सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अहम भूमिका निभाएगा ब्रिक्स- प्रोफेसर बी आर दीपक

2022-06-22 15:12:01

वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु ब्रिक्स संगठन अहम भूमिका निभाएगा, ये कहना है नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीन एवं दक्षिण एशियाई अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष प्रोफेसर बीआर दीपक का। इस वर्ष ब्रिक्स के 14 वें शिखर सम्मेलन का विषय‘वैश्विक विकास के लिए एक नए युग में उच्च गुणवत्ता वाली ब्रिक्स साझेदारी को बढ़ावा देना’है। इस विषय और 2030 के सतत विकास लक्ष्यों पर एक खास बातचीत में अपने विचार रखते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि चीन ने 2030 के सतत विकास लक्ष्यों के पैमानों को काफी हद तक हासिल कर लिए हैं और भारत भी उस दिशा में अग्रसर है। प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि उक्रेन का मसला, वैश्विक मंदी और खाद्य समस्या की वजह से सतत विकास लक्ष्य 2030 को हासिल करने में नकारात्मक असर पड़ा है। उनके अनुसार ब्रिक्स देश जो कि बड़ी शक्तियां हैं और बड़े विकासशील देश हैं, अगर आपस में अच्छी समझ बना लें और इन लक्ष्यों के प्रति ठीक तरह से तालमेल बैठाया जाएं तो कुछ हद तक हम इस दिशा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

ब्रिक्स देशों के महत्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर बीआर दीपक बताते हैं कि ब्रिक्स के पांचों देशों की 40 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या है और बहुत बड़ी विकासशील शक्तियां है।प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि ब्रिक्स देश, दुनिया की आर्थिक दर को सुधारने में भूमिका निभा सकते हैं, वैसे भी ब्रिक्स के पांचों देशों का विश्व की आर्थिक स्थिति में काफी सहयोग है। प्रोफेसर दीपक के अनुसार खासकर आज की स्थिति में अगर ये पांचों देशों सही दिशा में कदम उठाते हैं तो बहुत सारी समस्याओं का निवारण कर सकते हैं। वे बताते हैं कि पाचों देशों के बीच आपसी सहयोग के लिए जो स्पेस है में वो बहुत ही ज्यादा है क्योंकि विकासशील देश होने के नाते, भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश, यहां तक कि चीन ने भी गरीबी उन्मूलन में काफी प्रगति की है। उनके अनुसार खाद्य सुरक्षा, औद्योगिकरण, भारत जैसे कृषि प्रधान जैसे देशों में सहयोग के क्षेत्र बहुत ही ज्यादा हैं।

ब्रिक्स संगठन और सतत विकास लक्ष्य 2030 पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ का 2030 का सतत विकास का एजेंडा है उसके लक्ष्यों और पैमानों को हासिल करने के लिए बहुत से देश पूरा करने में सक्षम ना हो। अगर ब्रिक्स देशों का आपसी सहयोग होता है तो इन सब क्षेत्रों में हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। विश्व शांति, विश्व व्यापार, आर्थिक मंदी जैसे प्रश्नों को सुलझाने में ब्रिक्स देशों के बीच सही दिशा में तालमेल होता है तो बहुत सारी समस्याओं का निवारण हो सकता है।

ब्रिक्स के न्यू डेवेलपमेंट बैंक की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि न्यू डेवेलमेंट बैंक अन्य वैश्विक बैकों से थोड़ा परे है, क्योंकि जो एशिया में विकास होना है उसके लिए न्यू डेवेलपमेंट बैंक की फंडिंग होती है, भारत में भी काफी फंडिंग न्यू डेवेलपमेंट बैंक कर रहा है। एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक या न्यू डेवेलपमेंट बैंक जैसे बैंक खासकर विकासशील देश, ये मैकेनिज़्म उनके लिए आशा की किरण लेकर आए हैं। प्रोफेसर दीपक के अनुसार एशिया के क्षेत्र में विकास के बहुत ही अच्छे अवसर हैं और इन देशों को नए बैंक से फायदा मिलता है तो 2030 के सतत विकास के एजेंडे और गरीबी उन्मूलन के प्रोग्राम और कई कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट उसके संदर्भ में बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं और एशियाई देशों को इसका बहुत फायदा मिलेगा।

भारत और चीन के बीच रिश्तों को और सुदृढ़ बनाने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि दोनों देशों के रिश्ते सुदृढ़ करने के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संवाद बहुत ही जरूरी है। संवाद खास तौर पर लोगों के बीच होता है। प्रोफेसर दीपक के अनुसार लोगों के बीच मेल-मिलाप के लिए सांस्कृतिक संबंध बहुत मजबूत होने चाहिए, और इसी से दोनों देशों के लोगों के बीच जो समझ है उसकी आधारशिला बनेगी। प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि प्राचीन काल से ही दोनों देशों के बीच जो रिश्ते और समझ अच्छी थी। उनके अनुसार चीजों का आदान-प्रदान, लोगों का आदान-प्रदान होने से संस्कृतियां सुदृढ़ होती हैं और आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं, दोनों देशों के बीच लोगों की समझ बेहतर हो जाती है।

संस्कृति के व्यापक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान में व्यापार, पूंजी निवेश, फिल्मों का आदान-प्रदान, योग, दोनों देशों का औषधि विज्ञान शामिल हैं। ये सभी चीज़ें लोगों के फायदे के लिए है। इससे रिश्ते और अच्छे बनते हैं और इसकी वजह से संस्कृतियां फलती-फूलती हैं। प्रोफेसर दीपक के अनुसार प्राचीन काल से ही चीन और भारत की संस्कृतियों ने दूसरी संस्कृतियों को मजबूत बनाया है और उसे एक नया रुप दिया है। चाहे वो ज्ञानवर्धन की बात हो या फिर मटेरियल एक्सचेंज की बात हो और हर पैमाने पर अपनी छाप छोड़ी है।

दोनों देशों के बीच शैक्षणिक साझेदारी के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रोफेसर बीआर दीपक बताते हैं कि शैक्षिणक साझेदारी भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संवाद का एक जबर्दस्त पहलू है। उनके अनुसार इससे छात्र और शिक्षकगण लाभान्वित हुए हैं। वे बताते हैं कि भारत के छात्र काफी संख्या में चीन में औषधि की पढ़ाई करने जाते हैं और वे करीब 23-25 हजार से ज्यादा छात्र हैं। प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि एक और आदान-प्रदान स्कॉलरशिप के रुप में हैं। स्कॉलरशिप चीनी सरकार भारत के छात्रों को देती है और सरकारी छात्रवृत्तियां दोनों देश छात्रों को देते हैं तो इससे भी संस्कृति की, रहन-सहन और कायदे-कानून की समझ सुदृढ़ होती है।

14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और चीन के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल होंगे और अगले कुछ महीनों में अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी दोनों देशों की ओर से मेल-जोल बढ़ेगा। आपसी मिलने-जुलने की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि मिलना जुलना अच्छा है इससे दोनों देशों के बीच खास मुद्दों पर चाहे वैश्विक हों, क्षेत्रीय मुद्दे हों या फिर इंटरकॉन्टिनेंटल मुद्दे हों, पर समझ बनती है। प्रोफेसर दीपक के अनुसार शांगहाई सहयोग मंच भी बहुत ही अच्छा फोरम है, खासतौर पर सुरक्षा की दृष्टि से। ब्रिक्स देशों से उस संगठन में रूस, भारत और चीन शामिल हैं।

दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर दीपक बताते हैं कि भारत और चीन के बीच का व्यापार संभावना से काफी कम है हालांकि 400 अरब डालर साझा व्यापार पहुंच गया है लेकिन इसको और ज्यादा करने के लिए हर स्तर पर सतत प्रयास करने पड़ेगें। उनके अनुसार जो संभावनाएं हैं खासकर जो कृषि के क्षेत्र में, डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में या फिर ग्रीन डेवेलपमेंट के क्षेत्र में और उस दिशा में और काम करने की जरूरत है और जो विकास का गैप उसे कम करने की जरुरत है।  प्रोफेसर दीपक के अनुसार ब्रिक्स भी इसमें अपना प्रयास कर रहा है और कई मैकेनेज़िम जैसे एशिया इंवेस्टमेंट इंफ्रास्ट्रक्टर बैंक, न्यू डेवेलपमेंट बैंक, ब्रिक्स यूनिवर्सिटी लीग आदि के माध्यम से प्रयास हो रहे हैं। वे बताते हैं कि आपसी व्यापार वैश्विक व्यापार का 16 प्रतिशत है, ये और भी काफी आगे बढ़ सकता है साथ ही क्षेत्रीय विकास और आपसी तालमेल के लिए काफी अच्छा और उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

(विवेक शर्मा)

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