पटरी पर कैसे लौट सकते हैं भारत-चीन संबंध?

2023-12-25 10:45:57

भारत और चीन, दुनिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताएँ हैं, उनका अपना समृद्ध इतिहास है, अलग-अलग संस्कृतियाँ हैं और बहुत बड़ी आबादी भी है। सदियों से, इन दो पड़ोसी देशों के बीच संबंध अलग-अलग तरह के रहे हैं, कभी सहयोग वाला, तो कभी प्रतिस्पर्धा वाला और कभी-कभी तो तनावपूर्ण वाला भी रहा है। हालांकि, उनके बीच संघर्ष और असहमति चाहे कितनी भी हो, फिर भी इनके बीच सहयोग और पारस्परिक विकास की संभावनाएं अपार हैं।

हाल के दशकों में, दोनों देशों ने आपसी समझ को बढ़ावा देने, विश्वास बनाने और दोतरफा संबंधों को मजबूत करने में लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ाने के महत्व को पहचाना है। और यकीनन, दोनों देशों में काफी समानताएं हैं, जो उन्हें एशिया में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में एक आदर्श भागीदार बनाती है।

देखा जाए तो भारत और चीन के बीच सहयोग से दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को शांति का सपना देखने का मौका मिल सकता है। जहां, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण का विचार पेश किया था। वहीं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “वसुधैव कुटुंबकम” यानी “पूरी दुनिया एक परिवार है” के विचारों को बढ़ावा दिया।

जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और महामारी के प्रकोप से उत्पन्न चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, भारत और चीन को सहयोग करना चाहिए क्योंकि वे दोनों इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपसी समझ साझा करते हैं। इन दोनों देशों के पास एक स्पष्ट सुरक्षा संरचना है जो मुख्य रूप से मानव और मानवता की सुरक्षा पर केंद्रित है।

खैर, पूरी तरह से लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान बहाल करना भारत और चीन के बीच संबंधों को ठीक करने की दिशा में एक जरूरी और पहला कदम है। इस तरह के आदान-प्रदान एक पुल के रूप में काम कर सकते हैं जो दिलों को जोड़ता है और समझ और विश्वास को मजबूत करता है।

दरअसल, लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान रिश्तों में बाधाओं को दूर करने, दोस्ती को बढ़ावा देने और दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता होती है। अलग-अलग पृष्ठभूमि से आये लोगों के बीच बातचीत एक नई संस्कृति को जानने, एक अलग भाषा सीखने और विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर देती है।

जहां तक भारत और चीन का सवाल है, दोनों देशों के बीच यात्रा की सुविधा को प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है। इसे हासिल करने के लिए, सीधी फ्लाइट को फिर से शुरू करना और अच्छे ढंग से प्रक्रियाएं बनाना बहुत आवश्यक है। ये कदम मौलिक हैं क्योंकि ये लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए बुनियाद तैयार करते हैं। वहीं, छात्रों के आदान-प्रदान प्रोग्राम को बढ़ावा देना दोनों देशों के बीच आपसी समझ बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

इसके अलावा, दोनों देशों के बुद्धिजीवियों, विद्वानों आदि के बीच आदान-प्रदान, संयुक्त सेमिनार और सम्मेलन आयोजित किये जा सकते हैं। इससे विशेषज्ञता साझा करने और सहयोग के लिए नए विचारों को उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है। यह सहयोग अलग-अलग क्षेत्रों, जैसे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, मानविकी, राजनीति विज्ञान, मीडिया आदि में किया जा सकता है।

वहीं, पारंपरिक चिकित्सा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में छात्रों के बीच आदान-प्रदान और सहयोग को प्रोत्साहित करके, हम सहयोग को और बढ़ा सकते हैं और एक सकारात्मक वातावरण बना सकते हैं जो विश्वास को बढ़ावा देता है।

इसके अलावा, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाया जा सकता है, जो दोनों देशों की सकारात्मक छवि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अपनी संस्कृतियों की समृद्धि और विविधता के बारे में एक-दूसरे को बताया जा सकता है, और गलतफहमियों और नकारात्मक धारणाओं को दूर किया जा सकता है। इतना ही नहीं, अनुकूल और सकारात्मक माहौल बनाने के लिए दोनों देशों के बीच अधिक से अधिक मीडिया संपर्क को बढ़ावा देना भी जरूरी है।

इसमें कोई शक नहीं है कि लोगों-से-लोगों के बीच आदान-प्रदान, जो सांस्कृतिक समझ, शैक्षिक सहयोग और आर्थिक जुड़ाव पर आधारित है, इन देशों के नागरिकों के बीच लंबे समय तक चलने वाले संबंधों को बढ़ावा देने में काफी संभावनाएं रखता है।

दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले और प्रभावशाली देशों के रूप में, भारत और चीन के कंधों पर एशिया और दुनिया के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अनौपचारिक बैठक, जैसे कि वुहान और महाबलीपुरम में हुई थी, ने मैत्रीपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संबंधों की क्षमता दिखाई थी।

इस तरह के उच्च-स्तरीय संवाद और जुड़ाव को बनाए रखने से नागरिकों के बीच आशा और सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। सरकारी अधिकारियों के अलावा, संवाद में शैक्षणिक संस्थान, विश्वविद्यालय और अनुसंधान केंद्र सहित सभी स्तरों पर लोगों के बीच आदान-प्रदान शामिल होना चाहिए।

भारत और चीन को अपने मतभेदों का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए बातचीत, संवाद और विश्वास-निर्माण के उपायों में संलग्न होना चाहिए। सहयोग और समझ की भावना को बढ़ावा देकर, दोनों देश अपने क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने और उनके बीच विश्वास को मजबूत करने की दिशा में काम कर सकते हैं।

(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

रेडियो प्रोग्राम