ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ध्यानाकर्षक होगा

2022-06-15 18:10:40

इस जून में चालू साल के ब्रिक्स देशों के अध्यक्ष देश के नाते चीन ब्रिक्स देशों के 14वें शिखर सम्मेलन का आयोजन करेगा । वर्तमान जटिल अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में यह सम्मेलन निसंदेह ध्यानाकर्षक होगा ।

 

अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों ने पुतिन की घेराबंदी की है । पश्चिमी देशों द्वारा की गई रूस की आर्थिक नाकाबंदी का एक मात्र मकसद रूस की आर्थिक रीढ़ तोड़ना और उसे झुकने के लिए मजबूर करना है। लेकिन रूस अभी तक इस मोर्चे पर झुकता नजर नहीं आया है। पश्चिम के लिए चेतावनी है कि आपसी सीमा विवाद के बावजूद चीन और भारत-दोनों इस समय रूस का वैसा विरोध नहीं कर रहे हैं, जैसा पश्चिमी देश कर रहे हैं। भारत ने हालांकि रूस से एक मर्यादित दूरी बनाए रखा है, जबकि चीन इसकी तुलना में रूस के साथ खुलकर है। इसकी वजह से पश्चिमी देशों की ओर दबाव है कि एशिया की ये दोनों महाशक्तियां रूस को कम से कम यूक्रेन के मोर्चे पर दबाव बनाएं। हालांकि अपनी आर्थिक और सामरिक जरूरतों के साथ ही रूस से ऐतिहासिक रिश्तों की वजह से रूस से दूरी बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। यह बात और है कि शांति के लिए भारत ने रूस से परोक्ष अपील भी की है।

 

ब्रिक्स देश दुनिया की करीब 42 फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिक्स के सदस्य देशों ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका का सकल घरेलू उत्पाद करीब पंद्रह खरब अमेरिकी डॉलर है। ब्रिक्स के तीन देश रूस, चीन और भारत वैश्विक महाशक्ति के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। चीन जहां दुनिया की दूसरे नंबर की आर्थिक महाशक्ति है, वहीं भारत पांचवें नंबर की आर्थिक महाशक्ति है। ब्रिक्स के गठन के पीछे सदस्य देशों के आपसी आर्थिक रिश्ते बेहतर बनाने के साथ ही पश्चिमी देशों के आर्थिक एकाधिकार को चुनौती देना था। लेकिन दुर्भाग्यवश पश्चिम केंद्रित आर्थिक व्यवस्था को यह संगठन वैसी चुनौती नहीं दे पाया है, जिसकी उम्मीद इससे की गई थी।

लेकिन पश्चिमी देशों के आर्थिक एकाधिकार के खिलाफ वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था के बारे में दुनिया सोचने लगी है। यही वजह है कि अब ब्रिक्स के विस्तार की भी गुंजाइश कुछ वैसे ही तलाशी जाने लगी है, जैसे जी 20 देशों को लेकर तलाशीगई। इसी 23 मई को हुए ब्रिक्स प्लस सम्मेलन को इस दिशा में हुआ प्रयास माना जा सकता है। जिसमें एशिया के संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कजाकिस्तान, इंडोनेशिया और थाईलैंड, दक्षिण अमेरिकाके अर्जेंटीना व सेनेगल के साथ ही अफ्रीका केनाइजीरिया और मिस्र को ब्रिक्स प्लस में जोड़ा गया। यह आयोजन वर्चुअली हुआ था। माना जा रहा है कि 24 जून को होने वाली बैठक में इन देशों समेत कुछ अन्य देशों को ब्रिक्स के विस्तारित रूप में शामिल किया जा सकता है। समान विचारधारा वाले देशों को इस संगठन का सहयोगी बनाने के लिए मानक और प्रक्रिया तैयार करने को लकर भी इस बैठक में चर्चा और उस पर सहमति बनाने की कोशिश होगी।

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियाभर में गेहूं को लेकर किल्लत शुरू हुई है। चूंकि दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक यूक्रेन है। लेकिन युद्ध के चलते वह दुनिया को गेहूं की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। इसके चलते दुनिया के दूसरे बड़े गेहूं उत्पादक भारत की तरफ दुनिया का ध्यान गया। लेकिन भारत में जिस तरह महंगाई बढ़ी, उस वजह से भारत को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी। इसकी पश्चिमी देशों ने आलोचना की। लेकिन चीन ने इस मोर्चे पर भारत का समर्थन किया। माना जा रहा है कि आपसी सीमा विवाद के बावजूद चीन ने भारत का समर्थन करके एक तरह से भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। माना जा रहा है कि बीजिंग में होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाने के लिए चीन ने एक तरह से उदार हाथ बढ़ाया है।

इसमें दो राय नहीं है कि ब्रिक्स बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजी समस्याओं और वैश्विक चिंताओं पर भी चर्चा जरूर होगी। इस मसले पर देखना होगा कि भारत और चीन का रूख समान रहेगा या नहीं। वैसे कोशिश यही रहेगी कि ब्रिक्स देशों के बीच इस मसले पर वैचारिक और कार्यकारी समानता बनाने की कोशिश होगी।

यह स्पष्ट है कि अगर ब्रिक्स संगठन बेहतर ढंग से काम कर सके तो दुनिया की पश्चिम केंद्रित आर्थिकी के बरक्स समानांतर आर्थिक ताकत के रूप में खड़ा हो सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना महामारी के बाद हो रही बीजिंग बैठक में सदस्य देश इस मसले पर भी गंभीरतापूर्वक सोचेंगे।( उमेश चतुर्वेदी)

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