परमाणु-दूषित जल निर्वहन से जापान की साख पूरी तरह दिवालिया हो गई

2023-08-23 14:24:48

देश-विदेश में कड़े विरोध के बावजूद, जापान सरकार ने 22 अगस्त को घोषणा की कि वह 24 अगस्त को फुकुशिमा परमाणु-दूषित पानी को समुद्र में छोड़ देगी। उसी दिन, जापान के लोगों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और प्रशांत रिम के देशों ने एक के बाद एक इस फैसले की निंदा की और मांग की कि जापान इस फैसले को वापस ले। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आमतौर पर यह मानता है कि जापान द्वारा समुद्र में परमाणु-दूषित पानी को जबरन छोड़ना अभूतपूर्व है, जो "न केवल अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है, बल्कि अपरिवर्तनीय आपदाएं भी ला सकता है।"

जब दो साल पहले जापान सरकार ने समुद्र में परमाणु-दूषित पानी छोड़ने की योजना की घोषणा की, तब से इस योजना की वैधता, वैधानिकता और सुरक्षा पर सवाल उठाए गए हैं। सार्वजनिक आक्रोश को शांत करने के लिए जापान सरकार और टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने फुकुशिमा के लोगों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से वादा किया कि वे हितधारकों की समझ प्राप्त करने से पहले प्राधिकरण के बिना परमाणु-दूषित पानी का निपटान नहीं करेंगे। लेकिन तथ्यों से पता चलता है कि जापान सरकार अपने वचन का पालन नहीं करती है।  

इस साल फरवरी से, कई जापानी सरकारी अधिकारियों ने फुकुशिमा के लोगों को इस योजना के बारे में बार-बार समझाया है। योजना के आरंभ की घोषणा से ठीक एक दिन पहले, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने देश भर के मत्स्य प्रतिनिधियों से मुलाकात की, लेकिन अभी भी सभी पक्षों की सहमति और समझ नहीं मिल पाई है। फुकुशिमा के 71 वर्षीय मछुआरे हारुओ ओनो ने कहा, "जाहिर तौर पर हम सभी इसके खिलाफ हैं, सरकार अपनी मर्जी से वचन को कैसे तोड़ सकती है?"

जापान सरकार सिर्फ घरेलू लोगों को ही धोखा नहीं देना चाहती है। पिछले दो वर्षों में, जापान अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में जानबूझकर यह भ्रम पैदा कर रहा है कि समुद्री जल निकासी योजना "सुरक्षित और हानिरहित" है।

साथ ही, जापान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया शिखर सम्मेलन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय अवसरों का उपयोग कर यह कथन फैलाने के लिए भी किया कि "परमाणु-प्रदूषित पानी के समुद्र में छोड़ने का वैज्ञानिक आधार है"।

दूसरी ओर, जापान परमाणु-प्रदूषित पानी को समुद्र में छोड़ने के लिए "पास" खरीदने में बहुत पैसा खर्च करता है। दक्षिण कोरिया की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) द्वारा इस जुलाई में मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करने से पहले, जापान सरकार ने पहले ही मसौदा रिपोर्ट प्राप्त कर ली थी और कुछ अहम संशोधन प्रस्तावित भी किए थे। जापानी अधिकारियों ने आईएईए के कार्यकर्ताओं को करीब 10 लाख से ज्यादा यूरो भी दिए थे। अमेरिकी समुद्री रेडियोलॉजी विशेषज्ञ केन बुसेस्लर ने बताया कि जापान सरकार केवल सबसे सस्ता और तेज़ समाधान चाहती है, यानी परमाणु-प्रदूषित पानी को सीधे समुद्र में छोड़ना।

कई अध्ययनों से पता चला है कि फुकुशिमा परमाणु-दूषित पानी में बड़ी संख्या में रेडियोधर्मी तत्व होते हैं, जिनमें ट्रिटियम, कार्बन 14, कोबाल्ट 60, स्ट्रोंटियम 90 आदि शामिल हैं। समुद्री धाराओं के प्रभाव के कारण, ये पदार्थ पूरे प्रशांत महासागर या यहां तक कि वैश्विक महासागर में फैल सकते हैं, जिससे समुद्री पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर अथाह प्रभाव पड़ सकता है। जापानी पक्ष द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 70% परमाणु-दूषित पानी मल्टी-न्यूक्लाइड उपचार प्रणाली (एएलपीएस) द्वारा उपचारित होने के बाद निर्वहन मानक को पूरा नहीं करता है। आईएईए की मूल्यांकन रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि एएलपीएस "परमाणु-दूषित पानी में सभी रेडियोन्यूक्लाइड को नहीं हटा सकता"। इसके अलावा, जापानी पक्ष ने परमाणु-दूषित जल डेटा की प्रामाणिकता और सटीकता और समुद्री निर्वहन की निगरानी की व्यवस्था जैसी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी है।

ऐसी परिस्थितियों में, जापान जबरन परमाणु-दूषित पानी को समुद्र में छोड़ता है, जो सभी मानव जाति के लिए परमाणु प्रदूषण के भारी जोखिम को स्थानांतरित करता है, और इसका कड़ा विरोध किया जाएगा।

समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, समुद्री पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण करना सभी देशों का दायित्व है। जापान को अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी कानूनी हथियार उठाकर मुआवज़े के लिए जवाबदेही तय करने का पूरा अधिकार है।

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