चीन के महान दोस्त रविंद्रनाथ टैगोर
7 अगस्त, 1941 को रविंद्रनाथ टैगोर का निधन कलकत्ता में हुआ। टैगोर विश्व प्रसिद्ध कवि व लेखक के साथ भारत में मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और दार्शनिक भी हैं। वे न सिर्फ़ चीनी संस्कृति के बारे में खूब जानते थे, बल्कि उन्होंने चीन-भारत के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की है।
टैगोर के परिवारजन, खास तौर पर टैगोर अपने आप चीनी दर्शन और चीनी संस्कृति में खूब माहिर थे। टैगोर के पिता जी और दादा जी दोनों ने चीन की यात्रा की थी। टैगोर न सिर्फ़ चीनी संस्कृति को पसंद करते थे, बल्कि चीनी जनता से भी बहुत प्यार करते थे।
वर्ष 1924 में टैगोर ने पहली बार चीन की यात्रा की। चीन में उन्हें हार्दिक स्वागत मिला। लेकिन उसी समय चीन में बड़ा रूपांतरण हो रहा था। हालांकि उनकी यात्रा में समृद्ध उपलब्धियां हासिल हुईं, लेकिन अशांत राजनीतिक माहौल ने उनकी सफलता को छिपा दिया। पर उसी समय उन्होंने चीन के सांस्कृतिक जगत में गहन प्रभाव डाला।
टैगोर को व्यापक चीनी सांस्कृतिक जगत से प्रशंसा मिली। चीन के प्रसिद्ध लेखक, विचारक और आधुनिक चीनी साहित्य के संस्थापक लू श्वेन के ख्याल से टैगोर एक साम्राज्यवादी विरोधी थे। चीनी मशहूर महिला लेखिका बिंग शिन के अनुसार उन्हें सच्चे दिल से टैगोर की कविताएं पसंद हैं। जैसे रास्ते पर चलते हुए एक सुन्दर फूल नज़र आया। उनके अलावा चीन के प्रसिद्ध चित्रकार शू पेइहोंग ने टैगोर के लिये एक विशेष चित्र भी बनायी। यह चित्र अभी तक टैगोर के पूर्व निवास में संरक्षित है, जो टैगोर व चीनी दोस्तों के बीच दोस्ती का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।
टैगोर जिन्दगी भर एक शांतिवादी थे। वे गांधी जी की तरह अहिंसा पर विश्वास करते थे। चीन के प्रति टैगोर का प्यार बहुत गहरा था। चीन के खिलाफ़ जापानी आक्रमण युद्ध के दौरान चीनी जनता को प्रोत्साहन देने के लिये वर्ष 1939 के 26 दिसंबर को टैगोर ने बिना झिझक के चीनी मित्रों को यह संदेश भेजा कि चीन ने दृढ़ता और बलिदान की भावना से अपनी महानता साबित की है। चीनी लोग महाकाव्य के वीर जैसे हैं। मेरे विचार में भविष्य में चीन की विजय ज़रूर मानव की सभ्यता में प्रकाश डालेगी। इस विचार में न सिर्फ़ चीनी जनता के प्रति टैगोर की शुभकामनाएं, बल्कि उनकी अभूतपूर्व बुद्धि व दूरदृष्टि भी छिपी हुई है।
भारत वापस लौटने के बाद टैगोर ने एक स्कूल की स्थापना की, जहां चीनी भाषा और चीनी संस्कृति की पढ़ाई होती थी। ताकि दोनों पुरातन सभ्यता वाले देशों के बीच सांस्कृतिक संपर्क को मजबूत किया जा सके। इस चीनी कॉलेज की स्थापना के बाद कई भारतीय महान नेताओं, जैसे महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने टैगोर को पत्र भेजकर बधाई दी। उन्हें आशा है कि यह चीनी कॉलेज दोनों देशों के सांस्कृतिक अध्ययन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेगा।
टैगोर जिन्दगी भर सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अपील करते रहे। उन्होंने कुल मिलाकर तीन बार चीन की यात्रा की, और चीनी संस्कृति के प्रति सम्मान व्यक्त किया और खूब प्रशंसा की। टैगोर की कविताएं भी चीन में बहुत लोकप्रिय हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चीनी पाठक उन की सुन्दर कविताओं में मग्न हो गये। टैगोर के विचारों में सांस्कृतिक सहनशीलता शामिल हुई है। मानव साझा नियति समुदाय के निर्माण में टैगोर के विचार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।
चंद्रिमा