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    आप की पसंद 160220
    2016-02-22 08:51:56 cri

    20 फरवरी 2016, आपकी पसंद

    पंकज – श्रोता मित्रों आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की करते हैं शुरुआत और आपका मित्र पंकज श्रीवास्तव करता है आप सभी को नमस्कार, तो मित्रों आपके इस सबसे चहेते आपकी पसंद कार्यक्रम में हम आपको हैरतअंगेज़ और ज्ञानवर्धक जानकारियां देने का सिलसिला शुरु करते हैं और साथ ही आपको सुनवाएंगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत।

    अंजली – श्रोता मित्रों को अंजली का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं आपके प्यार के कारण ही दिनों दिन हमारे श्रोताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और हम चाहते हैं कि आप हमारे कार्यक्रम में अपने कुछ सुझाव भी भेजें जिससे हम अपने इस कार्यक्रम को नए रूप में ढालें तो वो आपके अनुरूप हो, जिससे आप अपने इस चहेते और प्यारे कार्यक्रम को सुनने के लिये और भी अधिक उत्सुकता दिखाएं, हमारा उद्देश्य है आपको ढेर सारी जानकारी देना साथ ही हम आपको आपकी पसंद के फिल्मी गाने भी सुनवाते हैं तो चलिये करते हैं आज के कार्यक्रम की शुरुआत। मित्रों हमारे पहले श्रोता हैं ... नारनौल हरियाणा से उमेश कुमार शर्मा, प्रेमलता शर्मा, सुजाता, हिमांशु और नवनीत आप सभी ने सुनना चाहा है .... यादों की बारात (1973) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर, पद्मिनी कोल्हापुरे और सुषमा श्रेष्ठ ने गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी और संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 1. यादों की बारात निकली है.....

    पंकज - क्या कामयाबी के लिए धूर्त होना ज़रूरी है?

    अक्सर आप सुनते होंगे कि ज़माना बेदर्द है.

    आपके-इर्द-गिर्द भी ऐसे लोग ही कामयाब नज़र आते होंगे जो संवेदनहीन, निर्दयी और बेदिल हों. फ़िल्मों में भी विलेन के पास ही दौलत और शोहरत का ख़ज़ाना होता है.

    ये सब देखकर कहीं ऐसा तो नहीं लगता कि ज़िंदगी में कामयाबी के लिए निर्दयी और अहंकारी होना ज़रूरी है?

    चलिए, इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.

    पहले तो आपको यह बता दें कि निर्दयी लोग कितने तरह के होते हैं. मनोवैज्ञानिकों ने ढेर सारे शोध के बाद पाया है कि ऐसे लोग तीन तरह के होते हैं.

    अंजली – मित्रों पंकज आपको धूर्त और सफतता के राज़ बताएं उससे पहले मैं उठा रही हूं कार्यक्रम का अगला गीत जिसके लिये हमें फरमाईशी पत्र लिख भेजा है बाबू रेडियो श्रोता संघ आबगिला गया बिहार से मोहम्मद जावेद खान, ज़रीना खानम, मोहम्मद जामिल ख़ान, रज़िया खानम, शाहिना परवीन, खाकशान जाबीन, बाबू टिंकू, जेके खान, बाबू, लड्डू, तौफीक उमर खान, और इनके साथ केपी रोड गया बिहार से ही हमें पत्र लिखा है मोहम्मद जमाल खान मिस्त्री, शाबिना खातून, तूफ़ानी साहेब, मोकिमान खातून, मोहम्मद सैफुल खान, ज़रीना खातून ने आप सभी ने सुनना चाहा है बनारसी बाबू (1973) फिल्म का गाना जिस गाया है किशोर कुमार ने गीतकार हैं राजेन्द्र कृष्ण और संगीत दिया है कल्याणजी आनंद जी ने और गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 2. बुरे भी हम भले भी हम .....

    पंकज - पहला, अहंकारी जिसे अंग्रेज़ी में 'नार्सिसिस्ट' कहते हैं. ऐसे लोग ख़ुद में खोए रहते हैं. अपने को सबसे बेहतर समझते हैं, किसी और को कुछ नहीं मानते.

    दूसरे हैं मनोरोगी. ऐसे लोग, जो दूसरों की भावनाओं का ज़रा भी ख़्याल नहीं करते, अक्सर बिना सोचे समझे, आवेग में फ़ैसले लेते हैं. लोगों से बेरहमी और बेअदबी से पेश आते हैं.

    बेदर्द लोगों की सबसे ख़तरनाक क़िस्म होती है, धूर्त. मनोवैज्ञानिक, उसे अंग्रेज़ी में 'मैकियावेलियन' कहते हैं.

    यह शब्द, इटली के मशहूर पॉलिटिकल साइंटिस्ट मैकियावेली के नाम पर रखा गया है.

    मैकियावेली, राजनीति में धूर्तता और दोगलेपन से काम लेने के समर्थक थे.

    ऐसे ही मैकियावेलियन यानी धूर्त लोग अपनी कामयाबी के लिए कुछ भी करेंगे. आपकी भावनाओं से खेलेंगे, दोगलेपन का सहारा लेंगे.

    कुल मिलाकर वे कामयाबी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

    वैसे वैज्ञानिकों ने इन तीनों गुणों को 'डार्क ट्राएड' का नाम दिया है.

    कई बार ऐसा होता है कि ये तीनों ही ऐब एक इंसान में देखे जाते हैं. ऐसा शख़्स, जो अहंकारी होता है, खोखला होता है, बेदर्द होता है, दोगला होता है.।

    अंजली – श्रोता मित्रों इस कार्यक्रम में हमारे अगले श्रोता हैं मंदार श्रोता संघ, बांका, बिहार से कुमोद नारायण सिंह, बाबू, गीतांजली, सनातन, अभय प्रताप गोलू और कृष भूटानी आप सभी ने सुनना चाहा है साहेब (1985) फिल्म का गाना जिसे गाया है बप्पी लाहिरी और एस जानकी ने गीतकार हैं अंजान और संगीत दिया है बप्पी लाहिरी ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 4. यार बिना चैन कहां रे .....

    पंकज - वह हमेशा साज़िश रचने में मशग़ूल रहता है. दूसरों की उसे कोई फ़िक्र नहीं होती. अब इतने दुर्गुण होंगे तो वो मनोरोगी ही कहा जाएगा.

    लेकिन, सवाल है कि इसमें से किस क़िस्म का निर्दयी होना आपके लिए सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद होगा.

    पहले के तज़ुर्बे हमें ये बताते हैं कि आम तौर पर बड़ी कंपनियों के सीईओ में मनोरोगी के लक्षण पाए जाते हैं.

    अंग्रेज़ी में इन्हें 'स्नेक्स इन सूट्स' यानी सूटेड-बूटेड सांप कहा जाता है. ऐसे लोग बेदर्द होते हैं, उनके बर्ताव में अजब तरह की अस्थिरता भी होती है.

    लेकिन कई बार दफ़्तर में इस तरह के लोगों की ज़रूरत होती है, जो सख़्त फ़ैसले लागू कर सकें।

    हालांकि पुराने अनुभवों से यह साफ़ नहीं हो सका था कि बेदर्दों की बाक़ी क्वालिटी रखने वाले लोग असल ज़िंदगी में कितने कामयाब होते हैं।

    स्विटज़रलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी के डेनियल स्पर्क ने इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की.

    उन्होंने जर्मनी के क़रीब आठ सौ लोगों की ऑनलाइन सर्वे की, जिसमें हर क्षेत्र में काम करने वाले लोग शामिल थे. इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले थे.

    सबसे दिलचस्प बात यह रही कि आम तौर पर कामयाब माने जाने वाले सूटेड-बूटेड सांप की कैटेगरी वाले लोग या मनोरोगी, अपने करियर में उतने कामयाब नहीं देखे गए, जितना कामयाब उन्हें पहले समझा जा रहा था.

    अंजली – मित्रों ये अगला पत्र हमारे पास आया है मऊनाथ भंजन उत्तर प्रदेश से मोहम्मद इरशाद, शमशाद अहमद, गुफ़रान अहमद, नेयाज़ अहमद, इरशाद अहमद अंसारी, अब्दुल वासे अंसारी, रईस अहमद, शादाब अहमद, शारिक अनवर और दिलकशां अनवर ने आप सभी ने सुनना चाहा है गोपी किशन (1994) फिल्म का गाना जिसे गाया है कुमार शानू और पूर्णिमा ने गीतकार हैं समीर और संगीत दिया है आनंद मिलिंद ने गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 4. हाय हुक्कू हाय हुक्कू हाय ....

    पंकज - उनकी कमाई कम थी, तरक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ने में भी वो पिछड़ गए थे। नतीजा यह कि अपने काम से वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे।

    डेनियल स्पर्क कहते हैं, "मनोरोगियों का अपने बर्ताव पर कोई कंट्रोल नहीं होता. इनकी रिस्क लेने की क़ाबिलियत, कई जगह काम भले आ सकती है."

    स्पर्क यह भी कहते हैं कि बिना सोचे समझे कुछ करने की इनकी आदत, आगे चलकर नुक़सानदेह भी साबित होती है.

    ये अमूमन अपने मूड के उतार-चढ़ाव के शिकार होते हैं और काम में इनका मन नहीं लगता.

    मनोरोगियों पर सर्वे करने वाले डेनियल स्पर्क मानते हैं कि अगर कोई मनोरोगी, बुद्धिमान है, तो वो अपनी इन कमियों को क़ाबू में कर लेता है. वो ज़िंदगी में कामयाब हो जाता है.

    निर्दयी लोगों के डार्क ट्राएड में मैकियावेलियन्स...यानी धूर्त और दोगले क़िस्म के लोग ज़्यादा कामयाब होते हैं, तेज़ी से तरक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ते हैं.

    अब अगर आप दूसरों के काम का क्रेडिट लेंगे, उन पर अपना नियंत्रण रखेंगे तो ज़ाहिर है, आप उनसे आगे निकल जाएंगे.

    लेकिन, अगर कामयाबी को पैसे से मापा जाए, तो इस पैमाने पर आत्ममुग्ध यानी ख़ुद को सबसे अच्छा मानने वाले, नार्सिसिस्ट, यानी, अपने आप में खोए रहने वाले लोग सब पर बाज़ी मार ले गए.

    डेनियल स्पर्क कहते हैं कि आत्ममुग्ध लोग, दूसरों पर अपना अच्छा प्रभाव जमाने में ज़्यादा कामयाब होते हैं.

    अंजली – मित्रों वैसे मेरा मानना है और चीन में बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं कि अगर किसी ने आपके बुरे समय में राहत के रूप में आपको पानी से भरा हुआ गिलास दिया है तो आपका फर्ज बनता है कि आप उसे पानी से भरा हुआ कुंआ लौटाएं। इसलिये मैं ये बात नहीं समझ सकती कि आगे बढ़ने के लिये या तरक्की पाने के लिये आपको धूर्त बनने की ज़रूरत क्यों पड़ती है। इंसानियत का य तकाज़ा है कि अगर कोई आपका बुरा करे तो भी आपको उसके साथ बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए, खैर इसी के साथ मैं उठा रही हूं कार्यक्रम का अगला पत्र जिसे हमें लिख भेजा है मुबारकपुर, ऊंची तकिया, आज़मगढ़ से दिलशाद हुसैन, फ़ातेमा सोगरा, वकार हैदर, हसीना दिलशाद और इनके ढेर सारे साथियों ने आप सभी ने सुनना चाहा है प्रेम रोगी (1982) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने, गीतकार हैं संतोष आनंद, संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 5. ये गलियां ये चौबारा ......

    पंकज - ऐसे लोग मोल-तोल भी बेहतर कर लेते हैं. इसीलिए ये कमाई के मामले में भी आगे निकल जाते हैं.

    लेकिन, अगर आप इन लोगों की कामयाबी को देखकर अपने अंदर बेदर्दी का भाव पैदा करना चाहते हों, तो ठहर जाइए, ज़रा सोच-विचार लीजिए.

    क्योंकि डेनियल स्पर्क के सर्वे में एक और बात सामने आई है.

    करियर में कामयाबी हासिल करने वाले, पैसे कमाने में आगे निकलने वाले ये मनोरोगी या आत्ममुग्ध लोग, ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं में अक्सर पिछड़ जाते हैं.

    इनकी शुरुआत भले ही शानदार होती हो, ये असरदार, चमकदार दिखते हों, मगर आगे चलकर इनके यही गुण, लोगों को ऐब लगने लगते हैं.

    ख़ुद में खोए रहने की इनकी आदत से दूसरे लोग इनसे दूर होने लगते हैं. ये अकेले पड़ जाते हैं.

    इसी तरह, मैकियावेलियन्स, यानी धूर्त लोगों की चालाकी जब पकड़ी जाती है, तो इनका दोगलापन उजागर हो जाता है.

    इतने सबूत काफ़ी न हों तो आपको एक बात और बता दें.

    नेकी की आदत से आप करियर में भले बहुत आगे न जा सकें, भले ही आप तरक़्क़ी की सीढ़ियां तेज़ी से न चढ़ सकें.

    मगर, इतना तय है कि नेकी करने वाले ज़िंदगी में ज़्यादा ख़ुश रहते हैं, उनकी सेहत भी बेहतर रहती है.

    महत्वाकांक्षा से आप तरक़्क़ी की कुछ सीढ़ियां तो चढ़ सकते हैं, मगर असल कामयाबी के लिए आपके अंदर हुनर और बुद्धिमानी होनी ज़्यादा ज़रूरी हैं.

    तो सोच क्या रहे हैं? नेक बनिए, निर्दयी नहीं.

    अंजली – मित्रों अब हम आपको सुनवाने जा रहे हैं कार्यक्रम का अगला गीत जिसके लिये हमें पत्र लिखा है आत्माओ रेडियो श्रोता संघ, गड़हिया, शिवहर बिहार से एम एफ आज़म और इनके ढेर सारे मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है नास्तिक (1983) फिल्म का गाना जिसे गाया है अमित कुमार और आशा भोंसले ने संगीत दिया है कल्याणजी आनंदजी ने और गीत के बोल हैं -------

    सांग नंबर 6. प्यारे तेरे प्यार में लुट गए हम बाज़ार में. .....

    पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।

    अंजली – नमस्कार।

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