जापानी सैन्यवाद का अपराध निर्विवाद है

2022-08-13 14:36:42

14 अगस्त को विश्व "आराम महिला" स्मारक दिवस है। वर्ष 1931 से 1945 तक जापान ने चीन और अन्य देशों के खिलाफ आक्रमण युद्ध छेड़ा। चीन और एशियाई पीड़ित देशों के लोग मुसीबतों के गर्त में पड़े। जापानी आक्रमणकारी सेना ने बड़े पैमाने पर "आराम महिला" यानी यौन दास व्यवस्था लागू की।

यह व्यवस्था जापान की सरकार और सेना ने खुद बनाई थी। जापानी आक्रमण सेना ने चीन, कोरियाई प्रायद्वीप, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप और अमेरिकी देशों की महिलाओं को यौन दास बनाने के लिए विवश किया। इस व्यवस्था के तहत जापानी सैनिकों ने बहुत सारे महिलाओं को पैरों तले रौंदा, अपमानित किया और बरबाद किया। काफी ज्यादा महिलाएं बरताव और बिमारियों से मर गई थीं। चीन के खिलाफ आक्रमण युद्ध के दौरान जापानी सेना का अत्याचार कभी नहीं रुका था।

आंकड़ों के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करीब 4 लाख एशियाई महिलाएं जापानी सेना की "आराम महिला" बनीं, जिसमें 2 लाख से अधिक चीनी महिलाएं शामिल थीं। यह मानव सभ्यता के इतिहास में छोड़ा अपमानजनक आघात है। समय बीतने के चलते जिंदा वाली "आराम महिलाएं" कम हो रही हैं। अब तक चीन में सिर्फ 14 "आराम महिला" जीवित हैं। वे अपने खून और आंसुओं से लिखे हुए इतिहास से जापानी सैन्यवाद की क्रूरता का आरोप लगाती हैं।

लेकिन 90 से अधिक वर्षों में लाखों "आराम महिलाओं" ने अपने जीवन के अंत तक जापानी सरकार से माफ़ी मांगने का इंतज़ार नहीं किया। इसके विपरीत जापान ने तथ्यों को धुंधला बनाने और ऐतिहासिक अपराध से बचने की कोशिश की। जापानी पूर्व प्रधानमंत्री शिन्ज़ो आबे ने साक्षात्कार में कहा था कि "आराम महिला" मुद्दे पर जापान की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बहाल करना चाहिए।

इसकी चर्चा में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लीच्येन ने कहा कि "आराम महिला" की जबरन भर्ती जापानी सैन्यवाद द्वारा किया गया मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध है। यह ऐतिहासिक तथ्य अकाट्य और निर्विवाद है। वहीं, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ स्थित स्थाई चीनी उप राजदूत च्यांग त्वान ने कहा कि अब तक बहुत जापानी लोग फिर भी जापानी सैन्य आक्रमणकारियों द्वारा किए गए संगीन अपराध से इनकार करना चाहते हैं, यहां तक कि आक्रमण इतिहास को सुंदर बनाना चाहते हैं। यह पीड़ित देशों के लोगों के मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व मानवाधिकार सम्मेलन में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रद्द करने पर घोषणा पत्र पारित किया गया। इसमें कहा गया है कि "आराम महिला" व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध में महिलाओं को लेकर दास प्रथा थी। इसकी निंदा करनी पड़ती है। फिर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने कहा कि जापान सरकार को "आराम महिला" व्यवस्था के प्रति माफ़ी मांगना चाहिए।

चाहे जापान ऐतिहासिक अपराध कम करना चाहता है और इससे बचना चाहता है, लेकिन इतिहास झूठ नहीं बोलता। जापान का अपराध "जीवित गवाह" की मृत्यु के चलते खत्म नहीं होगा। इस साल 14 अगस्त को 10वां विश्व "आराम महिला" स्मारक दिवस है। आराम महिलाओं का दर्द भुलाया नहीं जा सकता। आज "आराम महिला" स्मारक मूर्तियां बहुत देशों में स्थापित हो चुकी हैं। ऐतिहासिक डेटा लगातार सार्वजनिक किया जा रहा है और पूरी दुनिया में फैल रहा है। अधिकाधिक लोग ऐतिहासिक सत्य की रक्षा करते हैं और विश्व शांति व न्याय की रक्षा करते हैं।

(ललिता)

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