वैश्विक चुनौतियों के दौर में जमी हुई बर्फ को पिघलाने का काम करेगा एससीओ सम्मेलनः भारतीय प्रोफेसर

2022-09-16 21:36:38

उज्बेकिस्तान के समरकंद में शांगहाई सहयोग संगठन यानी एससीओ का सम्मेलन आयोजित हुआ। जिसमें चीन, भारत, रूस, उजबेकिस्तान व ताजिकिस्तान सहित आठ सदस्य देशों ने हिस्सा लिया। जबकि कुछ पर्यवेक्षक देश भी इसमें शामिल हुए। कोविड महामारी और वैश्विक उथल-पुथल के इस दौर में एससीओ से हर किसी को काफी उम्मीदें हैं। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जिस तरह से मध्य एशियाई देशों की यात्रा की और सम्मेलन में हिस्सा लिया उसकी चर्चा हो रही है।

इस बीच एससीओ की सार्थकता और प्रभाव को लेकर चाइना मीडिया ग्रुप के संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की दिल्ली विश्वविद्यालय में अंतराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर सुधीर सिंह के साथ। प्रो. सुधीर के मुताबिक एससीओ सम्मेलन का आयोजन एक सकारात्मक कदम है। क्योंकि महामारी के बाद चीन भारत और रूस सहित कई देशों के बड़े नेता एक मंच पर एकत्र हुए। जो कि अपने आप में बड़ी बात है। गौरतलब है एससीओ अपनी स्थापना के बाद से ही विभिन्न देशों के बीच समन्वय और सहयोग कायम करने में सक्रिय रहा है। हालांकि रूस-यूक्रेन संघर्ष व वैश्विक चुनौतियों के कारण इस क्षेत्रीय संगठन का महत्व और बढ़ गया है। क्योंकि इसमें शामिल सदस्य देश विश्व में अपना व्यापक प्रभाव रखते हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि विभिन्न चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में एससीओ सम्मेलन जमी हुई बर्फ को पिघलाने का काम करेगा।

इसके साथ ही एससीओ का एक बहुध्रुवीय और संतुलन वाली व्यवस्था के निर्माण में अहम रोल निभा रहा है। निश्चित तौर पर बातचीत सहयोग और समन्वय के आधार पर ही दुनिया में शांति कायम हो सकती है। ऐसे में शांगहाई सहयोग संगठन आतंकवाद, ऊर्जा समस्या व खाद्य सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकता है। यह कहने में कोई राय नहीं है कि समरकंद में आयोजित सम्मेलन ने समूची दुनिया के लिए एक सकारात्मक संदेश प्रदान किया है।

वैसे अभी एससीओ को स्थापित हुए कुल 21 साल ही हुए हैं, लेकिन इस दौरान उसने खुद को एक बड़े संगठन के रूप में खड़ा किया है। वास्तव में ऐसे मंच इसलिए भी जरूरी होते हैं क्योंकि तनावपूर्ण संबंधों को बेहतर करने में इनका अहम रोल रहता है।

जहां तक चीन और भारत के रिश्तों की बात है, वो पहले की तरह अच्छे नहीं हैं, लेकिन उसमें सुधार देखने को मिल रहा है। हाल में जिस तरह से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटीं हैं वह एक विश्वास बहाली का एक कदम है। हालांकि विश्व की दो बड़ी आबादी वाले इन राष्ट्रों के बीच आपसी विश्वास में कमी दिखती है, लेकिन एससीओ जैसा मंच इस कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

चीन की राजधानी पेइचिंग में अक्तूबर महीने में होने वाली सीपीसी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के बारे में उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा आयोजन होगा। जिस पर चीन सहित सारी दुनिया की निगाहें लगी रहेंगी। जाहिर सी बात है कि चीन इस आयोजन के जरिए विश्व को बताना चाहेगा कि वह विभिन्न देशों के साथ अच्छे से तालमेल बिठाकर आगे बढ़ने वाला है।

(प्रस्तुति:अनिल पांडेय)

 

 

 

 

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