एक बांह वाले मशाल वाहक सोंग माओदान की कहानी
हांगचो एशियाई खेलों के मशाल रिले में एक ऐसे मशाल वाहक हैं, जिनकी दाहिनी बांह नहीं है। पर वे अपने बाएं हाथ में मशाल रखते हुए बहुत आत्मविश्वास से दौड़ते हैं। वे हैं एक बांह वाले तैराक सोंग माओदान।
8 वर्ष की उम्र में एक दुर्घटना में सोंग को अपनी दायीं बाह खोनी पड़ी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बहुत मेहनत से पढ़ाई की। सितंबर 2007 में शिक्षकों और विद्यार्थियों के प्रोत्साहन और समर्थन के कारण उन्होंने थोंगलू काउंटी में आयोजित एक तैराकी प्रतियोगिता में भाग लिया, और उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की। दूसरे साल उन्होंने प्रांतीय खेल प्रशिक्षण टीम में शामिल होकर औपचारिक रूप से ट्रेनिंग शुरू की। वर्ष 2010 में उन्होंने पहली बार क्वांगचो एशियाई पैरा खेलों में भाग लिया, और एक स्वर्ण पदक और एक रजत पदक प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने क्रमशः वर्ष 2012 के लंदन पैरालंपिक और वर्ष 2016 के रियो पैरालंपिक आदि प्रतियोगिताओं में कई चैंपियनशिप प्राप्त कीं और विश्व रिकार्ड भी तोड़े।
तैराकी से रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले विश्वविद्यालय में पढ़ाई की, फिर नया बिजनेस खोलने का प्रयास किया। साथ ही उन्होंने युवा पैलेस में जाकर जन कल्याण उपक्रमों में भाग लिया। वे अपने अनुभव का इस्तेमाल अधिक से अधिक लोगों को कठिनाइयों का बहादुरी से सामना करने और लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
चंद्रिमा