अफ़गान मुद्दा: युद्ध के बिना आगे नहीं बढ़ती अमेरिकी अर्थव्यवस्था

2021-08-21 18:41:12

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आजकल हर जगह अफ़गानिस्तान की चर्चा है। चर्चा इसलिए, क्योंकि पूरे देश की व्यवस्था चरमरा गयी है और मानवीय संकट खड़ा हो गया है। तालिबान ने कुछ ही हफ्तों में वहां की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। जिसके कारण वहां के नागरिकों में भय का माहौल है। खासतौर पर लड़कियों व महिलाओं को ये डर सता रहा है कि वे स्कूल व कामकाज के लिए बाहर नहीं जा पाएंगी। आखिर अचानक तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण कैसे कर लिया। आखिर अफगानिस्तान की इस बदहाल स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है। इस सवाल का सीधा सा जवाब है अमेरिका।

जैसा कि हम जानते हैं कि अमेरिका ने दो दशक पहले 9/11 के हमले के बाद अफगानिस्तान में अलकायदा को खत्म करने के लिए अभियान चलाया। उसके बाद से अमेरिका के हज़ारों सैनिक अफग़ान धरती पर काबिज हो गए। कहने का मतलब है कि अफगानिस्तान को युद्ध की आग में झोंक दिया गया। इस दौरान न केवल तमाम अमेरिकी सैनिक हमलों में मारे गए, बल्कि बड़ी संख्या में अफगान सैनिकों व निर्दोष आम नागरिकों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस सबके विपरीत अमेरिका ने दावा किया कि उसने अफगान सेना को आधुनिक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। यहां तक कि हथियार व साज़ो-सामान सब मुहैया कराए गए हैं। अमेरिका के मुताबिक अफगान बल हाल के वर्षों में बेहद मजबूत हुए हैं और वहां के नागिरकों की स्थिति बेहतर हुई है। पिछले बीस वर्षों में अमेरिका ने अफगानिस्तान में 2.26 खरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए। अगर अमेरिका के दावे में सच्चाई है तो फिर तालिबान लड़ाकों ने बहुत कम समय में कैसे सरकारी सेना को हरा दिया। यह सवाल हर किसी के मन में चल रहा है।

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हमें यह समझना होगा कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था युद्धों के जरिए आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। इराक युद्ध को शायद ही कोई भूल पाए, जैविक हथियारों की मौजूदगी के नाम पर अमेरिका ने सद्दाम हुसैन व उनके सहयोगियों का खात्मा कर दिया। हालांकि बाद में पाया गया कि इस सब के पीछे कारण इराक में मौजूद तेल था। इस खजाने को हासिल करने के लिए अमेरिका ने उक्त नाटक किया। गौरतलब है कि अमेरिका विभिन्न देशों में युद्ध कराकर अपने हथियारों की बिक्री करता है। साथ ही ऩए-नए सैन्य उपकरणों का परीक्षण भी। इसी तरह अफगानिस्तान भी अमेरिका के लिए टेस्टिंग ग्राउंड बना रहा।

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बीस साल तक अफगान नागरिकों का मित्र होने का दावा करने वाला अमेरिका अब वहां से पीछे हट गया है। दरअसल गत मई महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का ऐलान किया। इस घोषणा के बाद से विभिन्न जानकारों ने अमेरिका को जल्दबाजी में यह कदम न उठाने की अपील की। लेकिन बाइडेन प्रशासन ने किसी की बात नहीं मानी और उसका नतीजा सामने है। लाखों अफगान नागरिक बेघर हो चुके हैं, उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। ऐसे में समय रहते अमेरिका को लोकतंत्र के बहाने दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप बंद करने की जरूरत है। क्योंकि इससे वह उस देश के लोगों के मानवाधिकारों का भी हनन करता है।

(अनिल पांडेय)  

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