जर्मन मीडिया : पश्चिमी देशों को मुद्रास्फीति का दोष चीन पर नहीं मढ़ना चाहिए
जर्मन साप्ताहिक पत्रिका डेर स्पीगेल की वेबसाइट के अनुसार जर्मनी सहित पश्चिमी देशों में मुद्रास्फीति अपने स्वयं के कारणों से हुई है और इसका दोष चीन पर नहीं मढ़ना चाहिए। इसके विपरीत, चीन के बिना, यूरोप और अमेरिका में चीजों की कीमतें और अधिक बढ़ सकती हैं।
इस लेख का शीर्षक है "क्या चीन जर्मन मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे रहा है? "। इसमें कैपिटल इकोनॉमिक्स कंपनी के एशियाई मुख्य अर्थशास्त्री मार्क विलियम्स के हवाले से कहा गया है कि जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई, तो चीन ने वैश्विक मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। थोड़े समय में, चीनी बंदरगाहों से अमेरिका और यूरोप भेजे गए माल महामारी से पहले की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है। चीन की उत्पादन क्षमता और लचीलेपन के बिना दुनिया को अधिक डिलीवरी की अड़चन और कीमत के दबाव का सामना करना पड़ेगा।
जर्मनी के कील विश्व आर्थिक अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ क्लॉस जुर्गन गर्न ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए। वे मानते हैं कि अमेरिका और यूरोप में कीमतों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण आंतरिक स्रोत है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान औद्योगिक देशों के उपभोग ढांचे में बड़ा बदलाव आया है। रेस्तरां और मूवी थिएटर बंद हैं, यात्रा अभी संभव नहीं है, और अधिक पैसा खरीददारी में जाता है। चीन ने जल्दी से पूर्ण उत्पादन बहाल कर बड़े पैमाने पर उत्पादन तरीकों को बदला है।
लेख के अंत में बताया गया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था चीन की आपूर्ति की कमी से नहीं, बल्कि औद्योगिक देशों में महामारी से उत्पन्न मांग तूफान से लड़ रही है। क्लॉस जुर्गन गर्न का मानना है कि मुद्रास्फीति के सामान्य होने में अभी भी समय लगेगा, लेकिन आपूर्ति की समस्या अगले साल के भीतर हल हो जाएगी और कीमतों के दबाव को कम किया जाएगा।
(मीनू)