तिब्बती लड़की सोलोंग त्सोमो अपनी दुकान में
दक्षिण-पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत के आबा तिब्बती और छ्यांग जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर की आबा कांउटी के आनछ्यांग जिले में तिब्बती लड़की सोलांग त्सोमो रहती है। बालावस्था में अगर उसे बुखार नहीं हुआ होता, तो आज वह दूसरी तिब्बती लड़कियों की तरह घास के मैदान में पशु पालते हुए स्वतंत्र और आरामदेह जीवन बिता रही होती। लेकिन तीन या चार वर्ष की उम्र में गंभीर बीमारी के कारण उसे बुखार हुआ, वो अपनी दोनों टाँगों पर नहीं चल पाती। तभी से वह व्हीलचेयर के सहारे अपना जीवन बिताने लगी।
बीस से अधिक वर्षों से सोलांग त्सोमो माता-पिता और भाई-बहन की मदद पर निर्भर रहकर जीवन बिता रही है। ऐसा जीवन उसे अच्छा नहीं लगता। आम तौर पर वो कभी कभार उदास हो जाती है। बाद में वह परिजनों की राय सुनकर घूमने सछ्वान प्रांत की राजधानी छंगतु गई। धीरे-धीरे उसकी स्थिति अच्छी होने लगी। इसकी याद करते हुए सोलोंग त्सोमो के मित्र ने कहा:"उस समय उसकी स्थिति बहुत खराब थी। उसके अंदर आत्मविश्वास भी कम था। लेकिन बाद में उस ने घर से बाहर की सैर की और उसे अच्छा लगता था। उसे लगा कि उसमें और दूसरों के बीच कोई अंतर नहीं है।"
अब सोलांग त्सोमो बहुत हंसमुख लड़की बन चुकी है। इसका श्रेय उसकी दुकान का मालिक बनने को जाता है। उसने खुद पर निर्भर रहकर एक दुकान खोली। इसकी चर्चा में सोलांग त्सोमो ने कहा कि उसकी शारीरिक स्थिति अच्छी नहीं रही, अपने पैरों पर नहीं चलने के कारण उसे लगता था कि वह अपने सभी परिजनों के लिए बेकार है। इस तरह उसने एक दुकान खोलने से आय कमाकर पारिवारिक आर्थिक बोझ को कम करने के बारे में सोचने लगी। सोलांग त्सोमो ने कहा कि माता-पिता बूढ़े हो गए हैं। उसे खुद पर निर्भर होकर जीवन बिताना चाहिए। ताकि घर में आर्थिक बोझ कम किया जा सके। सोलांग त्सोमो ने कहा:"सबसे पहले मैंने एक दुकान खोलने के बारे में सोचा था। मुझे लगता है कि नहीं चलने की वजह से मैं कुछ सामान्य कार्य नहीं कर पाती। लेकिन मुझे कुछ न कुछ तो करना चाहिए है।"