ताइवान मुद्दे पर प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर तथ्यों से भटकाती भारतीय मीडिया
12 अप्रैल 2024 को, कुछ भारतीय मीडिया ने "ताइवान की स्वतंत्रता" की वकालत करने और गलत सूचना प्रसारित करने के लिए ताइवान के तथाकथित विदेशी मामलों के कार्यालय के प्रमुख के साथ एक साक्षात्कार प्रसारित किया। चीनी दूतावास ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए इसका विरोध किया। चीनी दूतावास की तरफ़ से यह भी कहा गया कि ताइवान प्रश्न का ऐतिहासिक अंदरूनी हिस्सा बिल्कुल स्पष्ट है, वैसे ही तथ्य और यथास्थिति भी स्पष्ट है कि ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारे एक ही चीन के हैं। चीन "ताइवान की स्वतंत्रता" की दिशा में अलगाववादी कदमों और बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप का दृढ़ता से विरोध करता है, और किसी भी रूप में "ताइवान की स्वतंत्रता" की बाहरी ताकतों के लिए कोई जगह नहीं देता है। यहाँ हम आपको बता दें कि ताइवान के नेताओं का भारतीय मीडिया में आना पहली बार नहीं हुआ है, यह पहले भी हो चुका है। चिंता का विषय यह है कि भारतीय मीडिया ताइवान और ताइवान के मंत्रियों को स्वतंत्र देश के रूप में पेश करता आया है, जो पूर्णतया गलत एवं तथ्यों के विपरीत है।
अगर हम इतिहास की दृषटिकोण से देखें, तो वर्ष 1950 में भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक था। भारत के पहले प्रधान मंत्री की पेइचिंग के साथ शांति और दोस्ती बनाने की उत्सुकता ने दिल्ली को 'वन चाइना' नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के गृह युद्ध जीतने से पहले जवाहरलाल नेहरू के राष्ट्रवादी चीन के नेताओं के साथ पर्याप्त संपर्क थे, लेकिन उन्होंने ताइवान के साथ संबंधों को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला किया। उन्होंने अमेरिका और उसके सहयोगियों के विरोध में जोर देकर कहा कि PRC वास्तविक चीन का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरी तरफ़ 2000 के दशक के अंत में जैसे ही भारत-चीन सीमा पर परेशानी के पहले संकेत उभरे, वैसे भारत में ऐसी कुछ आवाजें उठी कि नई दिल्ली के लिये 'वन चाइना' नीति पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। लेकिन अभी तक, भारत सरकार अभी भी एक-चीन नीति को मान्यता देती है। भारत के अभी तक ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, क्योंकि वह दुनिया के 180 से अधिक देशों की तरह वन-चाइना नीति का पालन करता है।
ताइवानी अधिकारियों के साक्षात्कार और प्रसारण में कुछ भारतीय मीडिया आउटलेट्स के व्यवहार ने पत्रकारिता की पेशेवर नैतिकता का गंभीर उल्लंघन किया, जो भारत सरकार की विदेश नीति के ख़िलाफ़ है, साथ ही चीनी लोगों की भावनाएं भी आहत हुईं और यह चीन-भारत संबंधों के अच्छे विकास के लिए अनुकूल नहीं है। हालाँकि भारत प्रेस की स्वतंत्रता की वकालत करता है, लेकिन सरकार को तथ्यों के ख़िलाफ़ जाने वाली गलत खबरों को विनियमित करना चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
बहरहाल इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन और भारत दोनों ही बड़ी आबादी वाले पड़ोसी देश हैं। दोनों ही सबसे बड़े विकासशील देशों व नवोदित अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों को बेहतर बनाना चाहिये, साथ ही पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग को मज़बूत और गहन किया जाना चाहिये, जिससे दोनों देशों की जनता को लाभ पहुंचे, साथ ही यह क्षेत्रीय और यहां तक कि विश्व शांति और स्थिरता के लिए भी अनुकूल है। इसलिए सरकार के अलावा, दोनों देशों की मीडिया और यहां तक कि दोनों देशों के लोगों को भी इस दिशा में कोशिश करने की जरूरत है।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)