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    वसंतोत्सव की प्रथा---बाई न्येन यानी नए साल पर बधाई देना
    2017-02-06 10:56:29 cri

    नव वर्ष के पहले दिन सुबह, लोग उठने के बाद नए कपड़े पहनते और द्वार खोलते समय पटाखे छोड़ते हैं। फिर रिश्तेदारों या मित्रों के घर जाकर एक दूसरे को नए साल की बधाई व शुभकामनाएं देते हैं। प्राचीन काल में"बाई न्येन"का अनुक्रम होता थाः सब से पहले स्वर्ग व धरती की पूजा की जाती थी, फिर पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती थी, फिर माता-पिता को शुभकामना दी जाती थी, इस प्रकार के तमाम कर्म के बाद बाहर जाकर रिश्तेदारों या मित्रों से मिलने जाते थे और एक दूसरे को शुभकामना दी जाती थी। यह प्रथा भी प्रचलित थी कि नए साल के प्रथम दिन, लोग अपने घर के वृद्धों का अभिवादन करते थे, दूसरे दिन पत्नी के साथ ससुर के घर जाते थे और उन्हें को अभिवादन देते थे, तीसरे दिन, रिश्तेदारों को बधाई देने जाते थे। इसी तरह"बाई न्येन" 15वें दिनों तक चलता था। पुराने समय में"बाई न्येन"व"ह न्येन"का अलग अलग अर्थ था।"बाई न्येन"का अर्थ था कि नयी पीढ़ी के लोग वृद्धों को शुभकामना देते थे, जबकि"ह न्येन"का अर्थ था कि सम पीढ़ी में एक दूसरे को शुभकामना दी जाती थी। सुंग राजवंश में रिश्तेदार या मित्र एक दूसरे को छ्वुन थ्येई ( वसंतोत्सव का बधाई कार्ड) देकर नए साल की शुभकामना देते थे। हो सकता है कि यह सब से पुराना बधाई कार्ड होगा। मिंग राजवंश में बधाई कार्ड की डिज़ाइन और सुन्दर हो गयी। कार्ड पर न केवल कार्ड देने वाले व्यक्ति का नाम-पता होता था, बल्कि"नया साल मुबारक"और"गूड लक"जैसे वाक्य भी लिखे जाते थे।

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