कैसे हार गयी अफगान सरकारी सेना

2021-08-16 11:28:29

15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजनीतिक परिस्थिति में बड़ा बदलाव आया। राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर विदेश चले गए। तालिबान ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन को अपने नियंत्रण में ले लिया है। एक दिन में अफगानिस्तान की राजनीतिक परिस्थिति में भारी परिवर्तन आया है। विश्लेषकों का मानना है कि अफगान सरकारी सेना इसलिए जल्दी नहीं हारी, क्योंकि सेना शक्तिशाली नहीं थी या उनके पास उन्नत हथियार नहीं थे। उसकी हार सेना में भ्रष्टाचार और अमेरिकी सेना के हटने आदि वजहों से हुई।

अमेरिकी सरकार द्वारा जारी रिपोर्टों से जाहिर है कि अफगान सरकारी सेना में लम्बे समय से भ्रष्टाचार की गंभीर समस्याएं मौजूद रहीं हैं। वरिष्ठ सैन्य अफसर सिर्फ पैसे लेने के लिए उत्सुक रहते हैं, जबकि साधारण सैनिकों में लड़ाई लड़ने का मन नहीं है। जबकि तालिबान ने सरकारी सेना द्वारा छोड़े गए बहुत ज्यादा हथियारों को जब्त कर लिया और अपनी शक्ति को मजबूत किया।

अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो की सेना की पहले हवाई लड़ाई में श्रेष्ठता थी, लेकिन उनके हटने से तालिबान के लिए हवाई लड़ाई का मौका नहीं रहेगा। चूंकि जमीनी लड़ाई में तालिबान की श्रेष्ठता है। अमेरिकी और नाटो के समर्थन के बिना अफगान सरकारी सेना तालिबान का मुकाबला नहीं कर सकती।

वास्तव में अफगान सरकार की हार और अफगानिस्तान में घरेलू परिस्थिति के परिवर्तन के प्रति अमेरिका को बड़ी जिम्मेदारी उठानी होगी। 20 साल पहले अमेरिका ने युद्ध छेड़कर तालिबान शासन को उखाड़ फेंका और अफगान समाज में अलगाव पैदा किया। 20 सालों में अमेरिका ने अफगानिस्तान में राजनीतिक तंत्र और सामाजिक तंत्र को तथाकथित श्रेष्ठ बनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कुप्रभाव पैदा हुआ। इसलिए अमेरिकी सेना के हटने के तुरंत बाद अफगानिस्तान एकदम पहले की स्थिति में वापस लौट गया है।

अफगानिस्तान में राजनीतिक विश्लेषकों का व्यापक रूप से मानना है कि हालांकि तालिबान ने देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया है, फिर भी अफगानिस्तान की स्थिति आने वाले दिनों में डांवाडोल रहेगी, चूंकि अफगानिस्तान एक बहु जातीय और कई धार्मिक शाखाओं वाला देश है, और काबुल आदि बड़े शहर पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हैं। मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी सशस्त्र शक्तियां शहरों से पहाड़ी क्षेत्रों में चली गयी हैं और वे फिर एक बार तालिबान से लड़ाई लड़ेंगी।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का व्यापक रूप से मानना है कि शुद्ध सैन्य प्रस्ताव से अफगान समस्या को पूरी तरह हल नहीं किया जा सकता। संबंधित विभिन्न पक्षों को वार्ता की मेज पर राजनीतिक सुलह प्रस्ताव संपन्न करने चाहिए। कुछ लोगों ने कहा कि भविष्य में अफगानिस्तान तालिबान के नियंत्रण में रहेगा, लेकिन फिर एक बार गृहयुद्ध में फंस सकता है।

(श्याओयांग)

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