03 दर्शनीय स्थल--लुशान पर्वत की कहानी
दर्शनीय स्थल--लुशान पर्वत की कहानी 庐山故事
दक्षिण-पूर्वी चीन स्थित च्यांगशी प्रांत में स्थित लुशान पर्वत अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनिया भर में विख्यात है, जिसके बारे में प्राचीन काल से ही कई किवदंतियां प्रचलित हैं।
लुशान पर्वत दक्षिण-पूर्वी चीन के च्यांगशी प्रांत के उत्तरी भाग में स्थित है, जो आलीशान, अनोखा, खतरनाक और सौम्य होने के कारण देश विदेश में मशहूर है। प्राचीन काल से अब तक बड़ी संख्या में सांस्कृतिक हस्तियों ने पर्वत में जाकर अपनी कला के हुनर का परिचय दिया। उनकी कविताओं और चित्रों ने लुशान पर्वत को एक पवित्र स्थल का रूप दिया।
ईसवीं आठवीं शताब्दी के थांग राजवंश के महान कवि ली पाई ने लुशान पर्वत के जलप्रपात के सौंदर्य के वर्णन में जो कविता लिखी थी, वह सदियों से चीन में लोकप्रिय है। कविता इस प्रकार है:
सूर्य की किरण पड़ी अगरबत्ती के पात्र पर,
हल्का-हल्का उठ रहा है धुआं ऊपर की ओर,
दूर-दूर से निगाह दौड़ाए
सीधी चट्टान से गिरा अनोखा जलप्रपात
वेग गति से बहता है मानो आसमान से,
उफनती फव्वारे छोड़ती तीन हजार गज लंबी,
लगता है मानो आकाश गंगा हो,
स्वर्ग के नौवें लोक से आया है इस पर्वत पर
वहीं, चीन के सोंन राजवंश (ईस्वी 960--1127) के प्रसिद्ध साहित्यकार सु तोंगफो(Su Dongpo) ने कई बार लुशान पर्वत का दौरा किया। पर्वत की पश्चिमी चट्टान के वर्णन में उसने जो कविता लिखी थी, उसमें दार्शनिक विचार निहित है और आज तक चीनियों द्वारा अपने लेखन में इस्तेमाल किया जाता है। कविता का अर्थ है:
इस तरफ़ से देखें, तो बनती है चट्टान वही,
उस तरफ़ से देखें, उभरती है चोटी यही,
दूर-दूर से दिखता है छोटा, नज़दीक से ऊंचा
पता नहीं चलता, लुशान का असली चेहरा,
इसी पर्वत में समाए हैं हम
इस कविता ने लुशान पर्वत को और रहस्यमयी बनाया है।
दर्शनीय स्थल--लुशान पर्वत की कहानी 庐山故事
लुशान का दूसरा नाम है ख्वांग शान(Kuang shan)। कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में चोउ राजवंश में एक व्यक्ति ख्वांग सु (Kuang Su) के नाम से मशहूर था। वह वर्षों से लुशान पर्वत में ताओ धर्म के अलौकिक कार्य की खोज में जुटा था। चोउ राजवंश के राजा को ख्वांग सु की योग्यता की खबर मिली, तो उसने ख्वांग सु को बुलावे के लिए आदमी भेजा। लेकिन खवांग सु ने हर बार राजा के निमंत्रण को ठुकराया और वह पर्वत के गहन वादी में जा छिपा। बाद में ख्वांग सु का कोई पता नहीं रहा, लोगों को लगा कि वह देवता बनकर अदृश्य हो गया। उसकी याद में लुशान को ख्वांग शान के नाम से जाना जाने लगा।
ईस्वी 381 में चीन के तोंगचिन(Dong Jin) राजवंश के काल में धर्माचार्य ह्वेइ युआन (Hui Yuan) अपने शिष्यों के साथ लुशान पर्वत पहुंचे। स्थानीय पदाधिकारी की मदद में ह्वेइ युआन ने तोंगलिन मठ बनाया, जो आगे चल कर बौद्ध धर्म के महायान की एक मुख्य शाखा-- सुखवटी संप्रदाय का जन्म स्थल बना। इस तरह लुशान भी दक्षिण चीन में बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र बन गया। धर्माचार्य ह्वेइ युआन ने लुशान पर्वत में 38 साल तक तपस्या की, उसने बौद्ध धर्म के विभिन्न शीलों का पालन किया और गहरी सिद्धि हासिल की।
तोंगलिन मठ और धर्माचार्य ह्वेइ युआन के संबंध में आज तक धार्मिक जगत में कई कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता था कि तोंगलिन मठ के निर्माण की सामग्री पूरी न होने की समस्या को सुलझाने में ह्वेइ युआन रोज़ दिमाग खपाता रहा। अचानक एक रात आकाश में बिजली चमकी और मूसलाधार वर्षा हुई। और कोई भी बाहर नहीं जा पाया। दूसरे दिन बारिश रुकी, बादल छंट गये, जमीन पर पानी का तालाब नज़र आया। पानी पर कई लकड़ियां तैरती रही। ह्वेइ युआन को लगा कि ये लकड़ी देवता द्वारा तोंगलिन मठ के निर्माण के लिए भेजी गयी हैं। इन लकड़ियों से मठ का एक भव्य भवन बनाया गया। ह्वेइ युआन ने इस भवन का नाम दिव्य परिवहन भवन तथा उस तालाब का नाम लकड़ी तालाब रखा।
तोंगलिन मठ के सामने कमल का एक तालाब है। तालाब में स्वच्छ जल, हरे-हरे पत्तों के बीच सफ़ेद कमल के फूल दिखते हैं। वातावरण अत्यन्त शांत और सुन्दर है। कहा जाता है कि सफ़ेद कमल का यह तालाब तोंगचिन काल के मशहूर कवि श्ये लिंगयुआन (Xie Lingyuan) ने खुदवाया था। श्ये लिंगयुआन तोंगचिन राजवंश के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ श्येन श्वान (Xie Xuan) का परपोता था और चीन के सुप्रसिद्ध लिपिकार वांग शीज़ (Wang Xizhi) का भतीजा था। वह प्रतिभाशाली और खमंडी भी था। एक बार वह लुशान पर्वत पहुंचकर धर्माचार्य ह्वेइ युआन के नेतृत्व वाले सफ़ेद कमल संघ में भाग लेना चाहता था। लेकिन ह्वेइ युआन ने उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया। उसने श्ये लिंगयुआन से कहा कि तुम्हारा स्वभाव अजीब है, बेहतर है कि तुम पहले तीन तालाब खोदो, जब तुम्हारा हृद्य कमल की भांति शुद्ध और शांत हो जाय, तब तुम संघ में शामिल हो पाओगे।
लाचार होकर श्ये लिंगयुआन को तीन तालाबा खोदने पड़े। इसके बाद वह सफ़ेद कमल संघ में शामिल हो सका। ह्वेइ युआन और श्ये लिंगयुआन में ज्ञान पर गहन बातचीत हुई और दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी। ह्विई युआन के महानिर्वाण पर श्ये लिंगयुआन को बेहद दुख हुआ। उसने दूर च्यान खांग ( यानी आज का नानचिन शहर) से लुशान आकर ह्वेइ युआन की स्मृति में समाधि का आलेख लिखा।
लुशान पर्वत में चीन की सदियों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा मौजूद है और असाधारण सुन्दर प्राकृतिक दृश्य दिखते हैं, वह चीन के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में एक हैं।