महिलाओं व शिशुओं की देखभाल पर ध्यान दे रहा है चीन
चीन में होते तेज विकास के साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव देखने में आया है। शिक्षा, स्वास्थ्य व रहन-सहन के मामले में चीन ने काफी तरक्की की है। करोड़ों लोगों को गरीबी के चंगुल से बाहर निकाला जा चुका है। स्वास्थ्य की बात करें तो चीन के हर इलाके में लोगों की जीवन प्रत्याशा में इजाफा हुआ है। इसके साथ ही महिलाओं और बच्चों का जीवन स्तर और स्वास्थ्य काफी अच्छा हो गया है। इसके बावजूद एक बड़ी आबादी वाले देश के सामने कई चुनौतियां भी मौजूद हैं, जिन्हें दूर करने के लिए सरकार निरंतर कोशिश कर रही है।
बताया जा रहा है कि हाल में एक योजना जारी की गयी है। जिसमें चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग द्वारा महिलाओं व शिशुओं की स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाने पर जोर दिया गया है। आयोग के मुताबिक चीन ने हाल के वर्षों में उच्च जोखिम गर्भधारण वाली महिलाओं की इलाज व्यवस्था में सुधार किया है। साथ ही जन्मजात जन्म दोषों की जांच भी बढ़ा दी है। वहीं अधिक उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या से निपटने और नवजात शिशुओं की गुणवत्तापूर्ण देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
स्वास्थ्य आयोग के मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य विभाग के उप निदेशक शन हाइफिंग ने हाल में बताया कि 35 साल से अधिक की उम्र में मां बनने वाली महिलाओं के अनुपात को अधिक उम्र की महिलाओं के रूप में परिभाषित किया गया है। साथ ही ऐसी महिलाओं की संख्या में भी इजाफा देखने में आ रहा है, जो पहले ही एक बच्चे को जन्म दे चुकी हैं, लेकिन 35 साल की आयु के बाद फिर से मां बनने वाली हैं। क्योंकि हाल के वर्षों में चीन सरकार ने परिवार नियोजन की नीति में ढील दी है, जिसके कारण ऐसी स्थिति सामने आ रही है।
आंकड़ों के मुताबिक जहां अस्सी के दशक में चीनी महिलाओं की औसत वैवाहिक उम्र 22 साल थी, 2020 में यह बढ़कर 26.3 वर्ष हो गयी है। इससे यह पता चलता है कि आज के समय में महिलाएं आम तौर पर 27.2 साल की उम्र के बाद पहले बच्चे को जन्म दे रही हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2021 में चीन सरकार ने विवाहित जोड़ों को 3 बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी। विशेषज्ञों के मुताबिक इस दौरान चीन में लगातार स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के कारण मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी देखी गयी है।
बताया जाता है कि पिछले साल मातृ मृत्यु दर साल 2020 के मुकाबले 11 फीसदी कम हो गयी। इस तरह एक लाख में से मृत्यु दर 15.1 रह गयी है। जबकि इसी अवधि में शिशु दर में भी गिरावट देखी गयी है, जो कि 17 प्रतिशत कम होकर 1 हज़ार जीवित बच्चों पर 4.5 रह गयी है।
स्वास्थ्य आयोग की ओर से कहा गया है कि गर्भावस्था के जोखिम का आकलन करने और गर्भवती महिलाओं को उनके जोखिम के स्तर के आधार पर वर्गीकृत और प्रबंधित करने के लिए पहले से अधिक प्रयास किए जाएंगे। इसके साथ ही खतरनाक स्थिति से जूझ रही महिलाओं के लिए विशेष उपचार योजनाएं चलाए जाने पर जोर दिया गया है।
अनिल पांडेय