"घास-मैदान का बेटा" मंगोल जाति का चरवाहा टी. बातर

2022-10-15 17:38:49


पतझड़ में उत्तरी चीन के भीतरी मंगोलिया के घास का मैदान चारा फसल के मौसम में प्रवेश कर जाता है। सुबह-सुबह सरुल्तुया गांव में चरवाहा टी. बातर जल्दी उठकर घास के मैदान में आता है और व्यस्त हो जाता।

20वीं सदी के 70 के दशक में टी. बातर को गांव से शहर वापस लौटने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने घास के मैदान में ठहरने का फैसला कर लिया। उन्होंने कहा कि घास के मैदान में विभिन्न निर्माण कार्य जरूरी है, यहां मैं ज्यादा काम कर सकता हूँ।


पिछली शताब्दी के 80 के दशक के मध्य में, टी. बातर के रहने वाले घास के मैदानों की पारिस्थितिकी बिगड़ने लगी। वह बार-बार स्थानीय चरवाहों के साथ अपने विचार साझा करते थे कि पशुधन जीवन-रक्षक नहीं है, चारागाह जीवन-रक्षक है। हमें केवल आय बढ़ाने के लिए पशुओं की संख्या नहीं बढ़ानी चाहिए। लेकिन उस समय अधिकांश चरवाहे टी. बातर के विचार से सहमत नहीं थे। 

टी. बातर अपने घर के घास-मैदान को कदम-ब-कदम घास कटाई क्षेत्र, पशु पालन क्षेत्र, अतिरिक्त चरागाह क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र और रहने वाले क्षेत्र आदि में विभाजित किया। विभिन्न क्षेत्र एक दूसरे से अलग हैं और अपेक्षाकृत स्वतंत्र हैं। कई साल बाद, उनके द्वारा अनुबंधित गांव में सबसे खराब चरागाह को प्रभावी ढंग से बहाल कर दिया गया है। अन्य चरवाहे इसे देखकर क्रमशः टी. बातर से सीखने लगे और उन्हें मुनाफा मिलने लगा।


साल 1993 में टी. बातर को गांव में सीपीसी शाखा समिति का सचिव चुना गया। घास के मैदान की पारिस्थितिकी को और अधिक बहाल करने के लिए उन्होंने भेड़ को कम करने और मवेशियों को बढ़ाने का उपाय पेश किया। उन्होंने कहा कि 1 गाय पालने की आय मोटे तौर पर 5 भेड़ों की आर्थिक आय के बराबर है। लेकिन 5 भेड़ें 1 गाय से अधिक घास के मैदान को रौंदती हैं। इस तरह, टी. बातर ने अपनी सभी 400 से अधिक भेड़ें बेच दी और इसके बजाय गाय-भैंस मवेशियों को पालने लगा। इसके साथ ही उन्होंने पशुधन सुधार किया और पशु के झुंड का पुनर्गठन किया। इन कदमों से पारिस्थितिक बहाली और आय में वृद्धि दोतरफा जीत वाले लक्ष्य हासिल किए गए हैं।

इसके अलावा, गंभीर मरुस्थलीकरण वाले क्षेत्रों में, टी. बातर ने पेड़ लगाने और पशुपालन उत्पादन विधियों में सुधार करने का उपाय अपनाया। उनके नेतृत्व में स्थानीय चरवाहे पीले विलो और हिप्पोफा रम्नोइड्स जैसे सूखा-सहिष्णु पौधे लगाए, जिससे घास के मैदान के मरुस्थलीकरण और गिरावट को कारगर रूप से रोक दिया गया।


चरागाह पारिस्थितिक बहाली के बाद कई वर्षों से नहीं देखे गए हिरण, कैप्रियोलस पाइगारगस और लोमड़ियों जैसे जंगली जानवरों में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है। सरुल्तुया गांव एक प्रसिद्ध "पारिस्थितिक गांव" बन गया है।

"मेरी जड़ें घास के मैदानों में हैं, और मेरा प्यार चरागाह में है। मैं चरागाहों में 50 सालों में मेरे अभ्यास के अनुभवों को चरवाहों को देना चाहता हूँ, ताकि पारिस्थितिकी की रक्षा और घास के मैदानों का निर्माण कर सकें," टी.बातर ने यह बात कही है।

(श्याओ थांग)

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