तिब्बती चरवाहा च्यानमू त्सो
"तिब्बती लोग अहिंसा में विश्वास करते हैं, वे किसी को नुकसान पहुंचाने के बजाए दूसरों की जान बचाते हैं।" तिब्बती चरवाहे च्यानमू त्सो ने कुछ ऐसा ही कहा, जो उत्तर पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत में छिंगहाई झील के तट पर रहते हैं। वे छिंगहाई झील के तटीय क्षेत्र में प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की(Procapra przewalskii) एंटीलोप का संरक्षण करते हैं।
यहां बता दें कि प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप का वर्ष 1875 में रूसी प्रकृति विज्ञानी प्रज़ेवाल्स्की ने सबसे पहले चीन के भीतरी मंगोलिया के अर्डोस घास के मैदान में पता लगाया था। इसतरह इस प्रकार वाले एंटीलोप को प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप कहलाता है। पहले ये एंटीलोप भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश, निंगश्या ह्वेई जातीय स्वायत्त प्रदेश, कानसू और छिंगहाई आदि प्रांतों में व्यापक तौर पर दिखते थे। लेकिन मानवीय गतिविधियों और उनके रहने की स्थिति में खराब होने से प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप की संख्या तेज़ी से कम हो रही है। वर्तमान में मात्र छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित छिंगहाई प्रांत में ये एंटीलोप मिलते हैं। मुख्य तौर पर छिंगहाई झील के आसपास और छिंगहाई प्रांत की थ्यानचुन कांउटी और कोंगहे कांउटी में। प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप चीन में पहली श्रेणी वाले राष्ट्र स्तरीय संरक्षित श्रेणी के जानवरों में से एक है, जो विश्व में बहुत दुर्लभ हैं। वर्तमान में इस प्रकार के एंटीलोप की संख्या मात्र एक हज़ार से अधिक है।
छिंगहाई प्रांत के हाई पेई तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की हाईयान कांउटी में कानचीहो जिले के ताय्वु गांव में रहने वाला तिब्बती चरवाहा च्यानमू त्सो लम्बे समय से छिंगहाई झील के आसपास एंटीलोपों को बचाने में जुटा हुआ है।
हर दिन तड़के च्यानमू त्सो कैमरा, टेलीस्कोप, नोटबुक और हेल्थ किट और सरोता लिए बाहर जाते हैं। कैमरे से प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप के फोटो खींचते हैं, टेलीस्कोप का इस्तेमाल दूर से एंटीलोप को देखने में किया जाता है। जबकि नोटबुक पर एंटीलोप के रोजाना के आंकड़े रिकॉर्ड करते हैं। वहीं प्राथमिक हेल्थ किट और सरोते का इस्तेमाल उन एंटीलोपों को बचाने में किया जाता है, जो तार-बाड़ की चपेट में आकर घायल हो जाते हैं। सूर्यास्त के समय वे घर वापस लौटते हैं। लंच में ब्रेड खाते हैं, हालांकि कभी-कभार व्यस्त होने पर खाने का मौका भी नहीं मिलता।
चरवाहे च्यानमू त्सो ने हमारे संवाददाता से कहा कि गत् 60 के दशक से पहले इस तरह के एंटीलोप की संख्या अधिक थी। पिता जी की पीढ़ी के लोग कहते हैं कि उन्हें छिंगहाई झील के पास हज़ारों एंटीलोप दिखते थे। लेकिन 80 के दशक में घास के मैदान में पशुपालन के तेज़ विकास और छिंगहाई झील क्षेत्र में कृषि के विस्तार से एंटीलोप के रहने की जगह कम होने लगी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1986 में छिंगहाई झील क्षेत्र में प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप की कुल संख्या 350 से कम थी। उस समय झील के आसपास घास के मैदान में उन्होंने जो सबसे बड़े झुंड वाले एंटीलोप देखे, उनकी संख्या महज 30 से अधिक थी। ऐसी स्थिति में सरकार का ध्यान इस ओर केंद्रित हुआ। वर्ष 1988 में प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप पहले राष्ट्र स्तरीय संरक्षित जानवरों की सूची में शामिल हुए। च्यानमू त्सो लगभग 18 और 19 साल की उम्र से ही एंटीलोप को बचाने में जुट गए थे। उनके रहने वाले क्वानशी कस्बे में कुल 4 स्वयं सेवक हैं।
एंटीलोप की रक्षा किए जाने के बावजूद शिकारी उनका अवैध शिकार करते हैं। एंटीलोप के संरक्षक के रूप में च्यानमू त्सो अवैध शिकार के मुकाबले को अपना मिशन मानते हैं। अवैध शिकार करने वालों के साथ संघर्ष के दौरान उनके सामने खतरा भी मौजूद होता है। वे कभी-कभार घायल भी हुए। यहां तक कि अवैध शिकारियों ने उनके सिर पर बंदूक भी रखी थी। इसकी चर्चा करते हुए च्यानमू त्सो ने कहा:
"वर्ष 1993 और 94 का समय था। एक बार मैं घर में बैठा था। अचानक पिता जी मुझ पर चिल्लाए:च्यानमू त्सो, बाहर आओ। मोटर साइकिल पर सवार दो व्यक्ति प्रोकाप्रा प्रज़ेवाल्स्की एंटीलोप का शिकार कर रहे हैं। इस पर मैं और मेरे पिता जी ने मोटर साइकिल पर उन दोनों का पीछा किया। इस दौरान शिकारियों ने उन्होंने धमकी देते हुए कहा कि अगर तुम लोग फिर नज़दीक आए, तो हम बंदूक से मार डालेंगे।"
वैसे एंटीलोप को बचाने के लिए च्यानमू त्सो ने पहले मोटर साइकिल खरीदी, फिर बाद में कार खरीदी। च्यानमू त्सो ने कहा :
"गर्मियों में मोटर साइकिल का प्रयोग ठीक होता है। लेकिन सर्दियों में बहुत ठंड होती है। नदी का पानी जम जाता है। एंटीलोप पानी नहीं पी सकते, इसलिए हम बर्फ को तोड़ते हैं, ताकि वे पानी पी सकें। कभी हम सुबह 8 या 9 बजे छिंगहाई झील आते हैं। तापमान शून्य से दस से बीस डिग्री नीचे होता है। बहुत ठंड होने की वजह से हमने कार खरीदी।"