महाकवि रबींद्रनाथ ठाकुर की पहली चीन यात्रा

2023-04-10 10:19:08

12 अप्रैल को चीन-भारत सांस्कृतिक आदान प्रदान के इतिहास में एक अविस्मरणीय दिवस है ।निन्यानवे साल पहले इसी दिन भारतीय महाकवि रबींद्रनाथ ठाकुर ने चीनी संस्कृति और अध्ययन जगत के निमंत्रण पर शांगहाई पहुंचकर अपनी पहली चीन यात्रा शुरू की ।इस यात्रा से दोनों देशों ने पारस्परिक समझ बढ़ाकर गहरी मित्रता बनायी जिससे दूरगामी प्रभाव पैदा हुआ ।

वर्ष 1913 में रबींद्रनाथ ठाकुर ने नोबेल साहित्य पुरस्कार प्राप्त किया  ।इस के बाद उन की कई रचनाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया जिसका चीनी पाठकों ने स्वागत किया । इस के साथ ठाकुर चीनी संस्कृति में बड़ी रूचि भी रखते थे ।जब चीनी संस्कृति व अध्ययन जगत ने उन को चीन आने का निमंत्रण दिया ,तो ठाकुर ने फौरन ही बड़ी खुशी से स्वीकार किया ।

21 मार्च 1924 को ठाकुर एक छ:सदस्यों वाले प्रतिनिधि मंडल को

लेकर जहाज द्वारा कोलकाता से रवाना हो गये ।प्रतिनिधि मंडल में विश्व भारती विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व संस्कृत विशेषज्ञ क्षितिमोहन सेन ,मशहूर चित्रकार नंदला बोस, कोलकाता इतिहास भवन के प्रोफेसर

कालिदास नाग आदि शामिल थे ।

जब वे शांगहाई के बंदरगाह पहुंचे ,तो उन को शांगहाई साहित्य अध्ययन संघ ,शांगहाई युवा संघ ,मीडिया और वहां रह रहे प्रवासी भारतीय समुदाय के 600 से अधिक लोगों का उत्साहपूर्ण स्वागत मिला ।ठाकुर ने चीनी दोस्तों को बताया कि पता नहीं क्या कारण है कि चीन पहुंचते ही ऐसा

महसूस होता है जैसे घर लौट आया हूं। मुझे हमेशा लगता है कि भारत चीन का करीबी रिश्तेदार है ।चीन और भारत पुराने भाई हैं । शांगहाई और हांग चो शहर की यात्रा करने के बाद ठाकुर नान चिंग पहुंचे ।यहां उन्होंने स्थानीय सांस्कृतिक जगत को संबोधित कर एक शानदार भाषण दिया ।उन्होंने कहा कि मैं इस बार चीनी संस्कृति को नमन करने के लिए आया हूं। मेरी चीन के प्रति प्राकृतिक भावना है ।थोड़ी बड़ी बात कहें ,तो हमारा कार्य चीन और भारत के बीच स्थगित संपर्क बहाल करना है ।हमें मिलकर गलतफहमी दूर कर अंधेरे में निकलने वाले अंकुर को उत्साहित करना चाहिए ।

23 अप्रैल को भारतीय प्रतिनिधि मंडल पेइचिंग पहुंचा।इस दौरान ठाकुर ने विभिन्न मौकों पर सिलसिलेवार भाषण दिये ,जिस से बड़ी सामाजिक प्रतिक्रिया मिली ।उन्होंने अपने भाषण में चीन भारत परंपरागत मित्रता की याद दिलायी और दोनों देशों की जनता की मित्रता बढ़ाने तथा एक साथ पूर्वी सभ्यता का प्रचार करने पर बल दिया ।7 मई को ठाकुर की 64वीं जयंती है ।चीनी अध्ययन जगत के दोस्तों ने ठाकुर का जन्मदिन धूमधाम से मनाया ।

पेइचिंग की यात्रा करने के बाद भारतीय प्रतिनिधि मंडल फिर उत्तर चीन के थाईयुएं शहर चले गये और 29 मई को शांगहाई से जापान रवाना हो गये ।

चीन की यात्रा करने के बाद ठाकुर का चीन के साथ गहरा लगाव रहा ।वे चीन के एक ईमानदार और अच्छे दोस्त बने ।वर्ष 1954 में तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री चो एनलाई ने भारत की यात्रा करते समय कहा कि हम चीन के प्रति ठाकुर का प्यार कभी भी भूल नहीं सकते ।हमें ठाकुर द्वारा चीन के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष में दिये गये समर्थन नहीं भूलना चाहिए।(वेइतुंग)

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