भारत और चीन के बीच सकारात्मक रिश्ते के संकेत

2022-04-02 12:42:30

हिंदू मान्यता के अनुसार बौद्ध धर्म के संस्थापक ईश्वर के दसवें अवतार हैं। भगवान बुद्ध की जिन शिक्षाओं पर बौद्ध मत आधारित है, उनका पहला संदेश भगवान बुद्ध ने सारनाथ की धरती पर दिया था। भारत की यह धरती बौद्ध मतावलंबियों का वैश्विक तीर्थ है। बौद्ध नाम से कालांतर में जो धार्मिक मत विकसित हुआ, उसकी यात्रा भारत से ही शुरू हुई और श्रीलंका, चीन, थाइलैंड, जापान होते हुए पूरे पूर्वी एशिया तक फैल गई। चीन में बौद्ध मतावलंबी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। इस नाते देखें तो भारत की भूमि चीन के अधिसंख्य निवासियों के लिए गुरू भूमि है। चीन और भारत एक-दूसरे के बेहद नजदीकी पड़ोसी हैं। ऐसे में अव्वल होना तो यह चाहिए था कि भारत और चीन के बीच रिश्ते बेहद सरल और सहज होते। लेकिन दुर्भाग्यवश आज भारत और चीन के बीच भरोसेमंद रिश्ते की कमी है। लेकिन जिस तरह से चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने 25 मार्च को अघोषित भारत यात्रा की है, उससे लगता है कि दोनों देशों ने भूराजनैतिक स्थितियों को समझ कर एक-दूसरे की तरफ सकारात्मक कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है।

यह संयोग ही है कि एक अप्रैल भारत और चीन के कूटनीतिक रिश्तों की शुरूआत की सालगिरह है। 1अप्रैल 1950 को भारत और चीन की सरकारों के बीच औपचारिक कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए थे। चीन की जनक्रांति के बाद नई सरकार के साथ समाजवादी और मार्क्सवादी विचार वाले देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते बन तो गये थे, लेकिन गैर समाजवादी देशों से औपचारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं बने थे। भारत इस कड़ी में पहला देश रहा, जिसने चीन की तरफ कूटनीतिक दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

चीन और भारत की कूटनीतिक दोस्ती की सालगिरह के ठीक छह दिन पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत आना दोनों देशों के रिश्तों के बीच आ रहे सकारात्मक बदलावों का संकेत हो सकता है। वैसे तो कूटनीतिक स्तर पर कभी जिम्मेदार व्यक्ति असहज और गैरकूटनीतिक बातें करने से परहेज करते हैं। राजनीति और कूटनीति की दुनिया में संकेतों में संदेश दिए जाते हैं। लेकिन वांग यी ने स्पष्ट कहा है कि दोनों देश भरोसा बहाली की तरफ बढ़ रहे हैं। वांग यी ने चीनी समाचार एजेंसी सिन्हुआ को कहा, “उन्होंने (वांग यी) बेहद उत्सुकता से महसूस किया कि दोनों पक्ष (भारत-चीन) दोनों देशों की महत्वपूर्ण इस आम राय को मानने के लिए सहमत हैं कि वे एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं हैं।” वांग यी ने यह भी कहा कि भारत और चीन के लिए जो चिंता की असल वजहें हैं, उन व्यावहारिक समस्याओं का समाधान, आपसी मतभेदों को दूर करना और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना आवश्यक है।’ बदले वैश्विक हालात और भूराजनैतिक परिस्थितियों में चीन का भारत की तरफ दोस्ती की तरफ हाथ बढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। ध्यान रहे साल 2021 में गलवान घाटी में हुई दोनों देशों की सेनाओं की झड़प के बाद दोनों देशों के संबंध इधर कुछ दशकों मे सब से नीचे स्तर पर पड़े ।

वांग यी की भारत यात्रा के दौरान भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अपनी बात भी रख दी थी। उनका कहना था कि दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों की बहाली के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और अमन बहाली जरूरी है।सीमांत इलाके में चीनी सेनाओं की वापसी को लेकर भारत मानता है कि बातचीत सकारात्मक है। लेकिन उसकी गति धीमी है। भारत को इस बात की चिंता है कि जितनी तेजी इस दिशा में दिखनी चाहिए, वैसी नहीं दिख रही।

बहरहाल चीनी विदेश मंत्री वांग यी की अघोषित यात्रा होना और उसके बाद यह कहना कि भारत और चीन एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं हैं और आपसी मतभेदों को दूर किया जा सकता है, दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों की 72 साल की यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकते हैं। दोनों देशों के संबंध सुधरें, यह दोनों देशों के नागरिकों के लिए अच्छा है। भारत और  चीन के बीच सहज रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए ऐतिहासिक कदम तभी बढ़ाया जा सकता है, जब आपसी मतभेद दूर हों, सीमा की समस्या का सकारात्मक हल हो। (लेखक : उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ टिप्पणीकार )

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