रूस-यूक्रेन संघर्ष से मोदी सरकार की राजनयिक स्वतंत्रता दिखी

2022-03-23 16:28:07

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रूस व यूक्रेन के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद लगभग एक महीना बीत चुका है। देखने में यह रूस व यूक्रेन के बीच एक संघर्ष है, बल्कि इस के पीछे अर्थव्यवस्था, आम राय तथा राजनीति समेत कई क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा छिपी हुई है।

यह कहा जा सकता है कि इस सैन्य संघर्ष का सबसे बड़ा लाभार्थी अमेरिका है। क्योंकि जो भी जीते या हारे, वह अमेरिका के पुराने दुश्मन रूस की ताकत को कमजोर करेगा। साथ ही अमेरिका ने इस बहाने से रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया और यूरोप में अतिरिक्त सैन्य तैनाती भी की। उनके अलावा अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार बेचने से खूब पैसे भी कमाये हैं। यही कारण है कि अमेरिका हमेशा दुनिया भर में संघर्ष छेड़ना पसंद करता रहा है।

उधर अमेरिका की धमकी से कुछ देश रूस पर दबाव डालने लगे। लेकिन कुछ देश अमेरिका से नहीं डर रहे हैं। वे यूक्रेन मामले के स्रोत से और सुरक्षा मामले पर रूस की चिंता पर ध्यान देते हुए तर्कसंगत दृष्टि से रूस-यूक्रेन संघर्ष को देखते हैं। भारत उन देशों में से एक है।

इस संघर्ष की शुरूआत से ही भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से इस मामले पर अपना तटस्थ रुख दिखाया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस पर यूक्रेन पर आक्रमण करने का आरोप नहीं लगाया, और विभिन्न पक्षों से शीघ्र युद्ध विराम कर शांतिपूर्ण वार्ता के रास्ते पर वापस लौटने की अपील की।

हालांकि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भाषण देते समय अमेरिका-भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के समूह यानी क्वाड की चर्चा में यह कहा है कि रूस के प्रति जापान और ऑस्ट्रेलिया का रुख बहुत सख्त और दृढ़  है, लेकिन भारत का नहीं। उधर जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी अमेरिका का समर्थन देने के लिये क्रमशः मोदी को अपना रुख बदलने के लिये राज़ी करने की बड़ी कोशिश की। जापानी प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो ने भारत में 50 खरब जापानी येन का पूंजी-निवेश करने की घोषणा की। और ऑस्ट्रेलिया ने भी 28 करोड़ ऑस्ट्रेलियन डॉलर की पूंजी लगाने का दावा किया। पर इस के पीछे मोदी को समझाकर यूक्रेन मामले पर रूस पर दबाव डालने की कोशिश छिपी हुई है।

उल्लेखनीय बात यह है कि मोदी सरकार रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अपना स्पष्ट तटस्थ रूख अपनाती है, जिससे भारत की राजनयिक स्वतंत्रता दिखाई दी है।

चंद्रिमा

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