क्या कारण है कि एशिया पश्चिम से पिछड़ गया?

2023-12-26 10:48:50

इतिहास की बात करें तो, हर कोई यह जानने में सबसे ज्यादा दिलचस्पी रखता है कि विभिन्न सभ्यताओं ने कैसे अपने पैर पसारे और फिर कैसे समय के साथ-साथ जड़ें कमजोर होती गईं। लेकिन अगर भारत और चीन जैसे दो बड़े एशियाई देशों की बात की जाए तो सवाल यही उठता है कि सबकुछ होने के बावजूद भी भारत और चीन पश्चिमी देशों की बराबरी क्यों नहीं कर पाए, और इनसे पीछे क्यों रह गए?

इतिहास के पन्ने गवाह हैं जब भारत को सोने की चिड़िया, और चीन को एक विशाल सभ्यता वाला देश कहा जाता था। यह वाकई एक जटिल सवाल है जिसके बारे में इतिहासकारों की राय काफी अलग-अलग हैं।

भारत और चीन ने ऐतिहासिक प्रगति के लिए साइंस एंड टेक्नोलॉजी में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। इन दोनों एशियाई देशों ने गणित, खगोल विज्ञान, कैलेंडर, आविष्कार आदि में प्रमुख खोजें की थीं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि एक बंद सामंती व्यवस्था ने एशिया में प्रगति में बाधा उत्पन्न की, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि एशियाई देशों ने पूर्व-पश्चिम व्यापार को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई थी। फिर भी, यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है कि वास्तव में चीजें कब बदलीं।

एक सिद्धांत बताता है कि चीन के अंतिम सामंती राजवंश, छिंग राजवंश और भारत के अंतिम राजवंश, मुगल राजवंश ने निरंकुश और बंद नीतियां लागू कीं, जिससे वे आधुनिक सभ्यता में पिछड़ गए। हालाँकि, यूरोप में अल्पसंख्यक समूहों के पास भी लंबे समय तक सत्ता रही।

देखा जाए तो कभी-कभी, सभ्यताएँ केवल उन कारणों से बढ़ती और गिरती हैं, जिनका प्रगति या गिरावट से कोई लेना-देना नहीं होता है। वास्तव में, जब अलग-अलग तरह की संस्कृतियाँ आपस में मिलती हैं और अपने विचार साझा करती हैं, तो इससे अक्सर समाज को आगे बढ़ने में मदद मिलती है।

चीन में यह अनूठी प्रणाली थी, जहां हजारों वर्षों से परीक्षाओं के जरिए प्रतिभाशाली लोगों का चयन किया जाता था। उस प्रणाली को शाही परीक्षा प्रणाली कहा जाता था। कुछ लोगों का तर्क है कि सैन्य ताकत की उपेक्षा पर जोर देना ही चीन के पिछड़ेपन का मूल कारण रहा। उसने सैन्य ताकत के बजाय परीक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया।

लेकिन गौर करें तो आज भी, हम स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज, रिसर्च सेंटर, सरकारी नौकरियां आदि के लिए स्मार्ट और टैलेंटिड लोगों को चुनने के लिए परीक्षाओं का उपयोग करते हैं। चीन में शाही परीक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे प्रारंभिक प्रतिभा चयन प्रणाली थी, जो बहुत हद तक निष्पक्ष भी थी।

इतिहास कैसे आगे बढ़ा, इस बारे में लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि यूरोपीय लोगों ने महान यात्राओं, नई दुनिया की खोज और गुलामों, सोने और मसालों के व्यापार जैसी घटनाओं के साथ ऐतिहासिक प्रगति की, जिससे आधुनिक इतिहास को आकार मिला।

हालाँकि, चीन के सिल्क रोड और भारत के स्पाइस रोड जैसे प्राचीन व्यापार मार्ग सदियों तक फलते-फूलते रहे। प्राचीन काल में एशिया के लोगों को लंबी दूरी और समुद्री यात्राओं से परहेज नहीं था। पूर्वी एशिया से भूमध्य सागर की यात्रा करने वाले अधिकांश व्यापारी वास्तव में एशियाई थे।

एक अन्य विचार यह है कि प्राचीन काल में मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया सभ्यता के मुख्य केंद्र थे, जबकि अन्य स्थान उतने विकसित नहीं थे। लेकिन इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि आखिर औद्योगिक क्रांति यूरोप में क्यों शुरू हुई, प्राचीन मिस्र या मेसोपोटामिया में क्यों नहीं हुई।

ऐसे अन्य सिद्धांत हैं जो यह समझाने की कोशिश करते हैं कि एशियाई देश औद्योगिक क्रांति से क्यों चूक गए। कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा इसलिए था क्योंकि वे धातु और कांच बनाने की टेक्नोलॉजी में काफी पीछे थे, जिसकी वजह से ये देश आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी में ज्यादा तरक्की नहीं कर पाये।

हालाँकि, छोटी-छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करने वाले ये विचार बहुत विश्वसनीय नहीं हैं। इन निष्कर्षों में विश्वसनीयता की कमी है। आज हम देखें तो भारत और चीन अब वैश्विक वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति का हिस्सा हो गए हैं। इस नई टेक्नोलॉजी के युग में शामिल होने से ये दोनों देश डिजिटल टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी, बायोटेक और बहुत कुछ मानव जाति के भविष्य को आकार देने की ताकत रखते हैं।

फिलहाल, भारत और चीन इन क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं। अपनी स्मार्ट और इंटेलिजेंट आबादी के कारण दुनिया में अपनी धाम जमा रहे हैं। यदि वे राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण गलतियों से बचें, तो एशिया के ये दो महान देश निस्संदेह अपना ऐतिहासिक गौरव फिर से प्राप्त कर लेंगे और इस सदी के अंत तक दुनिया के सबसे उन्नत देश बन जायेंगे।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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