क्या जापानी राजनेता "बल प्रयोग" उकसाकर थाईवान के लोगों को फिर से आग के कुंड में धकेलना चाहते हैं?

2023-08-12 17:02:13

जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के उपाध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री तारो एसो ने हाल में थाईवान की यात्रा की और थाईवान को "मुख्यभूमि के साथ युद्ध के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहने" के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी कार्रवाइयों की विभिन्न क्षेत्रों में कड़ी आलोचना हुई है। जापान के ओकिनावा के गवर्नर डेनी तमाकी ने 10 अगस्त को कहा कि तारो एसो का बयान जापानी सरकार की नीति के विपरीत था, और उम्मीद थी कि सरकार गलतफहमी से बचने के लिए चीन के साथ बातचीत शुरू कर सकती है।

इस बार तारो एसो थाईवान की यात्रा की और खुले आम "बल प्रयोग" को उकसाया, इसने जापानी सैन्यवाद की लंबे समय से चली आ रही और खतरनाक प्रवृत्ति को उजागर किया। थाईवान के लोगों ने कहा कि उन्होंने तारो एसो के "बल प्रयोग" वाले शब्दों को सुनने के बाद भयभीत महसूस किया, क्यों इससे उन्हें थाईवान के आधी सदी तक जापान द्वारा उपनिवेश बने रहने के दुखद इतिहास की याद आ गई।

19वीं शताब्दी के मध्य में, जापान ने पूर्वी एशिया को जीतने और "दुनिया पर हावी होने" के प्राथमिक लक्ष्य के रूप में थाईवान पर कब्ज़ा कर लिया, और सैन्य विस्तार की एक श्रृंखला लागू की। 1894-1895 के चीन-जापान युद्ध में तत्कालीन छिंग राजवंश की सरकार की हार हुई और उसे 1895 में "शिमोनोसेकी संधि" पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब, जापान ने थाईवान और फ़ंगहू द्वीपों पर कब्ज़ा कर लिया और अनगिनत अपराध करते हुए अपना 50 साल का औपनिवेशिक शासन शुरू किया।

औपनिवेशिक शासन को मजबूत करने के लिए जापानी आक्रमणकारियों ने गवर्नर, सेना, सैन्य पुलिस और पुलिस की स्थापना करके थाईवान के लोगों के जापान-विरोधी संघर्ष को क्रूरता से दबा दिया। असंपूर्ण आँकड़ों के अनुसार, जापानी औपनिवेशिक काल के दौरान लगभग 6 लाख थाईवानी लोग मारे गए थे।

इसके अलावा, जापान ने थाईवान की आर्थिक लूट भी तेज़ कर दी और थाईवान के विदेशी व्यापार पर एकाधिकार करके थाईवान के विशाल आर्थिक संसाधनों को जापान में स्थानांतरित कर दिया। साल 1945 तक, जापानी औपनिवेशिक एकाधिकार पूंजी ने थाईवान में कुल बैंक जमा का 60 प्रतिशत, बिजली उद्योग का 96 प्रतिशत और चीनी उद्योग का 94 प्रतिशत नियंत्रित किया।

उधर, संस्कृति के संदर्भ में, जापान ने थाईवान में उपनिवेशीकरण और आत्मसात्करण की नीति लागू की और गुलाम शिक्षा का कार्यान्वयन किया। उन्होंने थाईवान के लोगों में जापानी भाषा और संस्कृति को विकसित किया, साथ ही, चीनी भाषा और चीनी संस्कृति की विरासत पर रोक लगा दिया। यहां तक कि लोगों को चीनी नाम का इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्होंने चीनी संस्कृति के प्रभाव को जड़ से ख़त्म करने का प्रयास किया।

थाईवान को उपनिवेश बनाने और चीन पर आक्रमण करने में जापान द्वारा किए गए गंभीर अपराधों को देखते हुए, साल 1972 में जारी "चीन-जापान संयुक्त वक्तव्य" में जापान ने युद्ध के कारण चीनी लोगों को हुई बड़ी क्षति के लिए गहरा पश्चाताप व्यक्त किया और मान्यता दी कि चीन लोक गणराज्य की सरकार चीन की एकमात्र कानूनी सरकार है। जापान चीन के रूख को पूरी तरह से समझता है और उसका सम्मान करता है कि थाईवान चीन की प्रादेशिक भूमि का एक अभिन्न अंग है।

जापान के पूर्व प्रधान मंत्री के रूप में तारो एसो जापानी सरकार द्वारा चीन के प्रति की गई प्रतिबद्धताओं से अनभिज्ञ नहीं हो सकते। हालाँकि, वह विपरीत रूख अपना कर उपनिवेशवादी के अहंकार के साथ थाईवान के मामलों पर उंगलियां उठाईं, एक-चीन सिद्धांत और चीन व जापान के बीच चार राजनीतिक दस्तावेजों की भावना का उल्लंघन कर खतरनाक कथन दिया, उन्होंने चीन-जापान संबंधों के लिए और अधिक कठिनाइयाँ पैदा कीं।

अब 21वीं सदी का तीसरा दशक है, और चीन अब छिंग राजवंश की सरकार नहीं है, जब 1895 में "शिमोनोसेकी संधि" पर हस्ताक्षर किए गए थे, और जापान को थाईवान मुद्दे पर गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। चीन का पूर्ण राष्ट्रीय एकीकरण एक अबाधित ऐतिहासिक प्रवृत्ति है।

(श्याओ थांग)

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