जानिए, चीन के “दो सत्र” के बारे में!

2024-03-04 10:19:04

इस समय, चीन में देश की सबसे बड़ी विधायिका और राजनीतिक सलाहकार निकाय की सबसे बड़ी राजनीतिक सभा होने जा रही है, जिसे “दो सत्र” कहा जाता है। और यह सालाना सत्र मौजूदा और लंबे समय तक चलने वाले मुद्दों को संबोधित करने के लिए चीन के शासन की शक्ति और दृष्टि प्रदान करता है।

चीन का यह दो सत्र देश के सबसे महत्वपूर्ण समारोहों में से एक है, और इस सालाना सत्र के दौरान चीन की राष्ट्रीय शासन प्रणाली और क्षमता पर सभी का ख़ास ध्यान होता है। इस बार उम्मीद की जा रही है कि चीन आगामी "दो सत्रों" की बैठकों में साल 2024 के लिए "नई उत्पादक शक्ति" हासिल करने की अपनी योजना को बढ़ावा देने की कोशिश करेगा।

इस साल देश की सबसे बड़ी विधायिका एनपीसी (नेशनल पीपुल्स कांग्रेस), और सबसे बड़ा राजनीतिक सलाहकार निकाय सीपीपीसीसी (चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस) का आयोजन क्रमशः 5 मार्च और 4 मार्च से शुरू होने जा रहा है। और यह पिछले साल में सरकार के काम की समीक्षा करने और आगामी वर्ष के लिए देश की प्राथमिकताओं को अंतिम रूप देने के लिए अपने संबंधित सत्र आयोजित करती हैं।

चीनी प्रधानमंत्री द्वारा सरकारी कार्य रिपोर्ट की समीक्षा करना दो सत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।दरअसल, यह कार्य रिपोर्ट देश की रिपोर्ट कार्ड और रोड मैप दोनों होता है। इस रिपोर्ट में न केवल पिछले वर्ष में सरकार के कार्यों का सारांश होता है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास के संदर्भ में सरकार की प्राथमिकताओं और लक्ष्यों को भी बताया जाता है।

खैर, अब यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीन का संसदीय सत्र भारत के संसदीय सत्र से कितना अलग और कितना समान है।

चलिए, सबसे पहले बात करते हैं एनपीसी की। एनपीसी यानी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा चीन की एक सर्वोच्च अधिकार संस्था है, और यह भारत की निचली प्रतिनिधि सभा यानी लोक सभा के लगभग समान है। जिस तरह लोक सभा का गठन वयस्‍क मतदान के आधार पर प्रत्‍यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है, उसी प्रकार एनपीसी के जन प्रतिनिधियों का चयन भी चुनाव द्वारा ही किया जाता है और यह चुनाव पांच साल में एक बार किया जाता है। हालांकि, चुनाव प्रक्रिया भारत के आम चुनाव के समान नहीं है।

भारत में लोकसभा के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या 552 होती है, जबकि चीन में एनपीसी प्रतिनिधियों की संख्या लगभग 3000 के आसपास होती है। प्रतिनिधियों की संख्या में थोड़ा बहुत घट-बढ़ होती है। जन प्रतिनिधि सभा चीन की बुनियादी राजनीतिक व्यवस्था है। आमतौर पर इसे चीन की मुख्य व्यवस्थापिका सभा भी कहा जाता है। उसकी भूमिका लगभग भारत के लोकसभा की तरह ही है।

अब बात करते हैं सीपीपीसीसी यानी चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस की। सीपीपीसीसी चीन की सर्वोच्च सलाहकार संस्था है, और उसकी भूमिका काफी हद तक भारत के राज्यसभा की तरह है। सीपीपीसीसी के सदस्यों की संख्या 2 हजार से अधिक होती है, जबकि भारत के राज्य सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित है। सीपीपीसीसी के सदस्यों का कार्यकाल 5 साल का होता है, जबकि भारत के राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है।

सीपीपीसीसी के सदस्य आमतौर पर ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष जानकारी या व्यावहारिक अनुभव होता है। जबकि राज्य सभा में 12 सदस्यों को देश का राष्ट्रपति नॉमिनेट करता है। ये 12 सदस्य खेल, कला, संगीत जैसे क्षेत्रों से आते हैं। बाकी के 238 राज्यसभा सांसद राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आते हैं। सीपीपीसीसी सदस्यों का चयन चुनाव के बगैर विचार-विमर्श द्वारा होता है, जबकि राज्यसभा के सदस्यों को जनता के चुने हुए प्रतिनिधि यानी विधायक चुनते हैं।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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