वैश्विक उथल-पुथल के दौर में चीन और ब्रिक्स की भूमिका बेहद अहम- अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार

2022-06-21 15:46:01


चीन की अध्यक्षता में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है, कोरोना महामारी व दुनिया में जारी आर्थिक संकट के बीच इस सम्मेलन का महत्व और बढ़ गया है। यह सम्मेलन विश्व को बहुपक्षवाद व समन्वय के तरीके से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस बारे में सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार और ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर स्वर्ण सिंह से। 


प्रो. सिंह के मुताबिक कोविड महामारी और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौती, उथल-पुथल के इस माहौल में पूरी दुनिया की नजरें ब्रिक्स शिखर बैठक पर लगी हुई हैं।  स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्र में संकट के वक्त चीन और भारत ने विश्व के अविकसित व कमजोर देशों की मदद की है। वहीं विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भी काफी हद तक तालमेल बिठाने की कोशिश की है। अब चीन की अध्यक्षता में होने वाला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आर्थिक मोर्चे पर किस तरह की प्रतिक्रिया दिखाता है, इस पर ध्यान देना होगा। वह अन्य देशों को बेहतर आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने या स्थिति सुधारने के लिए किस तरह प्रेरित करता है यह भी जानना होगा। जहां तक की चीन की बात है तो उसका इस मामले में व्यापक महत्व है, क्योंकि वह पिछले लगभग चार दशकों से विश्व की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था रहा है। चाहे बात उत्पादन या व्यापार की हो या फिर निवेश की, चीन का योगदान लगातार बढ़ा है। ऐसे में ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी चीन की भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना देती है। 


कुछ देश एकतरफावाद को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि हाल के कई सालों में बहुपक्षवाद की धुरी पर ही दुनिया घूमती रही है। वर्ष 2017 में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने दावोस में बहुपक्षवाद आदि पर भाषण दिया, जबकि उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट व संरक्षणवाद पर जोर दिया था। तभी से मुक्त व्यापार और भूमंडलीकरण की वकालत विभिन्न देशों द्वारा की जाने लगी है। ऐसे में ब्रिक्स में इसके साथ-साथ पारदर्शिता, उत्तरदायित्व व नियमों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार और तकनीक के हस्तांतरण को लेकर खुला माहौल बनाने की जरूरत है। अगर ब्रिक्स बैठक में इस बारे में सहमति व तालमेल कायम होता है तो उसका अहम योगदान रहेगा। 

 

यहां बता दें कि ब्रिक्स में शामिल देशों, खासकर भारत और चीन ने कहा कि पहली कोशिश यह होनी चाहिए कि हिंसा को कैसे रोका जाय, साथ ही रूस और यूक्रेन दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं के बीच प्रत्यक्ष वार्ता की वकालत भी की है। ताकि जल्द से जल्द शांति का माहौल कायम किया जा सके। तो यह एक जैसा दृष्टिकोण होने के चलते, जैसा कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि भले ही भारत और चीन के बीच संबंधों में खटास है और कुछ मतभेद भी हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन संकट के कारण दोनों में नया तालमेल दिखा है। लगता है कि इसके चलते दोनों के रिश्तों में सकारात्मक असर भी पड़ा है, जो कि आने वाले समय में भी दिख सकता है। 


बकौल प्रो. सिंह महामारी के कारण ब्रिक्स देशों के सामने चुनौतियां तो थीं, लेकिन अवसर भी मिले हैं। जिसकी वजह से ब्रिक्स के भागीदारों विशेषकर चीन और भारत के बीच कुछ हद तक समन्वय बनता नजर है। कहा जा सकता है कि इस शिखर सम्मेलन में भी हमें इनके बीच तालमेल का बेहतर स्वरूप देखने को मिल सकता है। 


ब्रिक्स के भविष्य की चर्चा करें तो पिछले 12 वर्षों से ब्रिक्स में कोई नए सदस्य नहीं जोड़े गए थे। हालांकि 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ। पर अब लग रहा है कि कुछ और सदस्य भी इसका हिस्सा बन सकते हैं। चीन की मेजबानी में होना वाले इस सम्मेलन में नए सदस्यों को किस तरह से जोड़ा जाय, इस पर चर्चा होने की उम्मीद है। ध्यान रहे कि ब्रिक्स के न्यू डिवेलपमेंट बैंक में पहले ही चार नए सदस्य जोड़े जा चुके हैं। पिछले दिनों इन देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता में लगभग 12 देशों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। लगता है कि ऐसे सदस्य जो कि पहले से जी-20 के सदस्य हैं, अगर वे ब्रिक्स में शामिल होते हैं तो इससे ब्रिक्स के और मजबूत व सक्षम होने की संभावना बढ़ जाएगी। ऐसा माना जाता है कि साल 2030 तक ब्रिक्स की अर्थव्यवस्थाएं जी-7 से ज्यादा मजबूत हो जाएंगी, अगर इस तरह नए सदस्य जुड़ते जाएंगे तो यह मंच जी-7 से बहुत करीब या आगे हो जाएगा। ऐसे में ब्रिक्स का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव और निर्णय लेने की क्षमता अधिक मजबूत होती जाएगी। 


अनिल पांडेय  

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