"कभी भी आधिपत्य की तलाश न करें" चीनी नेताओं का रणनीतिक विचार

2024-02-20 12:59:11

चाहे चीन कितना भी विकसित हो जाए, वह कभी भी आधिपत्य, विस्तार व प्रभाव क्षेत्र की तलाश नहीं करेगा। यह चीनी नेताओं का हमेशा से रणनीतिक विचार रहा है।

पचास साल पहले यानी फरवरी 1974 को जब चीन लोक गणराज्य के तत्कालीन सर्वोच्च नेता माओ त्सेतुंग जाम्बिया के राष्ट्रपति से बात कर रहे थे, तो उन्होंने पहली बार "तीन दुनियाओं" के विभाजन पर रणनीतिक विचार पेश किया। इस विचार का मूल विषय यह है कि अमेरिका और सोवियत संघ पहली दुनिया हैं; एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों के विकासशील देश तीसरी दुनिया हैं; और उक्त दोनों दुनिया के बीच के विकसित देश दूसरी दुनिया हैं। ये "तीन दुनिया" आपस में जुड़ी हुईं हैं और एक-दूसरे के विरोधाभासी भी हैं।

फिर अप्रैल 1974 में चीनी राज्य परिषद के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री तंग श्याओफिंग ने चीन सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र के छठे विशेष सम्मेलन में तीन दुनियाओं के विभाजन पर माओ त्सेतुंग के रणनीतिक विचार के बारे में विस्तार से बताया। उनके अनुसार चीन एक समाजवादी देश और विकासशील देश है। चीन तीसरी दुनिया से है। चीन सरकार और चीनी लोग दृढ़ता से सभी उत्पीड़ित लोगों और राष्ट्रों के न्यायपूर्ण संघर्ष का समर्थन करते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि चीन भविष्य में महाशक्ति नहीं है और न ही बनेगा।

हालांकि माओ त्सेतुंग द्वारा "तीन दुनियाओं" के विभाजन पर अपना रणनीतिक विचार प्रस्तावित किए हुए 50 साल हो चुके हैं, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े विकासशील देश के रूप में, चीन अभी भी महाशक्तियों के आधिपत्यवाद और युद्ध की धमकियों का विरोध करने और विश्व शांति की रक्षा करने पर जोर देता है।

आज चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने फिर एक बार इस बात पर जोर दिया कि चीन कभी भी आधिपत्य या विस्तार नहीं चाहेगा। चीन गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का पालन करते हुए मित्र बनाएगा और एक वैश्विक साझेदारी नेटवर्क बनाएगा। यह चीन की शांतिपूर्ण स्वतंत्र विदेश नीति की विरासत और विकास है, जो आज की दुनिया में देशों के बीच संबंधों को संभालने के लिए एक नया मॉडल प्रदान करता है।

चंद्रिमा

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