यहां 9 घटनाक्रम के जरिए जानें, क्या होगा ‘भारत का भविष्य’?

2021-12-15 17:27:45

साल 2021  

यहां 9 घटनाक्रम के जरिए जानें, क्या होगा ‘भारत का भविष्य’?

साल 2021, कोरोना वायरस के कारण  दुनिया के लिए चुनौतियों भरा रहा। एक ओर जहां हर देश में आर्थिक संकट छाया हुआ है, तो दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की चुनौतियां हैं। ये चुनौती लगभग हर देश के सामने हैं, लेकिन भारत व चीन आर्थिक संकट और 'कोरोना वायरस की भयावह स्थिति' पर नियंत्रण करने में काफी हद तक सफल रहे हैं।

कोरोना वायरस, सदी की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी है। इस बात की गंभीरता और वैश्विक सहयोग की भावना से भारत ने अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, मॉरीशस, ओमान और सेशेल्स को कोविडशील्ड वैक्सीन भिजवाईं। भारत में निःशुल्क कोविड टीकाकरण महा-अभियान जारी है, जिसमें भारतीयों को कोविडशील्ड और कोवेक्सीन लगाई जा रही हैं।

सहयोग करने और सतर्कता बरतने का समय

चीन ने भी दुनिया के कई देशों को सिनोफार्मा और सिनोवैक वैक्सीन उपलब्ध करवाईं ताकि कोरोना वैश्विक महामारी के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके।

मौजूदा समय में ऐसे कई देश हैं जहां कोविड वैक्सीन का पहला डोज लोगों को नहीं लगा है। दुनिया के सामने कोरोना का नया वैरिएंट ओमीक्रॉन सामने आ चुका है, जिसके बारे में ज्यादा जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं है, लेकिन इस बार दुनिया के सभी देश सहयोग करते हुए सतर्कता बरत रहे हैं।

भारत में ज्यादातर लोगों को कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगा दिए गए हैं। अमेरिका में बूस्टर डोज लगाए जा रहे हैं, भारत सरकार भी भविष्य में नागरिकों को बूस्टर डोज देने के बारे में मंथन कर रही है।

क्या हम ऐसा कुछ कर सकते हैं?

यदि ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ विश्व के विकासशील और विकसित देशों के सहयोग से नए संगठन (वायरस संबंधित बीमारियों पर वैश्विक नियंत्रण के लिए) और उसके कार्य करने की रणनीति पर कार्य करे तो कोरोना के साथ ही भविष्य में आने वाली वायरस संबंधित बीमारियों को सही समय पर पहचानकर, नियंत्रित किया जा सकता है।

वायरस से होने वाली, कोरोना पहली वैश्विक बीमारी नहीं है। संभव है! भविष्य में आने वाले वायरस कोरोना, वायरस से भी ज्यादा खतरनाक हों? तब इस तरह का संगठन बेहतर प्रबंधन के जरिए वायरस पर नियंत्रण कर सकता है।

पटरी पर भारतीय अर्थव्यवस्था

कोरोना ने सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर असर डाला है। वर्तमान में, भारतीय अर्थव्यस्था पटरी पर आ चुकी है और रफ्तार पकड़ रही है। आर्थिक मोर्चे पर साल 2021 उतार-चढ़ाव भरा रहा। साल के आखिर में अर्थव्यस्था ने गति पकड़ ली है। अक्टूबर 2021 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया था कि भारत विश्व में सर्वाधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

जुलाई-सितंबर 2021 में भारत दुनिया के सबसे तेजी से गति वाली अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है। भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट 8.4 रहा, इसके बाद क्रमश: रोमानिया 8.0, यूके 6.6, सऊदी अरब 6.2, हंग्री 6.1, मेक्सिको 5.8, चीन 4.9 और यूएसए 4.9 रहा।

भारत और दुनिया की आर्थिक स्थिति के भविष्य को लेकर दो बातें कही जा सकती है पहली यह कि बाजार अब ऑनलाइन शिफ्ट हो रहे हैं, जिसका फायदा ग्राहक और व्यापारी दोनों को मिल रहा है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, घरेलू उपकरण की बिक्री भारत के साथ ही दुनियाभर में बढ़ी है। दूसरी बात यह कि ऑटो सेक्टर और औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति में सुधार देखा जा रहा है।

म्यांमार और अफगानिस्तान में तख्तापलट

साल की शुरूआत यानी 01 फरवरी, 2021 को भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में सेना ने तख्तापलट कर दिया। तो वहीं, तालिबान ने अफगानिस्तान पर 15 अगस्त, 2021 के दिन बिना किसी लड़ाई के कब्जा किया। भारत के नजरिए से देखें तो अफगानिस्तान में भारत के कई प्रोजेक्ट जारी थे, जहां भारत ने निवेश किया था। प्रोजेक्ट का रुकना भारत के लिए आर्थिक हानि के रूप में देखा जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत

साल 2021 भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि लेकर आया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र के दौरान हुए चुनाव में, भारत को साल 2021 और 2022 की अस्थाई सदस्यता के लिए चुना गया। सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारत का 02 वर्षीय कार्यकाल 1 जनवरी 2021 को शुरू हुआ।

कॉप-26 और जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए, स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक हुए ‘कॉप-26’ सम्मेलन में भारत ने 2070 तक ‘नेट जीरो उत्सर्जन’ हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

भारत प्रति व्यक्ति कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में कतर, अमेरिका, चीन, कुवैत, ऑस्ट्रेलिया से बहुत कम उत्सर्जन करता है। सम्मेलन में अमेरिका ने 2050 और चीन ने 2060 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा है।

भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है। उसकी दुनिया में 7 फीसदी हिस्सेदारी है। जबकि चीन की 28 और अमेरिका की 15 फीसदी हिस्सेदारी है।

अमेरिका में प्रति व्यक्ति कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन 15.12 टन,  चीन 7.38 टन, रूस  11.44 टन, कनाडा 18.58 टन, कतर 37.29, कुवैत 25.65 और ऑस्ट्रेलिया में 17.10 टन है। जबकि भारत में यह केवल 1.91 टन है।

यहां इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत अधिक जनसंख्या वाला विकासशील देश है, ऐसे में भारत के लिए ‘नेट जीरो’ हासिल करने में 2070 तक का समय लगेगा। इसके बाद भारत की स्थितियां संभव है, नियंत्रण में रहेंगी।

भारत : साल 2070 तक हासिल करेगा नेट जीरो का लक्ष्य!

भारत 2030 तक जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करेगा। साल 2030 तक 50 प्रतिशत ऊर्जा मांग, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा और कुल प्रोजेक्ट कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी कर सकता है। साल 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा। इस तरह भारत 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की संभावना है।

भारत, ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं। सोलर प्लांट के जरिए बिजली उत्पादन की जा रही है। मध्य प्रदेश (भारत का एक राज्य) के रीवा में 'रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर'  भारत का सबसे बड़ा सौर संयंत्र में है। यह करीब 1,590 एकड़ में तैयार किया गया है। इसके अलावा भारत में ऐसे कई सोलर प्लांट लगाए गए हैं। कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण रखने के लिए भारत सरकार हर संभव कार्य कर रही है।

कार्बन उत्सर्जन रोकने में 'हम ऐसे करें पहल'

  • कार की जगह, 'साइकिल' : जल्दी पहुंचने के लिए कार एक विकल्प है, लेकिन यदि हम साइकिल का उपयोग करें तो भले ही थोड़े देर से पहुंचे पर कार्बन उत्सर्जन को कम करके भारत के ‘नेट जीरो’ के लक्ष्य में योगदान दे सकते हैं। यदि एक व्यक्ति भी कार का इस्तेमाल बंद कर दे, तो सालाना वह दो टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन कम कर सकता है यानी आप खुद अपनी हवा साफ कर सकते हैं।
  • हवाई जहाज की जगह, रेलगाड़ी : हवाई जहाज का सफर महंगा और इससे कार्बन उत्सर्जन भी ज्यादा होता है यदि हम रेलगाड़ी से सफर करें तो सालभर में एक व्यक्ति जो लंबी दूरी वाली एक रिटर्न फ्लाइट 1.68 टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में योगदान दे सकता है।
  • मांसाहारी की जगह, शाकाहारी बनें : हम जो खाते हैं उससे भी हर व्यक्ति का कार्बन फुटप्रिंट निर्धारित होता है। दुनिया भर में जितना कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन होता है, उसका एक चौथाई हिस्सा मीट इंडस्ट्री की देन है। जहां एक किलो बीफ (मीट) की पैदावार में 60 किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, वहीं एक किलो चिकन में छह किलो ग्रीनहाउस गैसों का और एक किलो मटर में केवल एक किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
  • सबसे जरूरी पौधे लगाएं : घर के आस-पास जगह हो तो पौधे रोपित करें। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में ही गमलों में पौधे लगाएं। यह भंवरों और मधुमक्खियों को आकर्षित करेंगे जो खाद्य श्रृंखला के लिए जरूरी होती हैं। तो वही घर के कचरे का उपयोग इन गमलों में खाद देने के लिए कर सकते हैं।

भारत ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य 2070 या दुनिया का कोई भी देश ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य तभी हासिल कर पाएगा जब देश का हर नागरिक जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के महत्व को समझें। यहां  बात भारत की हो रही है, लेकिन यह बात चीन में भी उतनी ही लागू होती है।

6 घंटे की 'राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन' की यात्रा

साल के आखिरी माह दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। यह भारत-यात्रा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पर्यवेक्षकों के लिए विशेष महत्व रखती है। रूस-चीन संबंध अत्यंत घनिष्ठ हो गए हैं। रूस भारत के साथ अपने संबंधों को भी बनाए हुए है। भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 28 समझौते हुए हैं। भारत और रूस के बीच प्रतिरक्षा समझौते और सौदे पिछले कई दशकों से होते रहे हैं।

साल 2020 में भारत-रूस व्यापार 9.31 बिलियन डॉलर रहा। जबकि चीन-रूस व्यापार उससे दस गुना से ज्यादा है। जनवरी 2021 से जून 2021 तक यह 5.23 बिलियन डॉलर रहा। भारत-चीन व्यापार भी कई गुना ज्यादा है। अत्यंत व्यस्तता के बावजूद पुतिन सिर्फ 6 घंटे के लिए ही भारत आए लेकिन मोदी और पुतिन को चाहिए था कि आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए वे विशेष प्रयत्न करते। दोनों ने कहा है कि वे अगले 4-5 साल में आपसी व्यापार 30 बिलियन और निवेश 50 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

(अमित कुमार सेन)

रेडियो प्रोग्राम