(वीडियो इंटरव्यू) चीन-भारत रिश्तों में पुल का काम करेगी हिंदी- प्रो. लोहनी
लंबे समय से हिंदी को समर्पित और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी के साथ सीआरआई ने बातचीत की। प्रो. लोहनी ने इस दौरान हिंदी के भविष्य और प्रचार-प्रसार को लेकर हो रहे प्रयासों का जिक्र किया। साथ ही चीन में हिंदी की बढ़ती भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी अलग-अलग रूपों में आगे बढ़ रही है। ऐसे में हिंदी का भविष्य उज्जवल नजर आता है। इस संदर्भ में चीन के शंघाई में अपनी तरह की पहली हिंदी संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। जिसमें न केवल भारतीय बल्कि चीनी विद्वानों ने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।
बकौल लोहनी हिंदी को लेकर चीन में नई गतिविधियों की शुरूआत हाल के दिनों में तेज हुई है। जिसमें समन्वय हिंची नामक पत्रिका के प्रकाशन के बाद संगोष्ठी का आयोजन भी हुआ।
भारत का नजदीकी पड़ोसी देश होने के नाते चीन में हिंदी में हिंदी की गतिविधियां बढ़ सकती हैं। क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार की संभावनाओं में इजाफा हो रहा है, मानवीय आवाजाही बढ़ रही है। इसके साथ ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी प्रगाढ़ हो रहा है। ऐसे में भाषा के विकास और लक्ष्य को भी उसी तरह से आगे ले जाने की जरूरत है।
जिस तरह से सांस लेने के लिए हवा की आवश्यकता होती है, उसी तरह भाषा का भी अपना महत्व है। कहना गलत न होगा कि पड़ोसी देश होने के बावजूद दोनों देशों में एक-दूसरे के बारे में तथ्यपरक और सटीक जानकारी का अभाव है। इस तरह के कार्यक्रम भारत और चीन को जोड़ने के साथ-साथ रिश्तों को मजबूती प्रदान करेंगे।
प्रो. लोहनी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने चीन और भारत में हिंदी से जुड़े प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाने की सफल कोशिश की। एशिया की पड़ोसी ताकतों के मध्य इस तरह के कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन होते रहना चाहिए। ताकि दोनों देशों की भाषाएं और लोग एक-दूसरे के करीब आ सकें।
अनिल आजाद पांडेय