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    आप की पसंद 150307
    2015-03-11 16:32:16 cri

    पंकज - नमस्कार मित्रों आपके पसंदीदा कार्यक्रम आपकी पसंद में मैं पंकज श्रीवास्तव आप सभी का स्वागत करता हूं, आज के कार्यक्रम में भी हम आपको देने जा रहे हैं कुछ रोचक आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक जानकारियां, तो आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं।

    दिनेश – श्रोताओं को दिनेश का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं हम आपसे हर सप्ताह मिलते हैं आपसे बातें करते हैं आपको ढेर सारी जानकारियां देते हैं साथ ही हम आपको सुनवाते हैं आपके मन पसंद फिल्मी गाने तो आज का कार्यक्रम शुरु करते हैं और सुनवाते हैं आपको ये गाना जिसके लिये हमें फरमाईश पत्र लिख भेजा है ... आत्माओ रेडियो श्रोता संघ गड़हिया, शिवहर, बिहार से एम एफ आजाद और इनके ढेर सारे साथियों ने आप सभी ने सुनना चाहा है गहरी चाल फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और आशा भोंसले ने संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 1. जयपुर की चोली मंगवा दे ....

    पंकज - इंसानी दिमाग़ से टक्कर लेने वाली मशीन तैयार!

    वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है, जो किसी गेम को ख़ुद सीख लेती है.

    इस कंप्यूटर प्रोग्राम ने अब तक 49 वीडियो गेम सीख लिए हैं.

    इनमें से आधे में उसका प्रदर्शन किसी पेशेवर खिलाड़ी जैसा या उससे बेहतर है.

    गूगल डीप माइंड से जुड़े शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसा पहली बार हुआ कि एक सिस्टम ने कई तरह के जटिल काम सीखकर उनमें महारत हासिल की.

    डीप माइंड के उपाध्यक्ष डॉ. हैसाबिस कहते हैं, "अभी तक ख़ुद-ब-ख़ुद सीखने वाले सिस्टम को आसान समस्याओं के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. पहली बार हमने इसका इसका इस्तेमाल उन जटिल कामों के लिए किया, जो इंसानों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हैं."

    मशीन ने हराया था कास्पारोव को

    खुद-ब-खुद सीखने वाली मशीन बनाने में टेक्नोलॉजी कंपनियां काफ़ी निवेश कर रही हैं. गूगल ने डीप माइंड को कथित रूप से 40 करोड़ डॉलर (लगभग 2400 करोड़ रुपए) में ख़रीदा है.

    इससे पहले आईबीएम का शतरंज खेलने वाले कंप्यूटर डीप ब्लू ने 1997 में हुए एक बहुचर्चित मैच में विश्व चैंपियन गैरी कास्पारोव को हरा दिया था.

    हालांकि इस कंप्यूटर में पहले से ही दिशा निर्देश वाले प्रोग्राम लगाए गए थे.

    लेकिन डीप माइंड कंप्यूटर प्रोग्राम में कोई वीडियो गेम खेलने से पहले केवल बुनियादी सूचनाएं दी जाती हैं.

    डॉ. हैसाबिस बताते हैं, "हमने सिस्टम को केवल स्क्रीन पर पिक्सेल की सूचनाएं दी थीं और इसे उंचा स्कोर हासिल करना था. बाक़ी इसे ख़ुद पता करना था."

    इन 49 वीडियो गेम्स में स्पेस इनवेडर से लेकर पोंग, बॉक्सिंग, टेनिस और थ्री-डी रेसिंग भी शामिल है.

    दिनेश – बहुत वर्ष पहले मैंने हॉलीवुड डायरेक्टर जेम्स कैमरून की फिल्म टर्मीनेटर देखी थी, उसकी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी जिसमें ये दिखाया गया है कि इंसान ने कम्प्यूटर बनाया इसके बाद उसमें खुद से सोचने की शक्ति डाल दी, यानी Artificial Intelligence डाल दिया, बाद में मशीनें खुद को विकसित करती चली गईं और इंसानों का आधिपत्य मानने से इंकार कर दिया, फिर दोनों में संघर्ष शुरु हुआ, यानी जो फिक्शन में दिखाया गया वो भविष्य में संभव हो सकता है। लेकिन इसपर लगाम लगाना पड़ेगा क्योंकि इसका अगर गलत इस्तेमाल हुआ तो वाकई ये मानव जाति के लिये बहुत घातक सिद्ध होगा। इसी के साथ मैं उठा रहा हूं कार्यक्रम का अगला पत्र जो हमें लिख भेजा है मोजाहिदपुर पूरबटोला, भागलपुर, बिहार से मोहम्मद खालिद अंसारी, मोहम्मद ताहिर अंसारी, कादिर, मुन्ना खान मुन्ना, नुरुलहोदा, शब्बीर ज़फ़र और एम के नाज़, इनके साथ ही नवगछिया मोमताज मोहल्ला से ज़फ़र अंसारी, शौकत अंसारी और मास्टर अतहर अंसारी ने आप सभी ने सुनना चाहा है आशा फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने, गीतकार हैं आनंद बख्शी और संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 2. शीशा हो या दिल हो .....

    पंकज - क़ाबिलियत

    वीडियो पिनबॉल, बॉक्सिंग और ब्रेकआउट में इसका प्रदर्शन पेशेवर से कहीं बेहतर रहा लेकिन पैक-मैन, प्राइवेट आई और मांटेज़ुमा रिवेंज में इसे दिक़्क़तें आईं.

    डॉ. हैसाबिस के मुताबिक़ यह सिस्टम अनुभव के रूप में पिक्सेल से सीखता है कि क्या करना है.

    आप इसे एक नया गेम, नई स्क्रीन देते हैं तो यह कुछ घंटे खेलने के बाद ख़ुद पता लगा लेता है कि क्या करना है.

    यह ताज़ा शोध स्मार्ट मशीन बनाने की ओर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

    वैज्ञानिक इंसानी दिमाग़ जैसे कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित करने में जुटे हैं, जो तस्वीरें और ध्वनियों के विशाल आंकड़ों में से ज़रूरी सूचनाएं छांट सके.

    उदाहरण के लिए ऐसी मशीनें जो दसियों लाख तस्वीरें स्कैन कर सके और यह समझ सके कि उसे इनमें से किसकी ज़रूरत है.

    यह दक्षता उन चालक रहित कारों के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिन्हें अपने आसपास की जानकारी की ज़रूरत होती है.

    आशंकाएं

    या ऐसी मशीनें जो इंसानी आवाज़ को समझ सकें और उनका इस्तेमाल आवाज़ पहचान करने वाले सॉफ़्टवेयर बनाने में किया जा सके.

    डॉ. हैसाबिस कहते हैं, "फ़ैक्ट्रियों और घरों में काम करने वाले रोबोट के साथ एक समस्या यह है कि उनका आकस्मिक घटनाओं से पाला पड़ता है और आप हर आकस्मिक घटना की प्रोग्रामिंग नहीं कर सकते."

    दिनेश – मित्रों हम आगे भी इस चर्चा को जारी रखेंगे लेकिन अभी यहां पर रुकते हैं एक और मधुर गीत सुनने के लिये जिससे आपको भी इस जानकारी को सुनने में आनंद आएगा। अब मैं उठा रहा हूं कार्यक्रम का अगला पत्र जो हमें लिख भेजा है हमारे चिर परिचित पुराने श्रोता ने परमवीर हाउस आदर्श नगर, बठिंडा, पंजाब से अशोक ग्रोवर, परवीन ग्रोवर, नीती ग्रोवर, पवनीत ग्रोवर, और विक्रमजीत ग्रोवर ने आप सभी ने सुनना चाहा है विक्टोरिया नंबर दो सौ तीन का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और महेन्द्र कपूर ने संगीतकार हैं कल्याणजी आनंदजी और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 3. दो बेचारे बिना सहारे ....

    पंकज - वह कहते हैं, "कुछ हद तक इन मशीनों को स्वतः ज्ञान की ज़रूरत होती है, जिसे सीखा जा सकता है और उन्हें ख़ुद इन्हें सीखना पड़ता है."

    हालांकि इसे लेकर कुछ आशंकाएं भी हैं.

    पिछले दिसंबर में प्रोफ़ेसर स्टीफ़ेन हॉकिन्स ने कहा था कि पूरी तरह सोचने-समझने वाली मशीन का विकास पूरी मानवजाति को ख़त्म करने का कारण बन सकता है.

    पंकज - मित्रों इस जानकारी के बाद हम आपको स्मार्ट मशीनों से ही जुड़ी हुई एक और जानकारी देने जा रहे हैं जो आपके सामने स्मार्ट मशीनों का एक दूसरा पक्ष सामने रखेगी।

    इंसान को ख़त्म कर देंगी 'स्मार्ट मशीनें'

    विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिन्स सोचने वाली मशीन के अविष्कार की कोशिशें इंसानी वजूद के लिए ख़तरा हो सकती हैं.

    उन्होंने बीबीसी को बताया, "पूरी तरह विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) मानव जाति की विनाश कथा लिख सकती है."

    उन्होंने यह चेतावनी उस सवाल के जवाब में दी जो उनके बात करने के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीक को दुरुस्त करने को लेकर था, जिसमें शुरुआती स्तर की एआई शामिल हो.

    लेकिन अन्य लोग एआई की संभावनाओं को लेकर बहुत आशंकित नहीं हैं. सैद्धांतिक भौतिकीविद् हॉकिन्स को मोटर न्यूरॉन बीमारी एमियोट्रोफ़िक लेटरल स्कलेरोसिस (एएलएस) है और वह बोलने के लिए इंटेल के विकसित एक नए सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं.

    ब्रितानी कंपनी स्विफ़्टकी के मशीन लर्निंग विशेषज्ञ भी इसे बनाने में शामिल रहे हैं. उनकी तकनीक- जो कि पहले ही स्मार्टफ़ोन के कीबोर्ड ऐप में इस्तेमाल हो रही है- यह सीखती है कि प्रोफ़ेसर क्या सोचते हैं और ऐसा शब्द प्रस्तावित करती हैं जो वह संभवतः बोलने वाले हों.

    प्रोफ़ेसर हॉकिन्स कहते हैं कि अब तक विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता के शुरुआती प्रकार बेहद उपयोगी साबित हो चुके हैं लेकिन उन्हें डर है कि इसका असर ऐसी चीज़ बनाने में पड़ सकता है जो इंसान जितनी या उससे ज़्यादा बुद्धिमान हों.

    वह कहते हैं, "यह अपना नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा और फिर खुद को फिर से तैयार करेगा जो हमेशा बढ़ता ही जाएगा."

    "चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमा होता है, वह प्रतियोगिता नहीं कर पाएगा और पिछड़ जाएगा."

    दिनेश – मित्रों हमारे कार्यक्रम में आप हमें नियमित रूप से पत्र लिखते रहें और हमें ये बताते रहें कि आपको हमारा कार्यक्रम कैसा लगा, आपके सुझाव हमारे लिये मार्गदर्शन का काम करते हैं, अगर आपको लगता है कि आपके सुझाव से कार्यक्रम को और रोचक बनाया जा सकता है तो आप हमें अपनी राय लिख भेजें, इसके साथ हम उठा रहे हैं कार्यक्रम का अगला पत्र हमारे पास आया है धनौरी तेलीवाला, हरिद्वार, उत्तराखंड से जिसे लिखा है निसार सलमानी, समीना नाज़, सुहैल बाबू और इनके ढेर सारे मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है बहारों के सपने फिल्म का गाना जिसे गाया है मन्ना डे और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी और संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 4. चुनरी संभाल गोरी ......

    पंकज - क्लेवरबॉट के निर्माता, रोलो कारपेंटर कहते हैं, "मुझे लगता है कि हम अच्छे-ख़ासे समय तक तकनीक के नियंत्रणकर्ता बने रहेंगे और दुनिया की समस्याओं को सुलझाने में इसकी क्षमताओं का अहसास हो जाएगा."

    क्लेवरबॉट का सॉफ़्टवेयर अपनी पिछली बातचीत से सीखता है और ट्यूरिंग टेस्ट में काफ़ी ऊंचे स्कोर हासिल कर चुका है. इससे कई लोग यह धोखा खा चुके हैं कि वह किसी इंसान से बात कर रहे हैं.

    कारपेंटर कहते हैं कि हम पूरी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित करने के लिए कंप्यूटिंग क्षमता हासिल करने से बहुत दूर हैं. हालांकि उन्हें यकीन है कि कुछ दशकों में यह आ जाएगी.

    वह कहते हैं, "हम दरअसल नहीं जानते कि जब मशीन हमारी बुद्धिमत्ता से ज़्यादा हासिल कर लेगी तो क्या होगा. इसलिए हम नहीं जानते कि वह हमें अनंत मदद करेगी, या दरकिनार कर देगी या जैसा कि माना जाता है नष्ट कर देगी."

    हालांकि वह दावा करते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक सकारात्मक ताकत होगी.

    'बच्चों की पसंद'

    लेकिन प्रोफ़ेसर हॉकिन्स अकेले नहीं हैं जो भविष्य के प्रति आशंकित हैं.

    हाल फिलहाल में यह चिंता बढ़ी है कि ऐसे काम जो अब तक इंसान ही करते थे उन्हें करने के काबिल चतुर मशीनें चुपके से लाखों नौकरियां खा रही हैं.

    तकनीक उद्यमी एलॉन मस्क चेताते हैं कि दीर्घकाल में कृत्रिम बुद्धमत्ता ही 'हमारा सबसे बड़ा मौजूदा ख़तरा' है।

    दिनेश – वैसे ये खतरा तो ज़रूर मौजूद है लेकिन हम कोई भी आविष्कार बुरा सोचकर नहीं करते और समय के साथ साथ आने वाली कठिनाईयों को दूर भी कर लेते हैं, मशीनें इंसानों को दरकिनार करें उससे पहले ही मुझे लगता है कि इसका इलाज भी ढूंढ लिया जाएगा।

    इसी के साथ मैं कार्यक्रम का अगला पत्र उठाता हूं जो हमें लिखा है मेहर रेडियो श्रोता संघ सगोरिया, ज़िला मंदसौर, मध्यप्रदेश से आयुष, संगीता, ललिता, दुर्गाबाई और पूरे मेहर परिवार ने आप सभी ने सुनना चाहा है कोरा कागज़ फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं एम जी हश्मत और संगीत दिया है कल्याणजी आनंदजी ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 5. रूठे रूठे पिया मनाऊं कैसे ....

    पंकज - एक साक्षात्कार में प्रोफ़ेसर हॉकिन्स ने इंटरनेट के फ़ायदों और ख़तरों के बारे में भी बात की.

    उन्होंने जीसीएचक्यू के निदेशक को उद्धृत किया कि इंटरनेट आतंकवादियो का कमांड सेंटर बन रहा है, "इस खतरे से बचने के लिए इंटरनेट कंपनियों को और काम करना होगा, लेकिन मुश्किल यह है कि ऐसा आज़ादी और निजता को बचाते हुए करना होगा."

    हालांकि वह सभी तरह की संचार तकनीकों को उत्सुकता से ग्रहण करते रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि नए सिस्टम से वह ज़्यादा तेज़ी के साथ लिख सकेंगे.

    लेकिन एक तकनीकी पक्ष- उनकी कंप्यूट्रीकृत आवाज़, ताजा अपडेट में भी नहीं बदली है.

    प्रोफ़ेसर हॉकिन्स मानते हं कि यह थोड़ी रोबोटिक लगती है, लेकिन ज़ोर देकर कहते हैं कि वह ज़्यादा सहज आवाज़ नहीं चाहते थे.

    उन्होंने कहा, "यह मेरा ट्रेडमार्क बन गया है और मैं इसे ब्रितानी लहज़े वाली ज़्यादा सहज आवाज़ के साथ नहीं बदलूंगा."

    "मुझे बताया गया कि जो बच्चे कंप्यूटर की आवाज़ चाहते हैं, वे ज़्यादातर मेरी तरह की चाहते हैं."

    दिनेश – और अब हम उठा रहे हैं कार्यक्रम का अगला पत्र जिसे हमें लिख भेजा है मल्थोने, ज़िला सागर, मध्यप्रदेश से धर्मेन्द्र सिंह और इनके परिजनों ने आप सभी ने सुनना चाहा है बावर्ची फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार, मन्ना डे, निर्मला देवी, हृदयनाथ चट्टोपाध्याय, और लक्ष्मीशंकर ने गीतकार हैं कैफ़ी आज़मी, और संगीत दिया है मदनमोहन ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 6. भोर आई गया अंधियारा ...

    पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।

    दिनेश – नमस्कार।

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