूटनीति में एक नया रूझान भी है। भारतीय विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने मॉस्को में मीडिया ब्रिफिंग में कहा कि दोनों नेता बैठक में मुख्य तौर पर आर्थिक सहयोग पर केंद्रित रहे। शिखर सम्मेलन में वर्ष 2030 से पहले द्विपक्षीय व्यापार 1 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया। दोनों नेताओं ने चेन्नई-ल्वाडिवोस्टोक ईस्टर्न गलियारे के नये प्रस्ताव की चर्चा की और आर्थिक वृद्धि संबंधी महत्वपूर्ण मामलों,विशेष कर रूस से खाद के आयात पर विचार किया। दोनों पक्ष भारत-यूरेशिया आर्थिक यूनियन व्यापार व वस्तु समझौता आगे बढ़ाने पर सहमत हुए। शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों देश अपनी-अपनी राजकीय मुद्रा का प्रयोग करने वाले सेटलमेंट तंत्र स्थापित करेंगे ,रूस भारत को कोयले का निर्यात बढ़ाएगा और भारत रूस के सुदूर पूर्व में निवेश करेगा। हस्ताक्षरित नौ सहयोग समझौतों में से अधिकांश आर्थिक व व्यापार मुद्दों से जुड़े हैं। उल्लेखनीय बात है कि दोनों देशों ने वर्ष 2030 तक भारत-रूस आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों के विकास पर एक संयुक्त बयान भी जारी किया। मॉस्को में बसे भारतीय लोगों को संबोधित करते समय मोदी ने कहा कि उनके तीसरे कार्यकाल का अहम लक्ष्य भारत को विश्व की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है। निसंदेह इस लक्ष्य के लिए मोदी भावी राजनयिक गतिविधि में आर्थिक मामलों को अधिक महत्व देंगे,क्योंकि कूटनीति मूल रूप से आंतरिक मामले की सेवा करती है। पिछले कार्यकाल में मोदी ने अपनी कूटनीति में भारत की छवि दिखाने और भारत के आकर्षण का प्रचार करने पर विशेष बल दिया। मोदी सरकार 3.0 के लिए बाहरी दुनिया से अधिकतर व्यावहारिक आर्थिक लाभ हासिल करना शायद एक मुख्य लक्ष्य है।

 (वेइतुंग)

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