सहयोग से विकसित होगी अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता:डॉ. मनीष संघानी

2023-07-18 16:29:29

अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्य हमेशा से ही मानवीय जिज्ञासाओं को कौतूहल से भरते रहे हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक लगातार अंतरिक्ष की जानकारी और ग्रहों पर जीवन की तलाश में जुटे हुए हैं। अलग अलग देश अपनी क्षमताओं के मुताबिक़ इस वैश्विक विकास में अपना अपना योगदान दे रहे हैं । इस वैश्विक योगदान में अपनी भूमिका निभाते हुए भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान 3 लॉंच किया है। 

लगभग डेढ़ दशक से ज़्यादा वक़्त से भारत चंद्रयान मिशन में जुटा है। गौरतलब है कि चंद्रयान 1 और 2 के बाद चंद्रयान 3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र का फ़ॉलोअप मिशन है। चंद्रयान-3 को पृथ्वी की सतह से चांद तक पहुंचने में 42 दिन का समय लगेगा। इस दौरान यह करीब 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी तय करेगा। यह 23 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड करेगा।

चंद्रयान 3 के सम्बंध में चाइना मीडिया ग्रुप की पत्रकार ने जूनागढ़ , गुजरात के नोबल विश्वविद्यालय में अनुसंधान के सहायक निदेशक और खगोलशास्त्री डॉ. मनीष संघानी से बातचीत की।

डॉ. मनीष बताते हैं कि भारत चंद्रयान 3 के ज़रिए चंद्रमा की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की उपलब्धि हासिल करना चाहता है। अब तक चंद्रमा की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग कराने में सिर्फ़ तीन देश यानी अमेरिका, चीन और रूस को ही कामयाबी मिली है। चंद्रयान 3 के ज़रिए भारत भी इस सूची में शामिल हो जाएगा। चंद्रयान 3 का प्राथमिक उद्देश्य अगस्त 2023 की समय सीमा में चंद्रमा में दक्षिणी ध्रुव के पास ऊँचे इलाक़ों में एक लैंडर और रोवर को स्थापित करना है।

गौरतलब है कि चंद्रयान-1 मिशन के दौरान साउथ पोल में बर्फ के बारे में पता चला था।

इसकी सतह का बड़ा हिस्सा नॉर्थ पोल की तुलना में ज्यादा छाया में रहता है क्योंकि यहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -230 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा सकता है। संभावना इस बात की भी जताई जाती है कि इस हिस्से में पानी भी हो सकता है। चांद के साउथ पोल में ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में शुरुआती सौर प्रणाली के लुप्‍त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हो सकते हैं।

चंद्रयान 2 के विषय में बात करते हुए डॉ. मनीष कहते हैं कि उस मिशन के माध्यम से भी भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ़्ट लैंडिंग की कोशिश की थी लेकिन इस मिशन में भारत आंशिक रूप से विफ़ल रहा था। इस मिशन का लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग करने में असफल रहा था। लेकिन अपनी असफलताओं से सबक़ लेते हुए इसरो ने चंद्रयान 3 में कई बड़े बदलाव किए है।

 चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बना देगी। गौरतलब है कि चंद्रयान 3 मिशन में करीब 615 करोड़ रुपये का बजट खर्च हुआ है। अमेरिका और रूस दोनों के चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने से पहले कई स्पेस क्राफ्ट क्रैश हुए थे। चीन 2013 में चांग'ई-3 मिशन के साथ अपने पहले प्रयास में सफल होने वाला एकमात्र देश है।

चंद्रमा पर अब तक कुल 110 मिशन हो चुके हैं, जिनमें 42 असफल हुए हैं। चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए 38 बार कोशिशें की गई हैं मगर इसमें 52 प्रतिशत प्रयास ही सफल हुए हैं। भारत से पहले चंद्रमा पर 6 देशों या एजेंसियों ने अपने यान भेजे हैं लेकिन अधिकतर को कामयाबी नहीं मिली है।

 मिशन मून से जुड़े प्रयोगों में चीन दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जो सबसे ज्‍यादा प्रयोग कर रहा है। चीन चांद पर पहले ही सफलतापूर्वक अपना रोवर उतार चुका है। चीन का ये रोवर वहां से 1 किलो 731 ग्राम नमूने लेकर लौटा था। इस रोवर के अलावा भी चीन के दो और रोवर झूरोंग और यूटू-2 अभी भी चांद पर मौजूद हैं और चांद से जुड़ी अहम जानकारी धरती पर भेज रहे हैं।

चाँद पर दुनिया भर के देशों की नज़र है। चंद्रयान 3 के साथ भारत ने इस स्पेस रेस में एक कदम आगे बढ़ाया है। चीन ने भी 2030 से पहले इंसानों को चंद्रमा पर भेजने की घोषणा की है। वह चंद्रमा पर रिसर्च सेंटर स्थापित करने के लिए रूस के साथ मिलकर काम कर रहा है। स्पेस रेस में नासा अपने आर्टेमिस मिशन के साथ तैयार है।

डॉ. मनीष संघानी का मानना है कि चंद्रयान-3 मिशन न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। लैंडर चांद की उस सतह पर जाएगा जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी मौजूद नहीं है। इसलिए इस मिशन से हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद के विषय में जानकारी और बढ़ेगी, इससे न केवल चांद के बारे में, बल्कि अन्य ग्रहों के विषय में भी भविष्य के अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता विकसित होगी।

(दिव्या पाण्डेय)

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