वर्ष 2022 ब्रिक्स शिखर सममेलनः ब्रिक्स के सदस्यों और विश्व के सामंजश्य की परखी

2022-03-30 16:34:35

अगर ब्रिक्स के सदस्य देश खासकर रूस ,भारत और चीन सामंजस्य दिखाएंगे, तो वर्ष 2022 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन वैश्विक रूख को बदल सकेगा ।कई पश्चिमी देशों के विश्लेषकों के विचार में ब्रिक्स महज सदस्य देशों के लिए सम्मानजनक प्रचार-प्रसार है ।पर ब्रिक्स देशों के आपस में जो सीमा-पार भुगतान तंत्र का विकास हो रहा है ,वह ग्लोबल बैकिंग नेटवर्क के विकल्प के नाते उन को धक्का दे सकेगा ।ध्यान रहे रूस-चीन व्यापार में अमेरिकी डॉलर का अनुपात वर्ष 2015 के लगभग 90 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020 के 46 प्रतिशत तक आ गिरा है ।

ब्रिक्स देशों में विश्व की 41.5 प्रतिशत आबादी बसी हुई है ।इसलिए उन को शांति और व्यवस्था फिर कायम रखने की अधिक जिम्मेदारी है । वर्तमान में ब्रिक्स के सदस्य  रूस ,भारत और चीन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं ।रूस और चीन पश्चिम के दबाव को झेल रहे हैं ,जबकि भारत और चीन के बीच सीमा मुद्दे पर मतभेद मौजूद हैं ।

अवश्य ब्रिक्स का विभाजन कई देशों के लिए अनुकूल है ,पर यह ब्रिक्स सदस्यों और पूरे विश्व के प्रतिकूल है ।चीन और रूस के लिए पश्चिम के साथ मतभेद दूर करने में समय लगेगा ,पर चीन और भारत के मतभेद के खींचातानी से गंभीर परिणाम पैदा होंगे ।

सीमा के पश्चिमी सेक्टर पर भारत और चीन के सैनिकों का आमने-सामने होने में दो साल हो गये हैं ।दोनों देशों को इस के समाधान के लिए कदम उठाना चाहिए ताकि इस साल के देर में चीन में होने वाले शिखर सम्मेलन का मंच तैयार हो सके ।

3 हजार से अधिक वर्षों में चीन और भारत का आर्थिक आकार विश्व के आधे से अधिक रहा ।लेकिन औद्योगिक क्रांति से उत्तर अमेरिका और यूरोप 150 साल के स्वर्ण युग में दाखिल हुए ।कोविड-19 महामारी के बाद की शुरुआत में भारत और चीन वास्तव में चौराहे पर स्थित हैं ।

यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निकर्षणछेदनतापताडनैः । तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते श्रुतेन शीलेन कुलेन कर्मणा॥

उपरोक्त संस्कृत उद्धरण के अनुसार, "जैसे सोने की शुद्धता को चार तरीकों से परखा जाता है, अर्थात् रगड़ना, काटना, जलाना और पीटना। मनुष्य या रिश्ते की परीक्षा चार तरीकों से होती है, अर्थात् सीखना, आचरण, वंशावली और क्रिया।" क्या भारत-चीन विवाद को सुलझाने के लिए कार्य करेंगे या इस के बदलते विश्व-परिदृश्य से बेखबर रहेंगे, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में और कड़वाहट आ सकती है?

पश्चिमी विश्लेषक ब्रिक्स देशों के मतभेदों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने में जुटे हुए हैं ।वे प्रोपोगैंडा के कला का प्रयोग कर विकासशील देशों के मतभेद को सनसनीखेज बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि घरेलू श्रोताओं ,राजनीकि विपक्षों और राजनयिक मजबूरी को भ्रमित किया जाए ।

ब्रिक्स मुख्य तौर पर आर्थिक मामलों पर फोकस रखते हैं ,पर येकाटरिनबर्ग शिखर बैठक में ब्रिक्स ने राजनीतिक पहचान शुरू किया ।इस शिखर बैठक के बयान में ब्रिक्स के नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय कानून ,समानता ,पारस्परिक सम्मान ,सहयोग ,समंवित काररवाई और सामूहिक रूप से निर्णय लेने पर आधारित एक अधिक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की अपील की ।वर्ष 2008 की शिखर बैठक का बयान अब तक विश्व के लिए उपयोगी और प्रासंगिक है ।इस के अलावा ब्रिक्स देशों के नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के चौतरफा सुधार की वकालत भी की ताकि यूएन अधिक लोकतांत्रिक और कार्यकुशल बन जाए ।

अब तक ब्रिक्स की महत्वपूर्ण उपलब्धियां वित्तीय सहयोग में प्राप्त हुई हैं ,जैसे नये विकास बैंक (एनडीबी) ,आपात रिजर्व प्रबंधन(सीआरए) और अन्य वित्तीय समन्वित उपकरण ।एनडीबी ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए अपने अपने मुद्रा का प्रयोग करने का वादा किया ,जो ब्रिक्स की डॉलर विच्छेद पहल का सिरा है ।अमेरिका और चीन—रूस के बीच तनाव बढ़ने के कारण डी-डॉलराइजेशन को गति मिली है । डी-डॉलराइजेशन से वैश्विक वित्त पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है ।उदाहरण के लिए सउदी अरब चीन के साथ चीनी मुद्रा युआन से चीन को तेल बेचने पर विचार कर रहा है ।गौरतलब है कि चीन सउदी अरब के निर्यातित तेल का 25 प्रतिशत खरीदता है ।

उधर भारत रूस के साथ व्यापार बनाए रखने के लिए एक वैकल्पिक भुगतान तंत्र अपना रहा है ।उल्लेखनीय बात है कि रूस-चीन व्यापार में अमेरिका डॉलर के प्रयोग का अनुपात वर्ष 2015 के 90 प्रतिशत से गिर कर वर्ष 2020 में 46 प्रतिशत हो गया ।

रूस और चीन ने सीमा-पार भुगतान तंत्र आरंभ किया है ,जो अमेरिका से नियंत्रित सोसाएटी फोर वर्ल्ड इंटरबैंक फाइनैंशल टेलेकम्मुनिकेशन नेटवर्क (स्विफ्ट) का विकल्प देखा जाता है ।ब्रिक्स ने अपने सदस्यों के आपस में रिटेल और भुगतान के लिए एक मानक भुगतान तंत्र का अवधारणा प्रस्तुत किया है ।

अंत में मैं एक चीनी मुहावरे का हवाला देना चाहता हूं कि सुदूर संबंधी निकट पड़ोसी से उपयोगी नहीं है ।ब्रिक्स खासकर रिक (रूस ,भारत और चीन ) को "पोस्टेरा क्रेस्कम लॉड" (जिसका अर्थ है 'भावी पीढ़ियों के सम्मान में आगे बढ़ना') के आदर्श वाक्य का पालन करना चाहिए। जैसा चाणक्य ने कहा:

कः कालः कानि मित्राणी को देशः व्यय व्ययौ ।

कश्चं का च मे शक्ति चिंत्यं मुहुर्मुहुः

निम्नलिखित पर बार-बार विचार करें: सही समय, सही दोस्त, सही जगह,

आय के सही साधन, खर्च करने के सही तरीके और जिनसे आप अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं।

(लेखक: श्री प्रसून शर्मा, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (एनवाईयू) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी लीडरशिप के लिए पेंटलैंड-चर्चिल फैलो हैं। 2016 से, उन्होंने नीति समन्वय समूह के एक सदस्य के रूप में चीन-भारत सामरिक आर्थिक संवाद में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।)

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