चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा से बढ़ी द्विपक्षीय संबंधों की बहाली की उम्मीद

2022-03-28 20:33:04

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चीनी स्टेट काउंसलर एवं विदेश मंत्री वांग यी ने 25 मार्च को भारत की यात्रा की। हालांकि इस यात्रा से पहले दोनों देशों की तरफ़ से कोई आधिकारिक अधिसूचनाएं नहीं थीं। फिर भी ऐसा माना जा रहा है कि उनकी यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों के मजबूत होने की उम्मीद है। साथ ही यह दोनों देशों के संबंधों की बहाली के लिए भी अनुकूल है। क्योंकि यह एक ऐसा दौरा था जो दोनों देशों के बीच जून 2020 में सीमा पर हुई झड़प के बाद पहली बार हुआ।

वांग यी ने 25 मार्च को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। दोनों पक्षों ने सहमति व्यक्त की कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और शांति बहाल करना दोनों देशों के सामान्य हित में है। अलगाव के आधार पर सामान्यीकृत प्रबंधन और नियंत्रण प्राप्त करना और गलतफहमी और गलत निर्णयों को रोकने के लिए प्रभावी उपाय करना आवश्यक है। इसके साथ साथ दोनों पक्षों ने आर्थिक व व्यापारिक सहयोग, लोगों की आवाजाही, सीमा पार नदियों की सूचनाओं के आदान-प्रदान पर संवाद किया। दोनों पक्षों ने कोविड-19 महामारी, यूक्रेन, अफगानिस्तान तथा बहुपक्षीय मामलों पर चर्चा की।

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वार्ता के बाद विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कहा कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ उनकी बातचीत लगभग तीन घंटे तक चली और कई मुद्दों पर खुलकर और वास्तविक रूप से चर्चा हुई। जानकारी के अनुसार, दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों, सीमा मुद्दे और रूस-यूक्रेन तनाव की स्थिति जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया। साथ ही दोनों पक्षों ने भारतीय छात्रों की वीज़ा समस्या, भारत में 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए जाने और भारत में चीनी कंपनियों को व्यापार करने से रोकने और अन्य विषयों पर भी विचार-विमर्श किया।

विश्लेषण के मुताबिक, यह यात्रा चीन-भारत संबंधों के लिए एक "बर्फ पिघलने वाली यात्रा" है। भारतीय मीडिया के अनुसार इस यात्रा के जरिए चीन द्विपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करने और इस साल चीन में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के सुचारू रूप से आयोजन की नींव रखना चाहता है। भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए, दोनों पक्षों के बीच पिछले दो वर्षों से जारी तनाव ने लगभग 30 वर्षों में हासिल उपलब्धियों को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में यह यात्रा दोनों संबंधों में सुधार करने के लिए एक जरिया बन सकती है। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि इस यात्रा से द्विपक्षीय रिश्तों के बेहतर होने की उम्मीद बढ़ रही है।

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यात्रा से पहले, दोनों देशों के बीच कुछ सकारात्मक संकेत दिखाई दिये। कई हफ्तों से पहले, भारतीय फ़िल्म नॉट आउट (Kanaa) को चीन में रिलीज़ होने के बाद बॉक्स ऑफिस पर अच्छी रेटिंग मिली। इसके बाद, 21 मार्च को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी विमान हादसे पर शोक जताया। जबकि, भारत में चीनी राजदूत सुन वेइतुंग ने इसके लिए मोदी जी को धन्यवाद दिया।

वहीं इसी महीने भारत ने पड़ोसी देशों से 66 निवेश योजनाओं को मंजूरी देने की घोषणा की, इनमें चीन भी शामिल है। उधर विदेश मंत्री वांग यी की भारत की संक्षिप्त यात्रा एक सकारात्मक संकेत है। जबकि भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के भी अगले कुछ महीनों में चीन का दौरा करने की संभावना है, ताकि दोनों देशों के बीच संबंधों की बहाली पर चर्चा हो सके।

उधर रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष जारी है, जिससे चीन और भारत के संबंधों में व्यापक सहमति, स्थिति और सामान्य हित भी सामने आए हैं। भारतीय मीडिया ने भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त जनरल के हवाले से कहा कि वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल ने भारत और चीन को एक-दूसरे के प्रति अपने दृष्टिकोण को समायोजित करने के लिए प्रेरित किया है। भारत वाशिंगटन की गतिविधियों पर पूरा ध्यान दे रहा है और जानता है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण अमेरिका का रणनीतिक ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र से यूरोप की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष से चीन-भारत संबंधों में एक सूक्ष्म मोड़ आया है, जिसमें चीन और भारत ने रूस के प्रति एक समान रुख अपनाया है। यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य अभियान पर संयुक्त राष्ट्र के मसौदा प्रस्ताव पर पिछले महीने वोटिंग करने से दूर रहकर दोनों देश शांति का आह्वान कर रहे हैं। यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद न तो चीन और न ही भारत ने यूक्रेन पर रूस की “विशेष सैन्य कार्रवाई” की निंदा की। साथ ही, अमेरिका और पश्चिमी देशों के अपने सहयोगियों और साझेदारों से रूस पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करने के आधार पर नई दिल्ली सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों में रूस के साथ सहयोग पर ज़ोर दे रहा है। जिनमें भारत का रूस से S-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली को खरीदना,और रूस से कच्चे तेल और कोयले जैसे ईंधन के आयात में बढ़ावा देना प्रमुख उदाहरण हैं।

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हालांकि, हाल ही में अमेरिका रूस को लेकर भारत के रुख से खुश नहीं है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन पर रूस की “विशेष सैन्य कार्रवाई”को लेकर भारत के रुख पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई के खिलाफ समर्थन दिखाने में भारत की स्थिति थोड़ी असमंजस वाली है। ऐसी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और भू-राजनीति की पृष्ठभूमि में, चीन और भारत के बीच संबंधों में सुधार के लिये एक निश्चित अवसर पैदा हुआ है।

जैसे कि विदेश मंत्री वांग यी बार-बार ज़ोर देते हैं, चीन और भारत 280 करोड़ आबादी वाले सबसे बड़े विकासशील देशों व नवोदित अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि हैं और वैश्विक बहुध्रवीककरण, आर्थिक भूमंडलीकरण, सभ्यताओं की विविधता, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लोकतांत्रिकरण बढ़ाने वाली दो मजबूत शक्तियां हैं। वर्तमान परिस्थिति में दोनों को संपर्क व समन्वय मजबूत कर विकासशील देशों के हितों की रक्षा में योगदान देने की जरूरत है। 

लेकिन यह भी सच है कि इतिहास जैसे विभिन्न कारणों से, चीन और भारत के बीच सीमा मुद्दे पर मतभेद मौजूद हैं, जिनका थोड़े समय में संतोषजनक ढंग से हल मुश्किल है। हालांकि, वर्तमान दुनिया में सभी देशों का भविष्य, भाग्य व हित आपस में जुड़े हुए हैं, जैसे पहले कभी नहीं थे। टकराव से निकलने का कोई रास्ता नहीं है, सहयोग ही सही रास्ता है। कहा जा रहा है कि विदेश मंत्री वांग यी की यह यात्रा चीन-भारत संबंधों के लिये एक नई शुरुआत है, जो द्विपक्षीय रिश्तों को धीरे-धीरे पटरी पर वापस लाएगी।

(रमेश शर्मा)

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