चीन में सिर्फ प्राइमरी स्कूल पढ़ने वाले मशहूर अध्ययनकर्ता और प्रोफेसर चिन खमू की कहानी

2022-08-12 10:20:07

इस साल 14 अगस्त को चीन के मशहूर साहित्यकार, अनुवादक और संस्कृत विद्वान चिन खमू के जन्मदिवस की 110वीं वर्षगांठ है। चिन खमू के जीवन में अनेक प्रेरित करने वाले रंग शामिल हैं। उनका औपचारिक शिक्षा रिकार्ड सिर्फ प्राइमरी स्कूल का ही है, लेकिन अपनी मेहनत और बुद्धिमता से वे अंत में चोटी स्तर के अध्ययनकर्ता और पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बने। उन्होंने चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए अपना विशिष्ट योगदान भी दिया।

चिन खमू का जन्म 14 अगस्त 1912 को दक्षिण चीन के च्यांगशी प्रांत में एक पदच्युत छोटे अधिकारी के परिवार में हुआ। बचपन से ही उनका परिवार आर्थिक तंगी में रहा। मिडिल स्कूल की पहली कक्षा पढ़ने के बाद उनको जीवनयापन के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा, इसलिए पूरे जीवन भर उनके पास सिर्फ प्राइमरी स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने का ही प्रमाण पत्र था। मिडिल स्कूल से चले जाने के बाद चिन खमू गृहस्थल लौटकर प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने लगे और 19 वर्ष की आयु में वे नौकरी ढूंढने के लिए उत्तर चीन में पेइचिंग गये और उन्हें सौभाग्य से पेइचिंग विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी मिल गई। इस दौरान अपने काम के अलावा उन्होंने पुस्तक पढ़ने में बड़ी शक्ति लगायी, कई मशहूर अध्यापकों से परिचित होकर उन्होंने बहुत-सी चीजें सीखीं और कक्षा में जाकर ऑबजर्वर के रूप में अंग्रेजी, फ्रांसीसी और जर्मन भाषा भी सीख ली।

वर्ष 1941 में अपने दोस्त की सिफारिश पर वे भारत के कोलकाता गये और वहां स्थित एक चीनी भाषा अख़बार में संपादक बने। उस समय उन्हें संस्कृत और प्राचीन भारतीय सभ्यता में बड़ी रूचि हो गई थी। उनकी आंखों में एक नयी, विशाल और जटिल दुनिया दिखाई दी। उनको लगा कि उन्हें आजीवन अध्ययन का रास्ता मिल गया है। कुछ समय बाद वे संपादक का काम छोड़कर सारनाथ गये और पूरी निष्ठा एवं रूचि से संस्कृत और बौद्ध सूत्र का अध्ययन करने लगे। वर्ष 1943 में सौभाग्यवश उनकी मुलाकात गुरु धर्मेंद्र कोस्वामी से हुई। कोस्वामी के मार्गदर्शन में चिन खमू ने संस्कृत, बाली, बौद्ध धर्म के अध्ययन में दिन-रात एक कर दी।

वर्ष 1946 में चिन खमू स्वदेश लौटे और दोस्तों की जबरदस्त सिफारिश के तहत उस साल अक्तूबर में वे मध्य चीन के वुहान विश्वविद्यालय में शामिल होकर भारतीय दर्शन तथा संस्कृत पढ़ाने लगे। 34 वर्ष की आयु में वे एक प्रोफेसर बन गये। दो साल बाद चिन खमू निमंत्रण पर पेइचिंग विश्वविद्यालय में शामिल हुए और वहां उन्होंने 52 साल बिताये।

चिन खमू ने पिछली सदी के 30वें दशक में रचना जारी करना शुरू किया। उन्होंने अपने जीवन में 30 से अधिक अध्ययन पुस्तकें लिखीं और बड़ी संख्या में कविताएं और गद्य लिखे। मसलन् उन्होंने संस्कृत साहित्य इतिहास, भारतीय संस्कृति अध्ययन संग्रहण और तुलनात्मक संस्कृति अध्ययन संग्रहण जैसी अकादमिक पुस्तकें लिखीं। उन्होंने भारत की पुरानी याद, संस्कृत का विश्लेषण, आर्ट एंड साइंस पर पुरानी चर्चा समेत कई गद्द संग्रहण पुस्तकें लिखीं, जो चीन के विभिन्न आयु वर्गों के पाठकों में बहुत लोकप्रिय हुईं। उन्होंने मेघदूत, संस्कृत साहित्य का इतिहास, भारत की प्राचीन कविताएं, मेरा बचपन आदि कई मशूहर भारतीय रचनाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया। इसके अलावा, उन्होंने चीनी भाषा में कविताओं के संग्रहण और उपन्यास भी लिखे थे।

चिन खमू ने संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के अध्ययन में असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं। इसके अलावा उन्होंने चीन और विदेशों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इतिहास, बौद्ध धर्म, तुलनात्मक साहित्य व अनुवाद में बड़ी सफलता भी प्राप्त की। उन्होंने चीनी अकादमिक कार्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अवश्य ही चीन और भारत के बीच पारस्परिक समझ बढ़ाने में विशिष्ट भूमिका भी निभायी थी। (वेइतुंग)

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