बौद्ध धर्म के इतिहास में श्वेन त्सांग का अविस्मरणीय योगदान

2023-02-21 15:13:59

25 फरवरी बौद्ध धर्म के विकास और चीन-भारत के सांस्कृतिक आदान प्रदान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है ।वर्ष 645 के उस दिन में श्वेन त्सांग भारत में अनेक साल तक अध्ययन करने के बाद तत्कालीन थांग राजवंश की राजधानी छांग आन वापस आये ।उन्होंने सफलता से बड़ी संख्या वाले बौद्ध सूत्र लाये ।बादशाह ली शीमिन ,दरबार के सभी वरिष्ठ अधिकारियों और हजारों लोगों ने श्वेन त्सांग का जोरशोर से स्वागत किया । 

 श्वेन त्सांग का जन्म वर्ष 602 में मध्य चीन के ह नान प्रांत के येन शी क्षेत्र में हुआ ।13 वर्ष में वे गृहत्याग कर एक भिक्षु बन गये ।बड़े होने के बाद उन्होंने विभिन्न स्थान घूमकर मशहूर बौद्ध गुरुओं से सूत्र सीखे ।पर इस दौरान उन्होंने पाया कि विभिन्न सूत्रों में बड़ा फर्क मौजूद है और गुरुओं के व्याख्यान भी अलग अलग हैं ।उलझन सुलझाने और सही सूत्र पाने के लिए उन्होंने बौद्ध धर्म के जन्म स्थान भारत जाने का फैसला किया ।   

वर्ष 627 के अगस्त में श्वेन त्सांग ने छांग आन से रवाना होकर अकेले यह लंबी यात्रा शुरू की ।वे आज के शिन च्यांग ,मध्य एशिया और अफगानिस्तान से गुजर कर उत्तर पश्चिमी भारत में दाखिल हुए ।इस दौरान उन्होंने रेगिस्तान ,बर्फ से ढके ऊंचे पहाड़ ,डाकू व बदमाश,जैसी कई कठिनाइयों का सामना किया ।वर्ष 631 में श्वेन त्सांग अंत में तत्कालीन बौद्धधर्म केंद्र नालंदा संघाराम पहुंचे ।वहां वे विख्यात धर्माचार्य शीलभद्र से मिले और उन से शिक्षा लेने लगे, वे नालंदा संघाराम में पाँच साल ठहरे ।बौद्ध धर्म के अलावा उन्होंने भाषा , हेतु विद्या,संगीत व चिकित्सा आदि शास्त्र भी पढ़े ।वर्ष 637 में श्वेन त्सांग ने पूरे भारत में भ्रमण शुरू किया। वे विभिन्न स्थानों के मशहूर धार्मिक गुरुओं और अध्ययनकर्ताओं से मिले और मूल्यवान संस्कृत बौद्धिक पुस्तकें ढूंढीं ।12 साल बाद वे फिर नालंदा संघाराम लौटे ।अपने गुरु शीलभद्र के आदेश का पालन कर उन्होंने ‘महायान समुपारिग्रह शास्त्र’  सिखाया । 41वर्ष की आयु में श्वेन त्सांग को स्वदेश जाने की इच्छा हुई ।नरेश शिलादित्य ने उन के सम्मान में राजधानी में एक भव्य धार्मिक समारोह आयोजित किया ,जिस में 5 हजार से अधिक महायान व हीनयान शास्त्रों के गुरुओं ने भाग लिया ।श्वेन त्सांग ने इस महासभा पर महायान शास्त्र का व्याख्यान किया और महायानदेव की उपाधि प्राप्त की ।  

वर्ष 643 में श्वेन त्सांग स्वदेश रवाना हो गये ।25 फरवरी 645 को वे छांग आन पहुंचे ।उन्होंने अपने साथ बौद्ध धर्म की पुस्तकें और विभिन्न प्रकार की बुद्ध प्रतिमाएं लायीं ।इस के बाद उन्होंने सूत्रों के अनुवाद में पूरी शक्ति लगायी ।बीस वर्षों में श्वेन त्यांग ने 75 बौद्ध सूत्रों के 1335 खंदों का अनुवाद किया ,जिस ने चीनी बौद्ध धर्म के विकास में बड़ा योगदान दिया । 

उल्लेखनीय बात है कि श्वेन त्सांग ने महान थांग राजवंश काल में पश्चिम की यात्रा नामक एक पुस्तक लिखी ।इस में उन्होंने अपनी यात्रा का विस्तृत वर्णन किया ।यह पुस्तक प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के लिए अनमोल संपत्ति है ।

वर्ष 664 में श्वेन त्सांग का निधन हुआ ।वे चीन और भारत की जनताओं के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान और मित्रता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं। (वेइतुंग)

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