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    एंटीलोप के संरक्षण में लगा चरवाहा च्यानमू त्सो
    2015-04-13 16:16:33 cri

    प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप

    पर्यावरण संरक्षण स्वयं सेवक के रोज़ाना कार्यों में छिंगहाई झील के पास गश्ती लगाने, जांच करने, निरीक्षण करने और एंटीलोप को बचाने के अलावा छिंगहाई झील के तट पर कचरा इक्ट्ठा करना भी शामिल है। कई बार निरीक्षण के दौरान च्यानमू त्सो को पता चला कि कुछ एंटीलोपों की मौत कचरा खाकर अपच से हुई। इसके अलावा हर वर्ष वसंत ऋतु में मैदान में नई घास उगने से पहले एंटीलोप को भूख सहनी पड़ती है। कुछ की मौत भूख से हुई। इसी दौरान च्यानमू त्सो ने दूसरे स्वयं सेवकों के साथ पैसा जमा कर खुद चारा-घास खरीदकर छिंगहाई झील के तटीय क्षेत्र में डाल दी।

    चारा-घास खरीदने के अलावा, च्यानमू त्सो ने अपने घर के 40 हेक्टेयर घास के मैदान में से एक भाग निकालकर विशेष तौर पर एंटीलोपों के लिए तैयार किया। गाय और भेड़ पालन स्थानीय लोगों की आय का प्रमुख स्रोत है। घास के मैदान का क्षेत्रफल कम हो जाने से त्यानमू त्सो के घर में गायों और भेड़ों की संख्या भी कम हुई। वर्ष 2014 में उसके घर में मात्र 250 गाय और भेड़ थी। जबकि इससे पिछले वर्ष यह संख्या 500 थी।

    तिब्बती चरवाहे च्यानमू त्सो के घर आंगन के बाहर पशुओं के लिए तीन गर्म कमरे बनाए गए हैं। उसके मुताबिक इन तीन कमरों में एक का प्रयोग घर में पालतू पशुओं के लिए किया जाता है, बाकी दो प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप के लिए। इसकी चर्चा करते हुए च्यानमू त्सो ने कहा:

    "मैंने खुद एक लाख युआन का प्रयोग कर पशुओं के लिए तीन कमरे बनाए। इनमें एक भेड़ों के लिए, बाकी दो एंटीलोपों के लिए हैं। हर साल सर्दियों में एंटीलोप चरवाहों द्वारा स्थापित बाड़ को पार करते हैं। लेकिन लोहे से बनाए गए बाड़ से वे कभी कभार घायल भी होते हैं। घायलों का इलाज कैसे किया जाता है?तो मैं सूती धागे, अल्कोहल, पेनिसिलिन और सूई का प्रयोग कर उनका इलाज करता हूँ। फिर उन्हें गर्म कमरों में भरती करवाता हूँ। करीब 7 से 8 दिनों के बाद घायल एंटीलोप स्वस्थ हो जाता है। इस तरह ये गर्म कमरे एंटीलोप का राहत और बचाव केंद्र बन जाता है।"

    च्यानमू त्सो के प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप के लिए इस प्रकार वाले"पारिवारिक राहत और बचाव केंद्र"में घायल हुए एंटीलोपों की अच्छी तरह देखभाल की जाती है। च्यानमू त्सो ने कहा कि उन्होंने इस प्रकार के दस से अधिक घायल एंटीलोपों का इलाज किया था। ये एंटीलोप ठीक होकर घास के मैदान में फिर चले जाते हैं। एक बार च्यानमू त्सो ने एक नन्हे एंटीलोप की देखभाल भी की थी, जिसकी मां कहीं चली गई थी। इसकी याद करते हुए उन्होंने कहा:

    "नन्हा एंटीलोप मां से बिछुड़ गया। हमने एक से दो महीने तक गाय का दूध पिलाकर उसे पाला। धीरे-धीरे वह बड़ा होकर खुद चारा-घास खा सकता था। फिर मैंने उसे एंटीलोप की झुंड में पहुंचा दिया।"

    च्यानमू त्सो के घर के बाहर दो कुओं की खुदाई की गई है। कुओं के आसपास विशेष तौर पर पशुओं के पानी पीने के लिए दो नहर बनाई गई हैं। उसने कहा कि पहले पुराने कुएं से पर्याप्त पानी बाहर नहीं निकाल पाता था, तो वह 30 हज़ार युआन में नए कुएं की खुदाई की। रोज़ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय वह दो नहरों में पानी भरा करता है। आसपास के घास-मैदान से एंटीलोप और दूसरे जानवर यहां पानी पीने आते हैं।

    च्यानमू त्सो ने कहा कि प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप बहुत स्मार्ट जानवर हैं। उन्हें मालूम है कि पठार में कौन असली में उन्हें प्यार करता है और कौन उन्हें घायल नहीं करता। इस तरह एटीलोप च्यानमू त्सो के घर के आसपास स्थान को आराम करने और पानी पीने की स्थाई जगह बनाते हैं। हर दिन सुबह और रात के समय यहां एंटीलोप देखे जा सकते हैं। च्यानमू त्सो के विचार में प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप की संख्या बढ़ने के साथ ही छिंगहाई झील की जीवन शक्ति भी बढ़ेगी।

    हमारे संवाददाता के साथ हुई बातचीत में च्यानमू त्सो ने कहा कि प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप और छिंगहाई झील का संरक्षण करना एक दिन का कार्य नहीं है। इसे पीढ़ियों के लोगों की समान कोशिशों की आवश्यकता है। च्यानमू त्सो का 14 वर्षीय बेटा कभी कभार पिता जी से कहता है कि पापा, चिंता मत कीजिए। छिंगहाई झील हमारा घर है। एंटीलोप हमारे मित्र हैं। जब आप बूढ़े होंगे, तो मैं आपकी जगह लेकर इनका संरक्षण करूंगा। बेटे की बात सुनकर च्यानमू त्सो बहुत खुश होते हैं। उन्होंने कहा:

    "भविष्य में हम प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप जैसे जंगली जानवरों का और अच्छी तरह संरक्षण करते रहेंगे। ताकि ये जानवर पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे घास के मैदान में जीवित रह सकें।"


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