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    आप की पसंद 160102
    2016-01-01 15:09:32 cri

    02 जनवरी 2016, आपकी पसंद

    पंकज – नव वर्ष की ढेर सारी शुभ कामानओं और मंगल कामनाओं के साथ आपका मित्र पंकज श्रीवास्तव करता है आप सभी को नमस्कार, मित्रों हम ये कामना करते हैं कि नव वर्ष में आप सभी बहुत तरक्की करें, बहुत खुश रहें और आप सभी का स्वास्थ्य भी पहले से बेहतर रहे, इसी के साथ अब हम करते हैं वर्ष 2016 के अपने सबसे पहले कार्यक्रम की शुरुआत।

    अंजली – नए साल की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ श्रोताओं को अंजली का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं आपके प्यार के कारण ही दिनों दिन हमारे श्रोताओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और हम चाहते हैं कि आप हमारे कार्यक्रम में अपने कुछ सुझाव भी भेजें जिससे हम अपने इस कार्यक्रम को नए रूप में ढालें तो वो आपके अनुरूप हो, जिससे आप अपने इस चहेते और प्यारे कार्यक्रम को सुनने के लिये और भी अधिक उत्सुकता दिखाएं, हमारा उद्देश्य है आपको ढेर सारी जानकारी देना साथ ही हम आपको आपकी पसंद के फिल्मी गाने भी सुनवाते हैं तो चलिये करते हैं आज के कार्यक्रम की शुरुआत। मित्रों हमारे जो श्रोता बढ़ते जा रहे हैं उसका कारण हमारे प्रति आपका प्यार और उत्साह है इसी के तहत आज से हमसे एक नए श्रोता भी जुड़ते जा रहे हैं वहीं कुछ बहुत पुराने श्रोता भी हैं जिन्होंने हमें लंबे अंतराल के बाद पत्र लिखा है आप हैं हरिपुरा झज्जर, हरियाणा से प्रदीप वधवा, आशा वधवा, गीतेश वधवा, मोक्ष वधवा, निखिल वधवा, यश वधवा और खनन वधवा आप सभी ने सुनना चाहा है ब्लैकमेल (1973) फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार ने संगीत दिया है कल्याणजी आनंदजी ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 1. पल पल दिल के पास तुम रहती हो ....

    पंकज - इस गांव में नहीं चलते भारत के कानून, जिसका बकरा पहले मरा वही दोषी

    शिमला. मलाणा गांव, जो देश-दुनिया में अपने अनूठे कायदों के लिए मशहूर है। यहां लोग देश का कोई कानून नहीं मानते। मामलों को निपटाने का इनका अपना तरीका है। दो पक्षों में विवाद का फैसला बकरों से किया जाता है। ग्राम देवता के सामने चीर कर उनमें जहर भरा जाता है। जिसका बकरा पहले मरा, उसे दोषी माना जाता है।

    कहां है अजीबोगरीब फैसला करने वाला ये गांव?

    इस तरह के अजीबोगरीब फैसला करने वाला ये गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में है। यहां ऐसे कई और कायदे भी हैं, जिन्हें सुनकर लोग यकीन नहीं करेंगे। कुल मिलाकर कहें तो यहां के लोगों का अपना संसद और कानून हैं। वैसे इस गांव को काफी प्राचीन माना जाता है।

    ग्रामीण खुद को सिंकदर का वंशज मानते हैं। वे इस बात का सबूत भी पेश करते हैं। यही वजह है कि इस गांव को हिमालय का एथेंस भी पुकारा जाता है।

    ये हैं सिकंदर के वंशज होने के सबूत

    ये के निवासी अपने आपको सिकंदर का वंशज मानते हैं। इसके सबूत के तौर पर मलाणा के लोग जमलू देवता के मंदिर के बाहर लकड़ी की दीवारों पर की गई नक्काशी दिखाते हैं। इस नक्काशी में युद्ध करते सैनिकों को एक विशेष तरह की वेश-भूषा के साथ हथियारों के साथ दिखाया गया है।

    अंजली – मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं मनकारा मंदिर, बीडीए कॉलोनी, करगैना, बरेली से पन्नीलाल सागर, बेनील सिंह मासूम, धर्मवीर मनमैजी, ममता चौधरी, आशीष कुमार सागर, कुमारी रूबी भारती, अमर सिंह, कुमारी एकता भारती, कुमारी दिव्या भारती, श्रीमती ओमवती भारती और बहिन रामकली बेबी, मित्रों आप सभी ने आरज़ू (1965) फिल्म के गाने की फरमाईश की है ... जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं हसरत जयपुरी संगीत दिया है शंकर जयकिशन ने और गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 2. अजी रूठकर अब कहां जाईयेगा.....

    पंकज - नहीं मानते भारतीय कानून

    इस गांव की खास बात तो यह है कि भारत का हिस्सा होने के बाद भी यहां के लोगों को भारतीय कानून से कोई वास्ता नहीं है। यहां पर फैसले लेने और उसका पालन कराने की अलग परंपरा है। अगर, यहां भी बात नहीं बनी तो फैसला यहां के जमलू देवता करते हैं।

    अलग तरह की है बोली

    यहां के लोगों की भाषा भी हिमाचल में बोली जाने वाली भाषा से बहुत अलग है। ऐसा कहा जाता है कि मलाणा के लोग जो भाषा बोलते हैं वह ग्रीक में बोली जाने वाली भाषा से काफी हद तक मेल खाती है। यहां के लोगों की शक्ल-सूरत भी ग्रीक लोगों की तरह ही है।

    सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था

    यहां के लोग दावा करते हैं कि मलाणा में विश्व की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत का अंग होते हुए भी मलाणा की अपनी एक अलग न्याय और कार्यपालिका है। अपनी अलग संसद है, जिसके दो सदन हैं पहली ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और कनिष्ठांग (निचला सदन)।

    ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं। जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं। शेष आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं। इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है। यह सदस्य घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होता है। अगर ज्येष्ठांग सदन के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूरे ज्येष्ठांग सदन को पुनर्गठित किया जाता है।

    अंजली – मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं शिवाजी चौक कटनी मध्यप्रदेश से अनिल ताम्रकार, अमर ताम्रकार, संतोष शर्मा, रज्जन रजक, राजू ताम्रकार, दिलीप वर्मा, रविकांत नामदेव इनके साथ ही पवन यादव, सत्तू सोनी, अरुण कनौजिया, संजय सोनी, लालू, सोना, मोना, हनी, यश, सौम्या और इनके सभी परिजन, मित्रों आप सभी ने सुनना चाहा है LOVE MARRIAGE (1959) फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं हसरत जयपुरी और संगीत दिया है शंकर जयकिशन ने और गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 3. धीरे धीरे चल चांद गगन में .....

    पंकज - सभी तरह के मामलों का निपटारा

    इस संसद में घरेलू झगड़े, जमीन-जायदाद के विवाद, हत्या, चोरी और बलात्कार जैसे मामलों पर सुनवाई होती है। दोषी को सजा सुनाई जाती है। अगर संसद किसी विवाद का निपटारा करने में विफल रहती है तो मामला स्थानीय देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है।

    पंकज - देवदासी: हजारों साल से चली आ रही है ये प्रथा, नहीं लग सकी है पूरी रोक

    नई दिल्ली. देवदासी प्रथा यूं तो भारत में हजारों साल पुरानी है, पर वक्त के साथ इसका मूल रूप बदलता गया। कानूनी तौर पर रोक के बावजूद कई इलाकों में इसके जारी रहने की खबरें आती रहती हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक आदेश जारी कर इसे पूरी तरह रोकने को कहा है।

    कब शुरू हुई थी देवदासी प्रथा

    देवदासी को लेकर आदेश जारी करते हुए गृह मंत्रालय ने नट और बेड़िया समाज का जिक्र किया है। इस मौके पर हम बता रहे हैं कि 'देवदासी' प्रथा आखिर है क्या? इसकी शुरुआत को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है, पर ज्यादातर मानते हैं कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी।

    देश में इसके खिलाफ फेमिनिस्ट ने एक मूवमेंट खड़ा किया और इसे महिलाओं के लिए अपमानजनक और अमानवीय घोषित करवाने में सफलता पाई। नारीवादी आंदोलन और न्यायालयों की वजह से ही कड़े क़ानून बने। कई राज्यों ने इनपर प्रतिबंध भी लगाया।

    अंजली – श्रोता मित्रों आप हमें अगर अपने फरमाईशी गीत लिखकर भेजना चाहते हैं तो आप हमारी वेबसाईट हिन्दी डॉट सीआरआई डॉट सीएन पर भी लिखकर भेज सकते हैं और ऐसे हमें आपके पत्र सबसे जल्दी मिलते हैं। हमारे अगले श्रोता हैं कवई सालपुरा स्टेशन राजस्थान से राधेश्याम बागरी, बद्रीलाल बागरी, लक्ष्मीनारायण बागरी और इनके सभी मित्रजन आप सभी ने सुनना चाहा है वासना (1968) फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने और गीतकार हैं साहिर लुधियानवी संगीत दिया है चित्रगुप्त ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर . 4. ये पर्वतों के दायरे ये शाम का धुआं.....

    पंकज - इन राज्यों में जारी है प्रथा

    कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा, गोवा और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में देवदासी प्रथा के मामले उजागर होते रहे हैं।

    मंदिर के देवताओं से लड़कियों की कर दी जाती थी शादी

    इस प्रथा के तहत लड़कियों को धर्म के नाम पर कुछ मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे।परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था। देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है।

    उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। कहते हैं कि इस दौरान उनका शारीरिक शोषण किया जाता था। कई आंदोलनों के बाद कर्नाटक सरकार ने 1982 में और आंध्र प्रदेश सरकार ने 1988 में इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था।

    कालिदास ने मेघदूतम में किया है जिक्र

    देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ़ गॉड'। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंआरी कन्याओं का वर्णन है, संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है।

    अंजली – मित्रों कार्यक्रम का अगला पत्र हमारे पास आया है हमारे पुराने और नियमित श्रोता का मालवा रेडियो श्रोता संघ, प्रमिलागंज, आलोट से बलवंत कुमार वर्मा, राजुबाई, माया वर्मा, शोभा वर्मा, राहुल, ज्योति, अतुल और इनके सभी मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है राजपूत (1982) फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी ने संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 5. कहानियां सुनाती है पवन आती जाती ....

    पंकज - लिखी जा चुकी हैं कई किताबें

    देवादासियों के बारे में देश-विदेश के इतिहासकारों ने कई किताबें लिखी हैं। एनके. बसु की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया', एफए मार्गलीन की किताब 'वाइव्ज ऑफ द किंग गॉड, रिचुअल्स ऑफ देवदासी', मोतीचंद्रा की 'स्टडीज इन द कल्ट ऑफ मदर गॉडेस इन एंशियंट इंडिया', बीडी सात्सोकर की 'हिस्ट्री ऑफ देवदासी सिस्टम' में इस प्रथा के बारे में विस्तार से बताया गया है।

    जेम्स जे फ्रेजर की किताब 'द गोल्डन बो' में भी इस प्रथा के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

    काफी पुरानी है प्रथा

    कर्नाटक यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर डॉ. एसएस शेट्टर ने देवदासी प्रथा पर शोध किया है। उन्होंने कन्नड़ में इस विषय पर फिल्म भी बनाई है। प्रो.शेट्टर के अनुसार यह तय कर पाना कठिन है कि देवदासी प्रथा की शुरुआत कब हुई।

    विभिन्न स्रोतों के मुताबिक यह प्रथा पिछले दो हज़ार वर्षों से अलग-अलग रूपों में चली आ रही है। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है।

    अंजली – मित्रों इसी के साथ मैं उठाने जा रही हूं कार्यक्रम का अगला गाना जिसके लिये हमें फरमाईशी पत्र लिख भेजा है आदर्श श्रीवास रेडियो श्रोता संघ ग्राम लहंगाबाथा, पोस्ट बेलगहना, ज़िला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से पारस राम श्रीवास और इनके सभी साथियों ने आप सभी ने सुनना चाहा है याराना (1981) फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार ने और संगीत दिया है राजेश रौशन ने गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर 6. तेरे जैसा यार कहां .... कहां ऐसा याराना ....

    पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।

    अंजली – नमस्कार।

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