ब्रिक्स सम्मेलन दुनिया को राह दिखाने में सक्षम :भारतीय जानकार
चीन की अध्यक्षता में बहुप्रतीक्षित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जल्द ही शुरू होने वाला है, जिससे दुनिया को विभिन्न तरह की अपेक्षाएं हैं। माना जा रहा है कि यह सम्मेलन वर्तमान व भावी चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया को एक मंच प्रदान कर सकता है।
इस सम्मेलन के बारे में सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय ने विस्तार से बात की इंडिया ग्लोबल चाइना सेंटर के निदेशक और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रसून शर्मा के साथ।
प्रसून के मुताबिक विश्व पटल पर जिस तरह का माहौल है, उसे देखते हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से हम सभी को बहुत अपेक्षाएं हैं। चाहे वह भू-राजनीतिक स्थिति हो या कोविड महामारी की रोकथाम, इनमें ब्रिक्स महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। इस लिहाज से यह काफी अहम बैठक होने जा रही है। कहा जा सकता है कि इन देशों के पास खुद को एक मंच पर लाकर आगे बढ़ने और दूसरे राष्ट्रों को दिशा दिखाने का एक अच्छा मौका है।
जैसा कि हम जानते हैं कि पिछली बार भारत इसका मेजबान था, जबकि इस साल चीन इसकी अध्यक्षता कर रहा है। लेकिन इस अवधि में काफी बदलाव आ चुका है, जिस तरह से रूस व यूक्रेन संघर्ष चल रहा है। ऐसी परिस्थिति में कुछ देशों की मंशा है कि वह विश्व को दो धड़ों में बांट दें, लेकिन संबंधित देश अपने देश व अपने नागरिकों के हित व जरूरत के हिसाब से किसी भी समूह में शामिल नहीं हो रहे हैं। वह इन मुद्दों पर अपना एक अलग रुख व्यक्त करना चाहते हैं। ऐसे माहौल में ब्रिक्स एक नया वैश्विक दृष्टिकोण स्थापित कर सकता है। दुनिया में जारी उथल-पुथल के दौर में ब्रिक्स अगर एक नया रुख पेश करता है तो यह छोटे देशों के लिए अच्छा होगा। वैसे भी ब्रिक्स में तीन महत्वपूर्ण शक्तियां चीन, भारत और रूस शामिल हैं। अगर इस मंच के जरिए छोटे राष्ट्रों को भी मौका मिलता है तो वैश्विक कूटनीति में संतुलन और स्थिरता आ सकती है।
बकौल प्रसून कुछ ऐसी ताकतें हैं जो हमेशा चीन बनाम भारत यानी दोनों के बीच मतभेद और प्रतिद्वंद्विता को सामने रखना चाहते हैं। लेकिन यह बात उचित नहीं है, क्योंकि चीन और भारत साथ भी हो सकते हैं और कुछ मामलों में दोनों साथ भी हैं। ध्यान रहे कि विश्व में सिर्फ ये दोनों देश ही एक अरब से अधिक आबादी वाले राष्ट्र हैं। साथ ही इनका शीर्ष नेतृत्व अपने देश के हितों के लिए आवाज उठाने और निर्णय लेने को लेकर पूरी तरह सक्षम है।
वहीं जहां चीन की बात है तो वह न केवल ब्रिक्स में बल्कि ग्लोबल स्तर पर भी अहम रोल अदा करता है। खासकर वर्तमान में जो वातावरण पैदा हुआ है, उसमें चीन की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। चीन ने जो बहुपक्षीय मंच खुद स्थापित किए हैं, जिसमें ब्रिक्स, शांगहाई सहयोग संगठन आदि प्रमुख हैं, इन मंचों को कैसे और अधिक मजबूत व प्रभावशाली बनाया जाए।
इसके साथ ही अगर द्विपक्षीय सहयोग हो, चाहे वह ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच मौजूद मुद्दे हों, उन्हें हल करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है, ताकि इन मसलों का फायदा कोई तीसरा पक्ष न उठा सके।
आज की दुनिया को वैश्वीकरण की आदत सी हो चुकी है, यह मानव कल्याण के लिए जरूरी भी है। क्योंकि हम सब अगर आपस में मिल-जुलकर रहेंगे तो अपने नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में सहूलियत रहेगी। इसके अलावा कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हमें साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जैसे कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती के लिए व्यापक प्रयास करने होंगे। वहीं कोरोना महामारी के कारण आयी त्रासदी खासतौर पर आर्थिक क्षेत्र में पैदा गड़बड़ स्थिति को फिर से पटरी पर लाने के लिए वैश्वीकरण के रास्ते का ही इस्तेमाल हो सकता है। इसी में समूची मानव जाति की भलाई होगी।
वही भारत व चीन की क्षमता पहले से ज्यादा मजबूत हुई है, वे अपनी जगह बना रहे हैं, इस तरह वे विकासशील देशों की आवाज बेहतर तरीके से उठा सकते हैं। जो कि विश्व को एक नयी दिशा भी दे सकते हैं।
प्रसून कहते हैं कि अब ब्रिक्स देशों को ई-कॉमर्स से ई-कोऑपरेशन पर काम करना चाहिए। क्योंकि यदि कोई ऐसी आपात त्रासदी फिर से विश्व के सामने आती है तो डिजिटल तरीके से सबके पास पहुंचा जा सके। और ज़िंदा रहने के लिए जरूरी सुविधाओं को मुहैया कराया जा सके। ऐसे में ई-कोऑपरेशन की तरफ मुहिम शुरू करने की जरूरत है, ब्रिक्स देशों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। क्योंकि इन देशों की आबादी बहुत बड़ी है, अगर ये राष्ट्र मिलकर काम करते हैं तो वे डिजिटल अर्थव्यवस्था को सही तरीके से जन-जन तक पहुंचाने में सफल होंगे। साथ ही डिजिटल माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के सभी प्रस्तावित लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।
(अनिल पांडेय)