037 लाओ शान पहाड़ का ताओ तपस्वी
लाओ शान पहाड़ का ताओ तपस्वी 崂山道士
"लाओ शान पहाड़ का ताओ तपस्वी" नाम की कहानी को चीनी भाषा में"लाओ शान ताओ शी"(láo shān dào shì) कहा जाता है। इसमें"लाओ शान"पहाड़ का नाम है।"ताओ श"का अर्थ है ताओ धर्म के तपस्वी।
चीन के प्राचीन देव असूर कथा संकलन में लाओ शान पहाड़ के ताओ तपस्वी की कहानी काफी मशहूर है।
कहा जाता था कि समुद्र के सुन्दर तट पर लाओ शान नाम का एक पहाड़ खड़ा था, पहाड़ पर एक देवता रहता था, जो लाओ शान के ताओ तपस्वी के नाम से मशहूर था। ताओ धर्म में तपस्या करने से लाओ शान ताओ तपस्वी बहुत से तंत्र मंत्र जानता था, जिनसे जन साधारण अज्ञात था।
लाओ शान पहाड़ से कोई सौ किलोमीटर दूर एक शहर में वांग छी नाम का एक व्यक्ति रहता था । बालावस्था में ही वांग छी (Wang Qi) नामक व्यक्ति तंत्र मंत्र में सुरूचिकर था और दिव्य तंत्र सीखना चाहता था। जब लाओ शान के ताओ तपस्वी की ख़बर उसके कान में पड़ी, तो उसने वहां जाकर सीखने की ठान ली। इस तरह वांग छी लाओ शान पहाड़ पर आया और ताओ तपस्वी से मिला। बातचीत से वांग छी को लगा कि ताओ तपस्वी अलोकिक काम के ज्ञाता है। तो उसने ताओ तपस्वी से उसे अपना चेला बनाने का अनुरोध किया। ताओ तपस्वी ने उसे थोड़ा निहारते हुए कहा कि तुम सुख आराम से पले बढ़े हो, तुम तपस्या की कठोरता से डरते हो। लेकिन वांग छी ने बारंबार विनती की, अंत में ताओ तपस्वी ने उसे अपना चेला बनाना स्वीकार लिया।
उसी रात, खिड़की से अन्दर छटकी चांदनी को निहारते हुए वांग छी ने तुरंत ही दिव्य तंत्र सीख जाने का सपना देखा और उसे असीम आनंद हुआ। लेकिन उसे क्या पता कि दूसरे दिन, जब सुबह वह गुरू के पास गया, तो ताओ तपस्वी ने तंत्र मंत्र सीखाने के बजाए उसे एक कुहाड़ी थामा और उसे अन्य चेलों के साथ पहाड़ पर ईंधन के लिए लकड़ी काटने भेजा। इसपर वांग छी बहुत नाखुश हुआ, लेकिन उसे गुरू जी का आज्ञा मानना पड़ता था। पहाड़ पर पदडंडी दुगम था, झाड़खंड व चट्टानें थे, सूर्यास्त होने तक भी नहीं था कि वांग छी के हाथों व पांवों में कई छाला पड़े।
देखते ही एक महीना गुजरा था, वांग छी के हाथ पांव में छाला पक्का भी हो गया और दिन भर के कड़े परिश्रम से वह असह भी लगा, तो घर वापस जाने का विचार आया। उसी रात, जब वांग छी और अपने साथियों के साथ विहार में लौटा, तो देखा कि उनका गुरू दो मेहमानों के साथ मदिरा पीने में मस्त थे। अंधरा छाया था, कमरे में बत्ती नहीं जली, तब गुरू ने एक सफेद कागज निकाल कर खैंची से उसे काटकर आइना का रूप बनाया और दीवार पर लगा दिया, क्षण में कागज का आइना चांद की भांति आलोकित हो गया, पूरे कमरे में रोशनी फैली।
एक मेहमान ने कहा:"इस प्रकार की सुहावनी रात और स्वादिष्ट भोज में मनोरंजन भी होना चाहिए।"
वांग छी के गुरू ताओ तपस्वी ने चेलों को केतली का मदिरा दिया और उन्हें जी भर कर पीने को कहा। वांग छी को शंका आयी कि इतनी छोटी केतली का शराब सभी चेलों के लिए क्या पर्याप्त हो सकता था, लेकिन ताज्जुब की बात थी कि केतली का मदिरा जितना भी उडेला गया, उस में भरा शराब लबालब रहा था। वांग छी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
थोड़ी देर में एक दूसरे मेहमान ने कहा:"अब चांद की रोशनी मिली है, मधु मदिरा भी है, अगर नाच गान भी हो, तो ज्यादा आनंद होगा।"
वांग छी के गुरू ताओ तपस्वी ने मुस्कराते हुए एक चापस्तिक उठा और दीवार पर लगे सफेद कागज की ओर जरा इशारा किया, देखते ही देखते, कागज में से एक सुन्दरी निकली, जो पहले केवल चापस्तिक जितना ऊंची थी, जमीन पर खड़ी होने के बाद ही वह आदमकद लम्बी बढ़ गई, सुन्दरी बड़ी छरहरी थी, गोरी गोरी थी और लम्बी फीता लहराते हुए गाने नाचने लगी। नाचगान जब समाप्त हुआ, वह सुन्दरी हवा में उड़ कर मेज़ पर कूद पड़ी, लोगों के हवाहोश के बीच वह फिर चापस्तिक के रूप में बदल गई।
यह सब करिश्मा देखकर चकित हुए वांग छी के मुहं से एक शब्द भी नहीं निकल सका। इसी वक्त एक मेहमान ने कहा:"बड़ा मज़ा आया, किन्तु जाने का वक्त आया है।"
ताओ तपस्वी और दोनों मेहमानों ने भोज का मेज़ उठाकर चांद में डाला, चांद की रोशनी धीरे धीरे चली गई, चेलों ने मोमबत्ती जलाई, तब देखा, तो उन के गुरू वही अकेले बैठे थे, मेहमान पता नहीं कहां चले गए, पर मेज़ पर बचा हुआ खाना वही रहा था।
एक महीना और गुज़रा। गुरू ताओ तपस्वी ने फिर भी वांग छी को तंत्र मंत्र नहीं सीखाया। वांग छी सहन से बाहर हो गया, तो वह गुरू के पास चला गया। उस ने गुरू से कहा:"गुरू जी, मैं दूर से आया हूं, यदि आप मुझे अमर होने का दिव्य तरीका नहीं सीखाना चाहते हैं, तो कम से कम मुझे थोड़ा सा मामूला तंत्र सीखाएं, इसी पर मैं संतुष्ट होऊंगा।"
गुरू को मुस्कराते हुए एक शब्द भी नहीं बोलते देख वांग छी और बड़ा चिंचित हुआ, उसने जिद के साथ कहा:"गुरू जी , मैं रोज़ सुबह-सुबह लड़की काटने जाता हूं, संध्या वेला समय तक ही लौटता हूं, अपने घर में भी मैं ऐसा कठोर काम कभी भी नहीं करता हूं।"
गुरू ने हंसते हुए कहा:"मैं शुरू में ही जानता हूं कि ऐसा कठिन काम तुम्हारी बस के बाहर है, कल सुबह तुम घर लौट सकते हो।"
वांग छी ने फिर विनती की:"गुरू जी , थोड़ा मामली कौशल तो सीखाएं, इसतरह मैं बेकार तो यहां नहीं आया हूं।"
गुरू ने पूछा:"तुम क्या सीखना चाहते हो?" तो वांग छी ने कहा:"मैं देखता आया हूं कि आप जब मकान के भीतर प्रवेश करते हैं, दीवार भी आप को नहीं रोक सकती। दीवार में से गुजरने का हुनर सीखाएं।"
ताओ तपस्वी ने हां भरी। वांग छी उसके साथ एक दीवार के सामने आया, तपस्वी ने उसे दीवार में से गुजरने का तंत्र बताया और उसे जपाते हुए दीवार पर सिर टक्कारने को कहा। लेकिन पत्थर की मजबूत दीवार के सामने वांग छी के पैर भय के मारे कांपने लगे। गुरू ने फिर उसे दीवार के अन्दर घुसने को कहा, वांग छी आगे कुछ कदम बढ़ कर फिर रूक गया, गुरू नाखुश हो गया और बोला:"सिर नीचे की ओर झुका कर आगे जा बढ़ो।"
इस बार वांग छी दिल कड़ा कर आगे दौड़ा, अजान में ही वह दीवार की दूसरी तरफ जा पहुंचा था। वांग छी की खुशी का ठिकान नहीं रहा और गुरू को धन्यावाद देकर घर लौटने की अनुमति मांगी। ताओ तपस्वी ने कहा:"घर लौटने के बाद ईमानदारी से लोक व्यवहार करना, वरना वह तंत्र अप्रभावित होगा।"
घर लौटने के बाद वांग छी ने बड़े अहंकार के साथ अपनी पत्नी से डींग मारा:"मेरी देवता से मुलाकात हुई थी, उनसे मैं ने तंत्र सीखा, अब दीवार भी मुझे मकान के भीतर घुस जाने से नहीं रोक सकती है।"
पत्नी को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ और कहा:"दुनिया में ऐसा कभी नहीं सुनने को मिला है।"
अपना कौशल दिखाने के लिए वांग छी ने मुह में तंत्र जपाते हुए सिर को दीवार पर दे मारा, एक धमके की आवाज़ के साथ वांग छी दीवार के आगे जमीन पर गिर पड़ा, पत्नी ने तुरंत उसे सहारा दे कर खड़ा कर दिया, लेकिन वांग छी के माथे पर एक बड़ा सा फफोड़ उभर पड़ा।
वांग छी का पूरा होश हवा हो गया, उससे एक शब्द भी नहीं बोल पाया। पत्नी ने हंसते हुए उसे मनाते हुए कहा:"मान लीजिए, इस दुनिया में आप का कहा जैसा तंत्र मौजूद है, तो भी उसे दो तीन माह के भीतर सीखा जा सकता है! "
किन्तु वांग छी को यह बात कभी समझ में नहीं आयी कि उसी रात सचमुच ही गुरू के कहने पर वह दीवार में से सही सलाम गुजरा था, तो क्या ताओ तपस्वी ने उसे धोखे में डाला हो?