श्वेत अश्व मठ में मिली भारतीय सभ्यता की झलक
आज से 2 हजार साल पहले, प्राचीन भारत के बौद्ध भिक्षु कश्यप मातंग और धर्मारण्य पामीर पठार को पार कर सफ़ेद घोड़े पर बैठकर बौद्ध सूत्र और मूर्तियां लाकर तत्कालीन दुनिया के केंद्र ल्वोयांग शहर पहुंचे। बाद में इस घटना की स्मृति में श्वेत अश्व मठ का निर्माण किया गया और पूर्वी ज़मीन पर ल्वो ह नदी के किनारे चीन का प्राचीन बौद्ध धर्म मठ स्थापित हुआ।
धनुष रेड्डी और अजय चौधरी चीन के हनान प्रांत के प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले भारतीय विद्यार्थी हैं। उन्हें ल्वोयांग आए सिर्फ़ 10 महीने हुए हैं। जन्मभूमि और परिवारजनों की याद दिन ब दिन बढ़ रही है। श्वेत अश्व मठ के इतिहास को जानने के बाद आज वे यहां अपनी मातृभूमि से आयी संस्कृति की खोज करने आ रहे हैं।
श्वेत अश्व मठ के पश्चिमी भाग में एक भारतीय शैली का बौद्ध धर्म भवन है, जिसके भीतरी और बाहरी सजावट के लिए प्रयोग किये गये सभी पत्थर भारत सरकार द्वारा दिये गये हैं। भारतीय बौद्ध धर्म भवन की ख़ास कला विशेषता है, जो बौद्ध धर्म की वास्तु कला के इतिहास और परम्परा को कायम रखते हुए आधुनिक समाज में अनुयाइयों की पूजा या यात्रा की मांग को भी पूरा करती है। साल 2003 के जून माह में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने श्वेत अश्व मठ का दौरा किया और यहां एक भारतीय बौद्ध धर्म भवन का निर्माण करने की योजना बनायी। साल 2005 के अप्रैल माह में चीनी प्रधानमंत्री ने आमंत्रण पर भारत की यात्रा की और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ चीन के ल्वोयांग के श्वेत अश्व मठ के पश्चिम में भारतीय शैली के बौद्ध धर्म भवन का निर्माण करने के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। 26 अप्रैल, 2006 को भारतीय बौद्ध धर्म भवन का औपचारिक निर्माण शुरू हुआ। 29 मई, 2010 को भारतीय बौद्ध धर्म भवन की औपचारिक स्थापना हुई। अब श्वेत अश्व मठ में भारतीय बौद्ध धर्म भवन चीन-भारत संस्कृति व मैत्री का प्रतीक बन चुका है।