चीन-भारत रिश्तों में "हिंदी-चीनी भाई-भाई" नारे का महत्व

2022-03-30 15:33:53

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1950 के दशक में "हिंदी-चीनी भाई-भाई" भारत में एक लोकप्रिय नारा था। उस समय, भारत और चीन ने औपनिवेशिक और अर्ध-औपनिवेशिक शासन से छुटकारा पाया और क्रमशः नए गणराज्यों की स्थापना की। भारत ने 1950 में चीन लोक गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। चीन और भारत के नेताओं ने रणनीतिक ऊंचाई पर खड़े होकर हाथ मिलाते हुए एक-दूसरे का समर्थन किया और संयुक्त रूप से "शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत (पंचशील)" की वकालत की, जिसका अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस तरह के भाईचारे के रिश्ते को कुछ समय के लिए एशियाई और अफ्रीकी देशों में एक बहुप्रशंसित कृति के रूप में माना गया। उस समय, जब चीनी प्रधानमंत्री चोउ एनलाई ने भारत का दौरा किया, तो हर जगह "पंचशील जिंदाबाद" और "हिंदी-चीनी भाई-भाई" जैसे जयकारे सुने जा सकते थे। तब से, यह आकर्षक नारा भारत की विशाल भूमि पर भी गाया जाता है।

यह नारा कहां से आया? बता दें कि महान भारतीय कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवनकाल में तीन बार चीन का दौरा किया। उन्होंने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की शुरुआत की और इस तरह टैगोर चीन में काफी लोकप्रिय हुए। अप्रैल 1924 में, टैगोर ने पहली बार चीन का दौरा करते हुए चिनान में आयोजित स्वागत सभा में "हिंदी-चीनी भाई-भाई" शीर्षक भाषण दिया। और चीन-भारत राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने "हिंदी-चीनी भाई-भाई" के नारे को भी बढ़ावा देना शुरू किया।

हालाँकि, कुछ ऐतिहासिक कारणों से, 1962 में चीन और भारत के बीच सीमा क्षेत्र में सशस्त्र संघर्ष हुआ और दोनों देशों के बीच संबंध कुछ समय के लिए ठंडे हो गए। 14 साल बाद, 1976 में, चीन और भारत ने राजदूत स्तरीय संबंधों को बहाल करना शुरू किया, जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों के सामान्यीकरण की शुरुआत को चिह्नित किया। तब से, दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंधों में लगातार सुधार आया, लोगों के आदान-प्रदान और उच्च-स्तरीय पारस्परिक यात्राओं में इजाफा हुआ और आर्थिक व व्यापारिक आदान-प्रदान लगातार मजबूत हुआ। इस तरह के व्यापार ने दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया और निस्संदेह द्विपक्षीय संबंधों के विकास को बढ़ावा देने में सकारात्मक भूमिका निभाई। हालांकि, यदि द्विपक्षीय संबंध सिर्फ वाणिज्यिक आदान-प्रदान के स्तर तक सीमित रहें, ऐसा दोनों देशों के लोग नहीं चाहते हैं। नई सदी की शुरुआत के बाद से, विश्व संरचना में गहरा बदलाव आया है। चीन और भारत, दो प्रमुख विकासशील देश, कई सामान्य समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और इस दौरान दोनों देशों के संबंधों में भी बड़ा बदलाव आया। दोनों देशों के नेताओं के सामने एक प्रमुख मुद्दा है कि चीन और भारत फिर से कैसे मैत्रीपूर्ण संबंधों को बहाल करने के लिए हाथ मिला सकते हैं।

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जब अनबन होती है, तो दोनों देशों के लोगों को हमेशा नुकसान पहुंचता है। हम आशा करते हैं कि कठिन विकास प्रक्रिया के बाद चीन-भारत संबंध परीक्षा में खरे उतरेंगे और अधिक परिपक्व हो सकेंगे। हमारे पास यह मानने के कारण भी हैं कि चीन-भारत संबंधों का लंबा इतिहास है और भाईचारे के रिश्ते सूरज की तरह हैं, जो कभी भी एक छोटे से काले बादल से हमेशा के लिए ढके नहीं रहेंगे।

(मीनू)

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