अमेरिका का फिर से “थाईवान कार्ड” खेलना व्यर्थ है

2022-06-03 16:54:00

1 जून को, उप अमेरिकी व्यापार वार्ताकार सारा बियांची ने चीन के थाईवान क्षेत्र के प्रतिनिधि के साथ वीडियो वार्ता की और अमेरिका व थाईवान के बीच तथाकथित "21वीं सदी व्यापार पहल" के शुभारंभ की घोषणा की। यह व्यापार और अर्थशास्त्र की आड़ में अमेरिका-थाईवान की मिलीभगत से बनाया गया एक और राजनीतिक तमाशा है, जिसका उद्देश्य "चीन को नियंत्रित करने के लिए थाईवान का उपयोग" और "स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अमेरिका पर निर्भर" है। अमेरिका का यह कदम तीन चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्तियों में की गई अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करता है और केवल चीन-अमेरिका संबंधों को एक खतरनाक स्थिति में लाएगा।

तीन चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्तियों के मुताबिक, अमेरिका मानता है कि दुनिया में केवल एक ही चीन है, थाईवान चीन का एक हिस्सा है, चीन लोक गणराज्य की सरकार चीन की एकमात्र कानूनी सरकार है। इसके साथ ही, अमेरिका ने थाईवान के साथ केवल सांस्कृतिक, वाणिज्यिक आदि गैर-सरकारी संबंध बनाए रखने का वादा किया है। यह देखा जा सकता है कि एक-चीन सिद्धांत थाईवान क्षेत्र का विदेशी आर्थिक सहयोग में भाग लेना पूर्वापेक्षा है। इस बार अमेरिका थाईवान के अधिकारियों के साथ संप्रभु और सरकारी अर्थ वाले समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है, जो कि एक-चीन सिद्धांत का उल्लंघन करता है और निस्संदेह "थाईवान स्वतंत्रता" वाली अलगाववादी ताकतों को एक गलत संकेत भेजता है। जाहिर है अमेरिका की करनी और कथनी में बहुत अंतर है, उसने बार-बार थाईवान मुद्दे पर अपने वादे को धोखा दिया है।

उल्लेखनीय बात यह है कि अमेरिका और थाईवान द्वारा तथाकथित "21वीं सदी व्यापार पहल" के शुभारंभ की घोषणा से ठीक एक हफ्ते पहले, अमेरिकी नेता ने जापान की यात्रा के दौरान तथाकथित "इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढांचे" के शुभारंभ की घोषणा की, जिसमें आपूर्ति श्रृंखला में "चीन से अलग" की वकालत की गई थी, और डिजिटल अर्थव्यवस्था, आपूर्ति श्रृंखला की स्थिरता, स्वच्छ ऊर्जा बुनियादी संरचना और भ्रष्टाचार विरोधी जैसे चार पहलुओं पर ध्यान दिया गया। उधर, संबंधित रिपोर्ट के अनुसार, तथाकथित अमेरिका-थाईवान "21वीं सदी व्यापार पहल" की योजना डिजिटल व्यापार, सीमा शुल्क सुविधा और भ्रष्टाचार का मुकाबला करने जैसे मुद्दों पर सहयोग करने की है।

यह देखा जा सकता है कि "21वीं सदी व्यापार पहल" और "इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढांचा" मिलता-जुलता है। दोनों का वास्तविक उद्देश्य आर्थिक व्यापारिक सहयोग की आड़ में चीन को दबाना है।

थाईवान मामला चीन के मूल हितों से संबंधित है, जो चीन-अमेरिका संबंध में सबसे महत्वपूर्ण, संवेदनशील, और मुख्य मुद्दा है। चीन ने स्पष्ट किया है कि अगर थाईवान मुद्दे को ठीक से नहीं संभाला गया, तो इसका चीन-अमेरिका संबंधों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। पद ग्रहण करने के बाद से वर्तमान अमेरिकी प्रशासन ने बारंबार एक-चीन नीति का पालन करने और "थाईवान स्वतंत्रता" का समर्थन नहीं करने का वादा किया है, लेकिन इसकी वास्तविक कार्रवाई बिलकुल विपरीत है।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन द्वारा थाईवान के "अंतर्राष्ट्रीय स्थान के विस्तार" की वकालत वाले भाषण से लेकर अमेरिकी सांसदों के थाईवान की यात्रा करने तक, फिर तथाकथित "21वीं सदी व्यापार पहल" की शुभारंभ घोषित करने तक, हाल ही में थाईवान मुद्दे पर अमेरिका चालें चलता रहता है। वह थाईवान जलडमरुमध्य की शांति और स्थिरता को नष्ट कर रहा है। 

चीन को एकीकृत होना चाहिए, और उसका एकीकृत होना तय है। यह ऐतिहासिक विकास की सामान्य प्रवृत्ति है, कोई भी व्यक्ति या कोई भी ताकत इसे रोक नहीं सकती है। अमेरिका का फिर से "थाईवान कार्ड" खेलना जरूर व्यर्थ होगा।

(श्याओ थांग)

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