पंचशील सिद्धांत: संघर्षपूर्ण विश्व में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक दृष्टिकोण

2024-07-09 15:09:49

वर्ष 1947 में भारत की आजादी के साथ एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो रहे थे। विऔपनिवेशीकरण की प्रक्रिया समूचे एशिया और अफ्रीका में धीरे-धीरे फैलती जा रही थी। यह दौर शीत युद्ध का दौर था और समूची दुनिया संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के नेतृत्व में दो गुटों में बंटी हुई थी।

इसी परिवेश में नए स्वतंत्र होने वाले देशों के सामने अपनी आजादी को स्थायित्व देने, विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, अपनी संप्रभुता की रक्षा करने, अपनी राजनीतिक सीमाओं की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शिकार होने से बचने जैसी चुनौतियां मौजूद थीं और भारत भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं था।

पंचशील समझौता / पंचशील सिद्धांत

भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर 70 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था। इस समझौते की प्रस्तावना में पाँच सिद्धांत थे जो अगले पाँच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे। इसके बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट-निरपेक्ष रवैया अपनाया।

पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पाँच निषेध होते हैं। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था। इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर, 1953 और 29 अप्रैल, 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद अंततः चीन की राजधानी पेइचिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए।

वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का मिश्रण तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके।

पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत इस प्रकार हैं-

1.  प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।

2.  गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।

3.  समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

4.  इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।

5.  सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।

हाल ही में, शी चिनफिंग ने पंचशील की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर पेइचिंग में एक सम्मेलन में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का आह्वान किया और मानव जाति के लिए साझा भविष्य की परिकल्पना करने वाली वैश्विक सुरक्षा पहल की अपनी नई अवधारणा के साथ उन्हें जोड़ने की भी मांग की। इतना ही नहीं, उन्होंने वर्तमान समय के संघर्षों को समाप्त करने के लिए और पश्चिम के साथ अपने संघर्ष के बीच वैश्विक दक्षिण में प्रभाव का विस्तार करने की मांग की।

पंचशील सिद्धांतों का महत्व

1.  जब शीत युद्ध के कारण से समूची दुनिया तनाव की स्थिति में थी और विश्व में भय के माध्यम से संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा था, तब ऐसे परिवेश में पंचशील की वकालत एक अनोखी पहल थी। इसके माध्यम से ‘सार्वभौमिकता का सिद्धांत’ प्रस्तुत किया गया था, जो ‘शक्ति संतुलन की भय पर आधारित अवधारणा’ के विपरीत था।

2.  इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में बांडुंग सम्मेलन के पश्चात् गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। जिसके परिणाम स्वरूप नव स्वतंत्र देश शीत युद्धकालीन तनावपूर्ण माहौल से अलग होकर अपने विकास पर ध्यान केंद्रित कर सके थे।

3.  ये सिद्धांत वर्तमान में म्याँमार, इंडोनेशिया, युगोस्लाविया, विभिन्न अफ्रीकी देशों और विश्व के अनेक देशों द्वारा अपनाए गए हैं क्योंकि ये सिद्धांत एक न्यायसंगत और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए संकल्पित हैं।

4.  ये सिद्धांत अपनी प्रकृति में शाश्वत किस्म के हैं और विश्व का नैतिक मार्गदर्शन करते हैं। ये सिद्धांत विश्व के कमजोर और ताकतवर, दोनों तरह के देशों को एक समान मंच प्रदान करने तथा सभी के साथ समानता के व्यवहार करने की वकालत करते हैं।

5.  पंचशील सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के प्रावधानों से मेल खाते हैं और विभिन्न देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों और सहयोगात्मक रवैये को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। वर्ष 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने से संबंधित घोषणा पत्र में पंचशील सिद्धांतों को शामिल किया था।

6.  इन संबंधों के महत्व को रेखांकित करते हुए एक बार जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “यदि इन सिद्धांतों को सभी देश अपने आपसी संबंधों में शामिल कर लेते हैं, तो शायद ही कोई ऐसा विवाद बचेगा, जो विश्व के देशों के बीच शेष रह जाए।”

इस प्रकार, हमने समझा कि पंचशील सिद्धांत मुख्य रूप से विदेश नीति में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना स्थापित करने का प्रयास करते हैं। ये सिद्धांत एक ऐसे विश्व का निर्माण करने की बात करते हैं, जिसमें विभिन्न देश आपसी सहयोग के माध्यम से खुद का और दूसरे देश का विकास सुनिश्चित कर सकें तथा अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा कर सकें।

आज विश्व के अधिकांश देश पंचशील अपना चुके हैं और इनका महत्व वर्तमान समय में भी अत्यधिक है। जब भी भारत और चीन संबंधों की बात होती है तब इस सिद्धांत का उल्लेख ज़रूर होता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसका अमर दिशा-निर्देशक सिद्धांत हमेशा जगमगाता रहेगा।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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