काओखाओ- चीन की सबसे मुश्किल प्रवेश परीक्षा

2024-06-07 12:24:34

चीन में हर साल बड़ी तादाद में स्कूली बच्चे राष्ट्रीय कॉलेज प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं, जिसे चीनी में ‘काओखाओ’ कहा जाता है। दो दिनों तक चलने वाली इस काओखाओ परीक्षा में बैठने वाले लाखों छात्र देश के सबसे बेहतरीन और नामी विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के लिए सबसे ज्यादा अंक पाने की कोशिश करते हैं। इस परीक्षा के जरिए छात्रों को उनके शैक्षिक और पेशेवर भविष्य तय करने में मदद मिलती है।

साल में एक बार होने वाले इस एग्ज़ाम को देश का हर प्रांत अपने-अपने ढंग से करवाता है। यह परीक्षा पूरे देश में 7 से 10 जून तक होती है। इस परीक्षा को देने वाले छात्रों के लिए तीन विषय सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं, पहला चीनी भाषा, दूसरा गणित और तीसरा कोई भी विदेशी भाषा। उसके बाद, उन्हें आर्ट्स और साइंस स्ट्रीम के कुछ चुनिंदा विषयों की परीक्षा देनी होती है। चीनियों का मानना है कि यह परीक्षा आसान नहीं होती।

विश्वविद्यालयों में आवेदन

वहीं, चीन के शिक्षा मंत्रालय की मानें तो इस साल चीन में इस एग्ज़ाम के लिए करीब 1 करोड़ 34 लाख से ज्यादा छात्रों ने पंजीकरण करवाया है। यह संख्या पिछले साल के मुकाबले 5 लाख 10 हजार से ज्यादा है।

चूंकि काओखाओ की परीक्षा पास करने के बाद ही छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला मिल पाता है, इसलिए इसका दबाव चीनी छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता पर भी रहता है। चीन में हाई स्कूल की पढ़ाई तीन साल की होती है, यानी 10वीं, 11वीं और 12वीं... इसलिए हाई स्कूल के तीसरे साल के छात्र ही यानी 12वीं क्लास के छात्र ही आम तौर पर इस परीक्षा में हिस्सा लेते हैं। परीक्षा के 20 दिन बाद परिणाम घोषित कर दिये जाते हैं।

आपको बता दें कि चीनी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने के दो तरीके होते हैं। पहला तरीका यह है कि छात्र काओखाओ से पहले 6 विश्वविद्यालय चुन लें, और उनमें ही आवेदन करें। और दूसरा तरीका है कि काओखाओ का रिजल्ट आने के बाद छात्र अपने अंक के आधार पर 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव करें, और फिर उन विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए आवेदन भरें। परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद हरेक विश्वविद्यालय अपना कट-ऑफ लिस्ट निकालता है और उसी के आधार पर छात्रों को दाखिला दिया जाता है।

अन्य प्रवेश परीक्षा की जरूरत नहीं

भारत में छात्रों को मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला पाने के लिए अलग से प्रवेश परीक्षा में बैठना पड़ता है, लेकिन चीन में इस तरह का इंतज़ाम नहीं है। यहां पर इंजीनियरिंग या मेडिकल में प्रवेश पाने के लिए भी काओखाओ के परिणाम को ही आधार मानकर दाखिला दिया जाता है। इस तरह यहां चीनी छात्र बार-बार परीक्षा की तैयारियों से बच जाते हैं और अपनी योग्यता के आधार पर एक बार में ही अपने मनपसंद विश्वविद्यालय में दाखिला ले लेते हैं।

नकलचियों पर रखी जाती है खास नज़र

काओखाओ से चीनी बच्चों के करियर की पूरी दशा और दिशा तय होती है। यही वजह है कि चीन सरकार इस परीक्षा को लेकर बहुत अलर्ट रहती है और इतना ही नहीं, इसे निष्पक्षता से करवाने के लिए कड़े इंतजाम भी किये जाते हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि परीक्षा की पूरी जिम्मेदारी लगभग शिक्षा मंत्रालय की होती है।

परीक्षा में किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो, उसका खासा ध्यान रखा जाता है। परीक्षा के दौरान चीनी प्रशासन आम लोगों के लिए एक खास हेल्पलाइन नंबर भी जारी करती है, जिसकी मदद से सरकार को किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की सूचना दी जा सकती है।

परीक्षा को सुचारु रूप से करवाने और परीक्षा की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए आम पुलिस की तैनाती की जाती है। हर परीक्षा केंद्र पर समर्पित तकनीशियन को तैनात किया जाता है, उनके पास विशेष सिग्नल चैक करने वाले उपकरण होते हैं। इस कारण कोई भी छात्र किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल के जरिए नकल के बारे में सोच भी नहीं पाता।

इनके अलावा कुछेक परीक्षा स्थलों पर ‘ड्रोन’ से भी निगरानी रखी जाती है, जो परीक्षा केंद्रों के ऊपर 500 मीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाते हुए सारे नज़ारे को कैद करते हैं, और पल-पल की जानकारी प्रशासन को देते हैं।

(अखिल पाराशर)

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