038 ड्रैगन को मार डालने का कौशल
ड्रैगन को मार डालने का कौशल 降龙之技
"ड्रैगन को मारने का कौशल"कहानी को चीनी भाषा में"श्यांग लोंग च जी"(xiáng lóng zhī jì) कहा जाता है। इसमें"लोंग"का अर्थ है ड्रैगन,"श्यांग"का अर्थ है मार डालना और"च"का अर्थ है कौशल।
प्राचीन काल में चु फिन नाम का एक युवा था। वह हर प्रकार का कौशल सीखने का शौकिन था।
एक दिन, उसने सुना था कि चिली ड्रैगन मारना जानता था, तो उसने अपना तमाम जायदाज बेचकर पैसा जमा किया और दूर-दूर जाकर चिली से ड्रैगन मारने का हुनर सीखने लगा।
तीन वर्ष बाद, चु फिन ड्रेगन मारने का पाठ पूरा कर अपना गांव वापस लौटा। गांव वासियों की कौतुहल को शांत करने के लिए उसने ड्रैगन को मार डालने के हुनर का सुन्दर प्रदर्शन किया।
जब वह बड़े उत्साह से ड्रैगन पर सवार होने और तलवार मारने के प्रदर्शन में मग्न रहा था, तो एक वृद्ध गांव वासी ने पूछा:"बेटा, तुम कहिए, वह ड्रेगन कहां से मिल रहा है, जिसे मारा जा सकता है?"
"ओह, यह तो मैंने कभी नहीं सोचा था।"जैसे चु फिन के सिर पर किस ने ढेर सारा ठंडा पानी फेर दिया हो, वह एकदम जाग उठा। ड्रैगन एक काल्पिक जानवार है, वह असली नहीं है। चु फिन का ड्रैगन को मारने का हुनर जितना कुशल क्यों न हो, वह बेकार सिद्ध होगा।
"ड्रैगन को मार डालने का कौशल"यानी चीनी भाषा में"श्यांग लोंग ची जी"(xiáng lóng zhī jì) नीति कथा से हमें सचेत कर दिया गया है कि हम उपयोगी तकनीक सीखें, बेकार की तकनीक ना सीखें।
शत फुट डंडा लम्बा नहीं है 百尺竿头更进一步
"शत फुट डंडा लम्बा नहीं है", इसे चीनी भाषा में"पाई छी कान थोउ कंग चिन ई पू"(bǎi chǐ gān tóu,gèng jìn yī bù) कहा जाता है। इसमें"पाई छी"का मतलब है सौ फुट, "कान थोउ"का अर्थ है डंडा का ऊपरी भाग,"कंग चिन ई पू"का अर्थ है और आगे बढ़ जाना। कुल मिलाकर कहा जाए, तो"पाई छी कान थोउ कंग चिन ई पू"का मतलब"सौ फुट लम्बे डंडे से एक कदम आगे बढ़ना है।"
आज से एक हजार वर्ष पहले, चीन के सोंग राज्य काल (वर्ष 960 से वर्ष 1297 तक) में चिंग छन (Jing Cen) नाम का एक महा भिक्षु थे। उन्होंने लोगों को शिक्षा देने केलिए एक काव्य बनाया, जो इस प्रकार है:शत फुट लम्बा डंडा खास नहीं है, मोक्ष पाना शायद ही सत्य है, शत फुट से भी लम्बा अवश्यक है, दसवें लोक में प्रवेश असली मुक्ति है।
एक दिन, आचार्य चिंग छन बौद्ध मंदिर के शिक्षा भवन में बौद्ध सूत्रों पर व्याख्यान दे रहे थे। भवन में उपस्थित सभी लोग उनका उपदेश बड़े ध्यान से सुनते थे। उनकी बातें इतनी रूचिकर थी कि विशाल भवन में आचार्य की आवाज़ छोड़कर तनिक भी ध्वनि नहीं सुनाई भी नहीं पड़ी। आचार्य का उपदेश सुनने के बाद एक भिक्षु ने उठकर नमस्कार किया और आचार्य से बौद्ध धर्म के सर्वोच्च स्थान के संबंध में प्रश्न किए। दोनों में गहन अध्ययन की बातें चलीं और बातचीत विनम्र और स्नेह से भरी दिखी।
आचार्य चिंग छन ने उस भिक्षु को समझाते हुए कहा:"सौ फुट लम्बा बांस का डंडा ज्यादा लम्बा नहीं माना जा सकता है। उससे भी फुट-फुट लम्बा होना चाहिए। दसवां स्वर्ग लोक सच्चे मायने की उच्चतम ऊंचाई कहा जा सकता है।"
"शत फुट डंडा लम्बा नहीं है"यानी चीनी भाषा में"पाई छी कान थोउ कंग चिन ई पू"(bǎi chǐ gān tóu,gèng jìn yī bù) नाम की इस कहानी से चीन में यह कहावत प्रचलित हो गया कि सौ फुट लम्बे डंडे से एक कदम आगे बढ़ो। अर्थात प्रगति की कोई सीमा नहीं है, सौ फुट लम्बाई से भी लम्बा होने की असलियत होती है, हमें चाहिए कि एक-एक कमद आगे बढ़े और ज्यादा से ज्यादा प्रगति पाए।