हालांकि गुलाब दिया गया पर हाथ में खुशबू

2022-02-23 19:12:36

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महान भिक्षु ह्वेन त्सांग शायद आप सभी को मालूम हैं। क्योंकि उन्होंने चीन व भारत के बीच यहां तक कि वैश्विक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण योगदान दिये हैं।

13 वर्ष की उम्र में ह्वेन त्सांग एक भिक्षु बन गये। उन्होंने चीन के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया और कई प्रसिद्ध भिक्षुओं से सीखा। लेकिन बौद्ध धर्म के बारे में भिन्न-भिन्न भिक्षुओं के कथन भी भिन्न-भिन्न हैं। मनोवैज्ञानिक भ्रम को दूर करने के लिए उन्होंने बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए भारत जाने का फैसला किया।

ह्वेन त्सांग चीन की थांग राजवंश की राजधानी छांगआन से रवाना होकर चीन के शिनच्यांग और मध्य एशिया आदि क्षेत्रों से गुजरते हुए और बहुत-सी बाधाओं को पार कर अंत में भारत के राजगीर पहुंचे। वहां उन्होंने उस समय भारत में बौद्ध धर्म के केंद्र नालंदा मंदिर में प्रवेश किया, और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। पाँच साल बाद उन्होंने भारत के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर में स्थित दस से अधिक राज्यों का दौरा किया। भारत में ह्वेन त्सांग ने महायान शिक्षा का प्रचार किया, और बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की।

645 ई. 25 फरवरी को ह्वेन त्सांग 657 बौद्ध धर्मग्रंथ और तरह-तरह की बुद्ध प्रतिमा लेकर छांगआन वापस लौटे। इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद पर ध्यान केंद्रित किया। बीस वर्षों के दौरान उन्होंने कुल मिलाकर 75 सूत्रों के कुल 1335 खंडों का अनुवाद किया है। जिसने चीन में बौद्ध धर्म के प्रसार-प्रचार में बड़ी भूमिका अदा की है। प्राचीन चीन में देवताओं और राक्षसों का पहला उपन्यास “पश्चिम की तीर्थ यात्रा” तो ह्वेन त्सांग की सच्ची घटनाओं के आधार पर रचा गया है।

गौरतलब है कि ह्वेन त्सांग ने भारत से वापस लौटने के बाद “महा थांग राजवंश के पश्चिम क्षेत्र की वृत्तांत” नामक एक पुस्तक भी लिखी। जिसमें ह्वेन त्सांग ने अपनी यात्रा में प्राप्त अनुभवों को दर्ज किया, उन में दो सौ से अधिक देशों व राज्यों की विभिन्न राष्ट्रीयताओं के जीवन तरीके, इमारतें, शादी, अंतिम संस्कार, धर्म व विश्वास, स्नान व चिकित्सा, और संगीत व नृत्य आदि विषय शामिल हैं। यह पुस्तक भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि दक्षिण एशियाई देशों के प्राचीन इतिहास व भूगोल के अध्ययन के लिये एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है।

जैसा कि इस कहावत में कहा जाता है, गुलाब दिया गया पर हाथ में खुशबू। भारत और चीन के संबंध भी ऐसे हैं। भारत से चीन को सच्चा बौद्ध धर्म मिला, फिर चीन से भारत को अपना मध्यकालीन इतिहास का रिकोर्ड भी प्राप्त हुआ। ह्वेन त्सांग तो चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के राजदूत थे।

चंद्रिमा

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