जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए दृढ़संकल्पित होना है ज़रूरी

2023-08-15 15:54:15

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अब दुनिया भर में देखने को मिल रहे हैं। किसी भी समय तेजी से बारिश या तापमान में काफी इजाफा सभी लोगों को परेशान करने वाला होता है। पिछले दिनों जुलाई 2023 के महीने को अब तक के सबसे गर्म महीने के रुप में आंका गया। विशेषज्ञों द्वारा तापमान बढ़ने के कई कारकों के अध्ययन के बाद और वैश्विक भौगोलिक परिस्थितियों के पूर्व रिकार्डों को जांचने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा गया है। ये ऐसी घटना थी जिसे पिछले एक लाख बीस हजार वर्षों में भी नहीं देखा गया था। पृथ्वी पर इतना अधिक तापमान सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में ऐसे हालात और भी देखे जा सकते हैं, ऐसे में सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए कदम उठाने शुरू भी कर दिए हैं।

पृथ्वी पर मौजूद सभी महाद्वीपों में इस तरह की घटनाएं देखने को मिल रही है। अत्याधिक तापमान या अतिवृष्टि जैसे मौसम से पृथ्वी का कोई भी भू-भागों छूटा नहीं है। ऐसे हालात को झेल रहे सभी जगहों पर जान-माल का भी काफी नुकसान होता है और स्थानीय प्रशासन को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए भी काफी मेहनत करनी होती है। पिछले दिनों एशिया की दो प्रमुख राजधानियों पेईचिंग और दिल्ली में भी अत्याधिक वर्षा की वजह से काफी नुकसान देखने को मिला। अचानक काफी बारिश की वजह से बाढ़ जैसे हालात ने सभी को प्रभावित किया। हालांकि दोनों ही शहरों के स्थानीय प्रशासन और  त्वरित कार्रवाई दलों ने अपने पूरे सामर्थ्य से कार्य करते हुए कई लोगों का जीवन बचाया और राहत भी प्रदान की। ऐसी भौगोलिक परिस्थितियां आने का पूर्वानुमान लगाते हुए चुनौतियों से निपटने की तैयारी भी बहुत मुश्किल होती है। ऐसे में राहत और बचाव दलों को हर समय सजग एवं सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु से संबंधित सभी कांफ्रेंसों में हमेशा से ही दोनों देश जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने और कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लक्ष्यों को लेकर दृढ़संकल्पित रहे हैं। जहां भारत ने नेट ज़ीरो का लक्ष्य वर्ष 2070 रखा है तो चीन ने कार्बन न्यूट्रल बनने के लिए वर्ष 2060 का लक्ष्य रखा है।

पर्यावरणविदों का मानना है कि पूरे पृथ्वी गृह के पास अभी 40 - 50 वर्षों का समय है और हम सभी मिलकर कई कदम उठाते हुए जलवायु परिवर्तन के हो रहे असर को काबू में ला सकते हैं लेकिन उसके बाद सभी चीजें मनुष्यों के हाथ से निकल सकती है और हालात विकराल भी हो सकते हैं। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर होने वाली संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में कम से कम कार्बन उत्सर्जन पर जोर दिया जा रहा है ताकि पृथ्वी के तापमान में कमी लाई जा सके। साथ ही अधिक से अधिक घने जंगलों की मौजूदगी और प्राकृतिक संसाधनों को नहीं छेड़ने पर भी जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा डीज़ल और पेट्रोल के वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक और सौर ऊर्जा से चलने वाली कारों और बसों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पृथ्वी के सभी वासी मिलकर ही इस आगामी खतरे से एक जुट होकर निपट सकते हैं।

(विवेक शर्मा)

 

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