(इंटरव्यू) जानिए किस तरह कम हो रही है हिंदी व तकनीक के बीच की दूरी

2019-06-14 16:02:24 CRI

अकसर कहा जाता है कि हिंदी भाषा तकनीक के साथ सामंजस्य बनाने में सफल नहीं हो पा रही है। इसके साथ ही यह भी सवाल उठाया जाता है कि हिंदी का उत्पादकता के साथ उतना जुड़ाव नहीं है। जिसके चलते उसका तेज विकास नहीं हो रहा है। तमाम लोग यह भी मानते हैं कि हिंदी टाइपिंग व अनुवाद आदि को लेकर बहुत कम संसाधन मौजूद हैं। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट इंडिया में भारतीय भाषाओं के प्रभारी बालेंदु शर्मा, “दधीच” का इंटरव्यू सुनने के बाद आपका भ्रम पूरी तरह दूर हो जाएगा। उन्होंने हिंदी और तकनीक संबंधी मुद्दे पर सीआरआई के साथ विस्तार से चर्चा की।

बकौल बालेंदु, हिंदी में काम बहुत लंबे समय से हो रहा है, पहले हिंदी में जो काम होता था उसमें सीडेक और कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की भूमिका होती थी। लेकिन वर्ष 1998 में माइक्रोसॉफ्ट ने प्रोजेक्ट भाषा नामक एक परियोजना शुरू की। उस प्रोजेक्ट के आने के बाद खासकर निजी क्षेत्र, बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में बड़ी दिलचस्पी लेनी शुरू की। माइक्रोसॉफ्ट ने इसमें अगुवा की भूमिका निभाई। साल 2000 में जब यूनिकोड के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं थी। उसी समय माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज़ एक्सपी और विंडोज़ 2000 के साथ यूनिकोड में हिंदी का समर्थन शुरू कर दिया। हिंदी के साथ-साथ तमिल और बांग्ला दो अन्य भाषाएं भी शामिल की गयीं। इस तरह तीन भाषाओं के साथ यूनिकोड का सहयोग 2000 में प्रारंभ हो गया था। लेकिन दो दशक बीत जाने के बाद भी लोगों में जागरूकता की कमी है। विशेषकर यूनिकोड के बारे में जानकारी कम है। और इस बारे में जो प्रयास किए गए हैं, उनको लेकर भी लोगों को बहुत कम पता है।

लेकिन असलियत यह है कि हम चिंता करते हैं टाइपिंग की। टाइपिंग में आने वाली दिक्कतों की। जिसमें फॉन्ट्स का सीमित होना भी शामिल है। इस तरह की चिंताएं आमतौर पर हिंदी से जुड़े लोगों की होती हैं। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। असलियत यह है, जैसा कि हमने बताया कि हिंदी में टाइपिंग करने के नौ या दस तरीके मौजूद हैं, यानी टेक्स्ट इनपुट करने के तमाम माध्यम सुलभ हैं। इसी तरह से हिंदी में डेढ़ सौ से अधिक फॉन्ट मौजूद हैं। लेकिन लोगों को मालूम नहीं है कि यूनिकोड में इतने ज्यादा फॉन्ट उपलब्ध हैं। क्योंकि लोग अकसर सोचते हैं कि यूनिकोड में एक फॉन्ट होता है मंगल। अकेले माइक्रोसॉफ्ट ने ही छह फॉन्ट जारी किए हुए हैं। जिसमें एरियल यूनिकोड एमएस, अपराजिता, मंगल, निर्मला, कोकिला, उत्साह फॉन्ट हैं। वहीं भारत सरकार व अन्य संस्थानों ने भी इस बाबत काम किया है।

इस तरह किसी प्लेटफार्म पर हिंदी उपलब्ध नहीं है, यह सोचना ग़लत है। चाहे आप कंप्यूटर पर ऑफलाइन की बात करें या ऑनलाइन की या मोबाइल या अन्य डिवाइसेज को ही ले लें। यहां तक कि एटीएम को ही देख सकते हैं। वहां भी हिंदी मौजूद है। वहां भी हिंदी में काम किया जा सकता है।

आपने शायद सुना होगा कि अमेजॉन ने भी अपना एप लांच किया है एमेजॉन प्राइम। उसमें भी हिंदी का समर्थन मौजूद है। साथ ही टीवी से लेकर एटीएम मशीनों में, और कंप्यूटर से लेकर मोबाइल फ़ोन में और इंटरनेट से ई-मेल में हिंदी का सपोर्ट उपलब्ध है।

बालेंदु का मानना है कि यह समर्थन सिर्फ टाइपिंग तक ही क्यों सीमित रहे। सबसे बड़ी बात है कि हिंदी उत्पादकता में इस्तेमाल होनी चाहिए। अब तमाम चीजों के आ जाने के बाद यह सवाल खड़ा होता है कि माना आपने टाइपिंग करना सीख लिया, उसके बाद आगे क्या किया जा सकता है।

अब हमें यूनिकोड, फॉन्ट और की-बोर्ड जैसी चीज़ों से ऊपर उठने की जरूरत है। क्योंकि अब हम यूनिकोडोत्तर दौर में आ चुके हैं। ऐसे में हमें हिंदी को आधुनिकता, तकनीक से जुड़े क्षेत्रों में इस्तेमाल करना है। उदाहरण के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम मेधा। क्या हम हिंदी का प्रयोग कृत्रिम मेधा में कर सकते हैं। जी हां बिल्कुल कर सकते हैं। आज अंग्रेजी से हिंदी में, और हिंदी से अंग्रेजी में मशीनी अनुवाद हो रहा है। माइक्रोसॉफ्ट व गूगल के साथ-साथ अन्य संस्थानों ने भी ऐसा किया है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के कुछ और भी दूसरे पहलू हैं, मिसाल के लिए बोल कर टाइप करना। भविष्य की कंप्यूटिंग में बोल कर ही आप सब काम कर सकेंगे। उंगलियों और टाइपिंग पर निर्भरता बहुत कम हो जाएगी। क्या हमारी भाषा उस दौर के लिए तैयार है, जब हम बोल कर कंप्यूटर से संवाद करेंगे कि कंप्यूटर मेरे लिए यह टाइप कर दो, मेरे लिए कोई चीज़ ढूंढ दो। हमारे सामने ये चुनौतियां हैं कि जो नए जमाने की चीजें आ रही हैं उनके साथ हिंदी कैसे तालमेल बिठाएगी।

नोट- इंटरव्यू की पूरी बातचीत वीडियो के रूप में उपलब्ध है।

अनिल आजाद पांडेय

रेडियो प्रोग्राम