भारतीय फिल्म“ट्रीज़ अंडर द सन”के निर्माता बेबी मैथ्यू के साथ साक्षात्कार
संवादाता – सीआरआई के विशेष कार्यक्रम में आपका स्वागत है
बेबी मैथ्यू – धन्यवाद !
संवादाता – आप फिल्म के निर्माता हैं, और निर्माता का काम है कि रचनात्मक्ता के अलावा उसका काम होता है कि उसने फ़िल्म में पैसे लगाए हैं तो उसे फ़िल्म से वो पैसे कमाने होते हैं। अभी तक आपने सात फ़िल्में बनाई हैं तो उन्होंने वित्तीय तौर पर कैसा प्रदर्शन किया है ?
बेबी मैथ्यू - सच कहूं तो सारी फ़िल्में वित्तीय स्तर पर लाभदायक नहीं होती हैं। लेकिन बहुत सारे मीडिया हैं जहां पर हम अपनी फ़िल्में बेचते हैं। हम फिल्मों को अलग अलग बाज़ारों में बेचने की कोशिश करते हैं। ऐसी फिल्में जिनमें सामाजित मुद्दे होते हैं, वो विषय जिसकी समाज को ज़रूरत होती है इसके दर्शक बहुत सीमित होते हैं इसलिये थियेटर के मालिक ऐसी फ़िल्में खरीदने से परहेज़ करते हैं। ये सारी समस्याएं हम लोग झेल रहे हैं, पूरे भारत में, हमारे राज्य में भी, पूरे केरल राज्य में एक वर्ष में करीब सौ फ़िल्में बनती हैं जिनमें से बीस फ़ीसदी फ़िल्में सामाजिक मुद्दों पर बनाई जाती हैं लेकिन इस समस्या को झेल रहे हैं।
संवादाता - जब भी आपके पास कोई कहानी आती है तो आप उसमें सबसे पहले क्या देखते हैं ? अपना पैसा उस फ़िल्म में लगाने से पहले आप क्या देखते हैं ?
बेबी मैथ्यू - सबसे पहले निर्देशक से बात करता हूं, मैं सबसे पहले कहानी का विषय देखता हूं, जब मुझे और मेरे निर्देशक को कहानी पसंद आती है तो हम उस विषय पर फ़िल्म बनाने का फ़ैसला करते हैं। उदाहरण के लिये डॉक्टर बीजू ये भारत के एक सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक हैं, और इनकी लगभग सारी फ़िल्में केरल और भारत के सामाजिक मुद्दों पर ही बनती हैं, और इन्हें बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। ये एक बहुत अच्छे निर्देशक हैं। इनकी फ़िल्मों के विषय भी ऐसे होते हैं खासकर नौजवानों के लिये ये ऐसे विषय चुनते हैं कि वो इन मुद्दों के देखें और समाज में बदलाव के लिये काम करें।
संवादाता – जैसा कि आपने कहा कि आपके लिये मुख्य मुद्दा सामाजिक सरोकार हैं, तो क्या आप अपनी फ़िल्मों के ज़रिये समाज में बदलाव लाना चाहते हैं या फिर सामाजिक बदलावों को अपने लेंस के ज़रिये लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं ?
बेबू मैथ्यू – व्यक्तिगत तौर पर या फिर निर्माता के तौर पर मैं समाज को बदल नहीं सकता, लेकिन हम एक चिंगारी तो लगा ही सकते हैं, आज भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो हम लोग इसपर अपनी प्रतिक्रिया तो दे ही सकते हैं जिससे कि भविष्य में कोई समाधान तो निकले, कुछ लोग ये सोचेंगे कि ये सब खत्म होना चाहिए, कुछ बदलाव तो होना चाहिए, राजनीतिज्ञ, धार्मिक लोग ये सब सोचेंगे कि ये सब बदलना चाहिए।
संवादाता – क्या आप निकट भविष्य में बॉलीवुड, तेलुगु फिल्मों जैसी मुख्यधारा की फिल्में करना चाहेंगे जिससे आप मनोरंजन के साथ पैसे कमा सकें और उस पैसे को इस तरह की सामाजिक जागरूकता वाली फ़िल्मों में लगा सकें ?
बेबी मैथ्यू – फिलहाल मैं ऐसी बॉलीवुड जैसी फिल्में बनाने के बारे में नहीं सोच रहा हूं, मैं पहले से सामाजिक जागरूकता वाली फिल्मों के प्रति प्रतिबद्ध हूं। हालांकि मेरी पिछली फ़िल्म अडूर गोपालकृष्णन द्वारा निर्देशित थी। वो फिल्म बॉक्स ऑफ़िस हिट नहीं थी। वहीं डॉक्टर बीजू की फिल्म भी कई बार अच्छा प्रदर्शन करती हैं, दरअसल मैं जो बात कहना चाहता हूं वो ये है कि नब्बे फीसदी फिल्में आर्थिक तौर पर अच्छा व्यवसाय नहीं करती हैं। लेकिन कुछ संयोग होते हैं जहां दस फ़ीसदी फिल्में अच्छा करती हैं। वहीं सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों की निर्माण लागत उतनी ऊंची नहीं है, क्योंकि इनमें हर कोई काम करना चाहता है बिना ज्यादा पैसों की मांग किये, उदाहरण के लिये हमारी फिल्म का हीरो एक सुप्रसिद्ध कलाकार है, उन्हें राज्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है, मलयालम फ़िल्मों में उनकी फी ज्यादा है लेकिन उन्होंने हमारी फ़िल्म में काम करने के लिये कम पैसे लिये हैं, समझौता किया है। ये सब होता रहता है, तो मैं ये कहना चाह रहा था कि जब फिल्म निर्माण की लागत कम होती है तो हम लोग किसी तरह से फ़िल्म निर्माण कर पाते हैं।
संवादाता – सीआरआई से बात करने के लिये आपने अपना अमूल्य समय निकाला इसके लिये आपका धन्यवाद !
बेबी मैथ्यू - धन्यवाद !